Bilkis Bano Gang Rape: सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए बिलकिस बानो गैंग रेप केस (Bilkis Bano Case) में 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द किया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका सुनवाई योग्य माना। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि सजा अपराध रोकने के लिए दी जाती है।
गुजरात सरकार को रिहाई का फैसला लेने का अधिकार नहीं है। वो दोषियों को कैसे माफ कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 दोषियों को दो सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह इस अदालत का कर्तव्य है कि वह मनमाने आदेशों को जल्द से जल्द सही करे और जनता के विश्वास की नींव को बरकरार रखे।
“सुनवाई महाराष्ट्र में हुई है तो इसका पूरा अधिकार वहां की राज्य सरकार को है. क्योंकि जिस राज्य में किसी अपराधी का मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, उसी को दोषियों की माफी याचिका पर फैसला लेने का अधिकार है।”
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने 12 अक्टूबर को मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। ये मामला उन 11 दोषियों की शीघ्र रिहाई से संबंधित है जिन्होंने दंगों के दौरान बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी थी।
रिहा किए गए 11 दोषियों के नाम हैं-जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राध्येशम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरधिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना। गुजरात सरकार ने मई 2022 के फैसले के बाद उनकी सजा में छूट दे दी थी।
इसमें सु्प्रीम कर्ट ने कहा था कि सजा में छूट के आवेदन पर उस राज्य की नीति के अनुरूप विचार किया जाना चाहिए, जहां अपराध किया गया था, न कि जहां मुकदमा हुआ था. उस फैसले के अनुसार, गुजरात सरकार ने दोषियों को रिहा करने के लिए अपनी छूट नीति लागू की थी, हालांकि मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई थी।
गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राज कुमार ने कथित तौर पर कहा कि दोषियों को जेल में 14 साल पूरे होने और उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार आदि” जैसे अन्य कारकों के कारण रिहा किया गया था।
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