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कोलकाता, 8 फरवरी। 48वें अंतरराष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेला में वाणी प्रकाशन के स्टाल पर डॉ. सुनील कुमार शर्मा के प्रथम ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण समारोह और पुस्तक परिचर्चा का आयोजन किया गया।
परिचर्चा में डॉ. शंभुनाथ, रामनिवास द्विवेदी, अभिज्ञात, मृत्युंजय श्रीवास्तव, आदित्य गिरि, सुषमा कुमारी और रूपेश कुमार यादव ने हिस्सा लिया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि सुनील जी ने अपने ग़ज़लों में जीवन की विविधताओं को शामिल किया है।
डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि इनकी कई ग़ज़लें व्यक्ति सत्य से बाहर के सच को देखने की एक कोशिश है।
मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि ग़ज़ल एक ऐसी विधा है, जो स्वयं ख़ुद को संप्रेषित करती है। इसके लिए किसी आलोचक की ज़रूरत नहीं पड़ती।
अभिज्ञात ने कहा कि आने वाले दिनों में इस संग्रह की ग़ज़लें सोशल मीडिया पर खूब प्रसारित होंगी क्योंकि इनके ग़ज़ल की भाषा इतनी सहज है कि इसे समझने के लिए अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ती है।
आदित्य गिरि ने कहा की इन्होंने अपने ग़ज़लों में शोषित व्यक्ति की पीड़ा को आवाज दिया है।
शोधार्थी सुषमा कुमारी ने कहा कि समकालीन प्रासंगिकता का दस्तावेज है- तीरगी में रौशनी। यह संग्रह याद दिलाती है कि उम्मीद, रौशनी और आदमी अभी जिंदा है। रूपेश कुमार यादव ने कहा कि ग़ज़ल प्रतिरोध के साथ साथ विरेचन का भी काम करता है।
सुनील जी के ग़ज़लों में रिश्तों को बचाने की गहरी बेचैनी दिखती है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि ग़ज़लें प्रेम और प्रतिरोध का आख्यान है।
अपने समय की जड़ता, उदासीनता और व्यवस्था की अमानवीयता के ख़िलाफ़ एक मानवीय हस्तक्षेप है ।
संवाद सत्र में प्रश्नों का जवाब देते हुए ग़ज़लकार डॉ. सुनील कुमार शर्मा ने कहा कि इस सग्रह के ग़ज़लों में मैंने अनुभवजन्य अपने परिवेश को दर्ज करने का प्रयास किया है। अब पाठक तय करेंगे कि मेरा यह प्रयास कितना सफल हो पाया है।
इस अवसर पर मधु सिंह ने सुनील शर्मा की ग़ज़ल का पाठ किया।
इस अवसर पर विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद, प्रो. संजय यादव, अनिल शाह, कंचन भगत, कुसुम भगत, सहित अन्य साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।धन्यवाद ज्ञापन वाणी प्रकाशन के दिनेश कुमार सिंह ने दिया।
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