अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। अर्जुन की नई नौकरी और बैंड की सफलता ने उसके जीवन को एक नई दिशा दी थी। उसकी जिंदगी अब फिर से पटरी पर लौट रही थी। वहीं, स्नेहा की तीसरी किताब भी पूरी हो चुकी थी और जल्द ही बाजार में आने वाली थी। इन सबके बीच, स्नेहा और अर्जुन का रिश्ता पहले से भी मजबूत हो गया था।
स्नेहा के जीवन में अब एक और महत्वपूर्ण अवसर आया- उसे एक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने का आमंत्रण मिला। यह उसके लिए बेहद गर्व की बात थी, क्योंकि वह अब सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी लेखनी से लोगों को प्रभावित कर रही थी। यह सम्मेलन लंदन में होना था और स्नेहा के लिए यह एक बड़ा मौका था।
जब स्नेहा ने अर्जुन से इस बारे में बात की, तो उसने बिना किसी हिचकिचाहट के स्नेहा का साथ दिया। अर्जुन ने स्नेहा से कहा, “तुम्हारी मेहनत और लगन का यह परिणाम है। मुझे तुम पर गर्व है और मैं चाहता हूँ कि तुम इस मौके का पूरा लाभ उठाओ।”
स्नेहा ने भी सोचा कि इस बार वह अकेली नहीं जाएगी। उसने अर्जुन और आन्या को भी अपने साथ लंदन ले जाने का फैसला किया ताकि वे सब साथ मिलकर इस नए अनुभव का आनंद ले सकें। लंदन की यात्रा उनके लिए एक यादगार अनुभव साबित हुई। स्नेहा का सम्मेलन सफल रहा और उसने अपने विचार और अनुभव साझा करते हुए लोगों का दिल जीत लिया। उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मेहनत और समर्पण ने उसे कितनी ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया है। वहीं अर्जुन और आन्या ने भी इस यात्रा का आनंद लिया और नए स्थानों को घूमने का मौका मिला।
लंदन में एक शाम जब स्नेहा, अर्जुन और आन्या टेम्स नदी के किनारे बैठे थे, अर्जुन ने स्नेहा से कहा, “देखो, कहाँ से कहाँ तक पहुँच गए हम। जब हम अपनी शुरुआत कर रहे थे, तो हमने कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी हमें इतनी दूर लेकर आएगी।”
स्नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, कभी-कभी तो खुद पर भी यकीन नहीं होता। लेकिन सच कहूँ अर्जुन, ये सब तुम्हारे समर्थन के बिना मुमकिन नहीं होता। तुमने हर कदम पर मेरा साथ दिया है और मुझे कभी कमजोर नहीं महसूस होने दिया।”
अर्जुन ने स्नेहा का हाथ थामते हुए कहा, “हमने एक-दूसरे का साथ दिया है। यही तो रिश्तों की खूबसूरती है। जब हम एक-दूसरे का साथ देते हैं, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।”
लंदन से लौटने के बाद, स्नेहा और अर्जुन ने अपने जीवन को और भी सशक्त और सफल बनाने की दिशा में काम किया। स्नेहा ने अपनी चौथी किताब पर काम शुरू कर दिया, जो कि एक अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन के लिए थी। वहीं अर्जुन का बैंड अब एक नए मुकाम पर पहुँच चुका था। वे लोग अब अपने पहले एल्बम की रिकॉर्डिंग कर रहे थे और उनका संगीत धीरे-धीरे लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहा था।
स्नेहा और अर्जुन की इस यात्रा ने उन्हें सिखाया कि जब इंसान अपने सपनों का पीछा करता है और उन सपनों को अपने परिवार और प्रियजनों के साथ साझा करता है, तो जिंदगी की हर मुश्किल भी एक नए अवसर में बदल जाती है।
(अगली किश्त में पढ़ेंगे कि स्नेहा और अर्जुन का जीवन कैसे और भी नए अवसरों और चुनौतियों का सामना करता है और कैसे वे अपने सपनों को साकार करने के साथ-साथ अपने रिश्ते को और भी मजबूत बनाते हैं।)
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