
अशोक कुमार वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। स्नेहा और अर्जुन का जीवन अब धीरे-धीरे स्थिर हो रहा था। उनकी बेटी आन्या ने घर में खुशियों की एक नई लहर बिखेर दी थी। स्नेहा और अर्जुन अपने-अपने करियर में आगे बढ़ रहे थे और साथ ही साथ अपने परिवार की जिम्मेदारियाँ भी बखूबी निभा रहे थे। लेकिन एक बात स्नेहा के मन में अब भी अटकी हुई थी…उसके अपने सपने।
बचपन से ही स्नेहा का सपना था कि वह एक सफल लेखिका बने। जब से उसकी शादी हुई और फिर माँ बनने की जिम्मेदारी आई, उसने अपने इस सपने को कहीं पीछे छोड़ दिया था। लेकिन अब, जब आन्या थोड़ी बड़ी हो चुकी थी और स्नेहा का काम और घर का जीवन संतुलन में आ गया था, उसके मन में फिर से अपने इस अधूरे सपने को पूरा करने की इच्छा जागने लगी।
एक रात, जब स्नेहा और अर्जुन सोने की तैयारी कर रहे थे, स्नेहा ने अर्जुन से अपने दिल की बात कही, “अर्जुन, मुझे ऐसा लग रहा है कि मैंने अपने सपनों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। मैं हमेशा से एक लेखिका बनना चाहती थी, लेकिन जीवन की व्यस्तताओं ने मुझे यह मौका नहीं दिया। अब मैं चाहती हूँ कि मैं फिर से लिखना शुरू करूं। क्या तुम्हें लगता है कि यह संभव है?”
अर्जुन ने मुस्कुराते हुए स्नेहा का हाथ थाम लिया और कहा, “स्नेहा, तुम्हारे सपने कभी भी पीछे नहीं छूटे हैं। वे बस थोड़ी देर के लिए शांत हो गए थे। तुमने अपने परिवार को समर्पित होकर बहुत कुछ किया है, लेकिन अब वक्त है कि तुम अपने लिए भी कुछ करो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम एक बेहतरीन लेखिका बनोगी।”
अर्जुन की बातों ने स्नेहा के दिल में एक नई ऊर्जा भर दी। अगले ही दिन से उसने अपनी पुरानी डायरी निकाली और लिखने बैठ गई। शुरुआत में उसे थोड़ी मुश्किल हुई, लेकिन धीरे-धीरे उसकी लेखनी में वही पुरानी चमक लौट आई।
स्नेहा का पहला लेख, जो उसने एक प्रतिष्ठित पत्रिका को भेजा, प्रकाशित हो गया। यह उसके लिए बहुत बड़ी बात थी। वह अपने इस छोटे से कदम से बेहद खुश थी और अर्जुन, चांदनी और रवि सभी ने उसकी तारीफ की। अब स्नेहा को विश्वास होने लगा था कि वह अपने लेखन करियर को भी संभाल सकती है, साथ ही अपने परिवार की जिम्मेदारी भी निभा सकती है।
कुछ महीनों के बाद, स्नेहा को एक बड़े प्रकाशक से उसकी पहली किताब लिखने का प्रस्ताव मिला। यह उसके जीवन का सबसे बड़ा मौका था। स्नेहा को थोड़ी चिंता भी थी कि क्या वह इस जिम्मेदारी को निभा पाएगी, लेकिन अर्जुन ने उसे हर कदम पर हिम्मत दी।
“स्नेहा, तुम्हें इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए,” अर्जुन ने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा। “तुम हमेशा से एक लेखिका बनना चाहती थीं, और अब यह मौका तुम्हारे सामने है। मैं और आन्या हमेशा तुम्हारे साथ हैं और हम दोनों को तुम पर गर्व है।”
स्नेहा ने किताब पर काम करना शुरू कर दिया। घर और काम के बीच संतुलन बनाए रखना कभी-कभी मुश्किल हो जाता था, लेकिन उसने यह ठान लिया था कि वह अपने सपने को पूरा करेगी। अर्जुन ने भी स्नेहा का भरपूर साथ दिया, वह आन्या की देखभाल में मदद करता और स्नेहा को पर्याप्त समय देता ताकि वह अपनी किताब पर ध्यान केंद्रित कर सके।
कई महीनों की मेहनत के बाद, स्नेहा की किताब पूरी हो गई। जब उसकी किताब प्रकाशित हुई और उसे लोगों से सराहना मिलने लगी, तो स्नेहा ने महसूस किया कि उसने अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा कर लिया है। वह अब न केवल एक माँ और पत्नी थी, बल्कि एक सफल लेखिका भी थी।
स्नेहा की पहली किताब को बहुत पसंद किया गया और उसे कई पुरस्कार भी मिले। स्नेहा का आत्मविश्वास बढ़ चुका था और अब वह और भी बड़े सपनों की ओर कदम बढ़ाने के लिए तैयार थी। चांदनी और रवि ने अपनी बेटी की सफलता पर गर्व महसूस किया और उन्हें यह भी खुशी थी कि स्नेहा ने अपने जीवन में संतुलन बनाकर अपने सपनों को पूरा किया।
स्नेहा की इस यात्रा ने उसे सिखाया कि जीवन में जिम्मेदारी और सपने दोनों को साथ लेकर चलना संभव है, अगर इंसान में धैर्य, समर्पण और सपनों के प्रति सच्ची लगन हो।
अगली किश्त में, देखेंगे कि स्नेहा अपने लेखन करियर में और ऊँचाइयाँ कैसे हासिल करती है और उसके जीवन में नए मोड़ किस तरह से आते हैं।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च कर, फॉलो करें।