जल्लीकट्टू को मंजूरी देने वाले तमिलनाडु के क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर

नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने जल्लीकट्टू के खेल को मंजूरी देने वाले तमिलनाडु के कानून पर मुहर लगा दी है। इसके साथ ही जल्लीकट्टू पर तमिलनाडु के कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। तमिलनाडु सरकार की ओर से ये दलील दी गई थी कि जल्लीकट्टू का खेल उनके राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। इस कानून को बरकरार रखने का फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये परंपरा पिछली कुछ सदियों से चली आ रही है।

कोर्ट ने कहा कि इस क़ानून को राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिल गई है और अब इसमें दखल नहीं दिया जा सकता है। तमिलनाडु के क़ानून में कोई खामी नहीं है और ये पूरी तरह से वैध है। बीबीसी के अनुसार, अदालत ने कहा कि कौन सी चीज़ सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है और क्या नहीं, इसका फ़ैसला करने के लिए विधायिका सबसे बेहतर संस्थान है, ये निर्णय न्यायपालिका नहीं कर सकती है।

जानिए क्या है जलीकट्टू 

फसल कटाई के मौके पर तमिलनाडु में चार दिन का पोंगल उत्सव मनाया जाता है, जिसमें तीसरा दिन मवेशियों के लिए होता है। तमिल में जली का अर्थ है सिक्के की थैली और कट्टू का अर्थ है बैल का सिंग। जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। इस खेल की परंपरा 2500 साल पुरानी बताई जाती है। पोंगल उत्सव के दौरान होने वाले इस खेल में परंपरा के अनुसार शुरुआत में तीन बैलों को छोड़ा जाता है, जिन्हें कोई नहीं पकड़ता। बताया जाता है कि ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं। जिन्हें गांव की शान के रूप में देखा जाता है। इन बैलों के जाने के बाद जलीकट्टू का असली खेल शुरू होता है।

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