प्यार के भवर जाल में पिसती जिंदगी की कहानी : लव मैरिज, सातवीं किश्त

अशोक कुमार वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। स्नेहा की पहली किताब की सफलता ने उसे नई पहचान दिलाई थी। अब वह सिर्फ अर्जुन की पत्नी या आन्या की माँ नहीं, बल्कि एक प्रसिद्ध लेखिका के रूप में भी जानी जा रही थी। उसके जीवन में एक नया उत्साह और आत्मविश्वास आ गया था। उसकी किताब की सराहना सिर्फ उसके परिवार तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि उसने साहित्य जगत में भी अपनी छाप छोड़ी थी। कई पत्रिकाओं और मंचों पर उसे बुलाया जाने लगा, जहाँ वह अपने अनुभव साझा करती और लेखन के प्रति अपने जुनून की बात करती।

इस नई सफलता के साथ, स्नेहा के सामने एक और बड़ा प्रस्ताव आया- उसे एक प्रमुख प्रकाशन गृह ने उसकी दूसरी किताब लिखने के लिए अनुबंधित किया। यह मौका उससे और भी बड़ा था, लेकिन स्नेहा के मन में एक द्वंद्व भी था। दूसरी किताब लिखना पहली से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा था, क्योंकि अब उसे अपने पहले की सफलता को न सिर्फ दोहराना था, बल्कि उससे भी आगे बढ़ना था।

एक दिन स्नेहा ने अर्जुन से कहा, “अर्जुन, मुझे थोड़ा डर लग रहा है। दूसरी किताब पर काम शुरू करने से पहले ही, मुझ पर बहुत दबाव महसूस हो रहा है। लोग मुझसे बहुत उम्मीदें लगा रहे हैं। अगर यह किताब सफल नहीं हुई तो?”

अर्जुन ने स्नेहा की चिंता को समझते हुए उसे समझाया, “स्नेहा, सफलता और असफलता जीवन का हिस्सा हैं। लेकिन यह मत भूलो कि तुमने जो पहली किताब लिखी थी, वह दिल से लिखी थी, बिना किसी दबाव के। उसी तरह, दूसरी किताब भी तुम्हारे दिल की आवाज होनी चाहिए। खुद पर भरोसा रखो और अपने अनुभवों को कागज पर उतारो। तुम्हारी सफलता इस बात पर नहीं टिकी कि लोग क्या सोचते हैं, बल्कि इस पर है कि तुम अपने लेखन में कितनी सच्चाई और भावनाएँ रख पाती हो।”

अर्जुन की ये बातें स्नेहा को सुकून दे गई। उसने अपनी चिंता को पीछे छोड़ते हुए अपने अगले प्रोजेक्ट पर ध्यान लगाना शुरू किया। इस बार उसकी कहानी और भी गहरी और भावनात्मक थी- यह उसकी अपनी जिंदगी और संघर्षों से प्रेरित थी, जिसमें उसने अपनी माँ चांदनी और अपनी बेटी आन्या से मिले सबक और प्यार को पिरोया था।

किताब लिखने का यह सफर आसान नहीं था। कई रातें ऐसी थी जब स्नेहा देर रात तक लिखती रहती और सुबह जल्दी उठकर आन्या का ख्याल रखती। लेकिन अर्जुन और उसकी माँ चांदनी हमेशा उसके साथ खड़े रहे। अर्जुन ने स्नेहा को पूरा समय और समर्थन दिया ताकि वह अपने काम पर ध्यान केंद्रित कर सके, जबकि चांदनी अक्सर आन्या के साथ समय बिताती, ताकि स्नेहा को थोड़ी राहत मिल सके।

धीरे-धीरे, स्नेहा की दूसरी किताब भी पूरी हो गई। जब उसने अपनी किताब के आखिरी पन्ने पर लिखा “समाप्त,” तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। यह आँसू खुशी के थे- उसने अपनी एक और जीत हासिल कर ली थी। इस बार, उसने सिर्फ खुद के लिए नहीं लिखा था, बल्कि अपनी माँ, बेटी और अपने जीवन के सभी महत्वपूर्ण रिश्तों के लिए लिखा था।

जब उसकी दूसरी किताब बाजार में आई, तो उसे और भी ज्यादा सराहना मिली। उसकी लेखनी की गहराई और ईमानदारी ने लोगों के दिलों को छू लिया। स्नेहा अब न सिर्फ एक लेखिका थी, बल्कि एक प्रेरणा भी बन गई थी, खासकर उन महिलाओं के लिए जिन्होंने अपने सपनों को कभी दबा दिया था।

स्नेहा की माँ चांदनी ने जब उसकी दूसरी किताब पढ़ी, तो वह बेहद भावुक हो गईं। उन्होंने अपनी बेटी को गले लगाते हुए कहा, “स्नेहा, तुम्हारी सफलता सिर्फ तुम्हारी नहीं है। यह हमारे पूरे परिवार की सफलता है। मुझे गर्व है कि तुमने जीवन में हर कठिनाई का सामना करके अपना रास्ता खुद बनाया।”

स्नेहा ने अपनी माँ की ओर देखते हुए कहा, “माँ, यह सब आपकी सीख का ही परिणाम है। आपने जो संघर्ष किए, जो गलतियाँ कीं, और जो सबक मुझे सिखाए, उन्होंने ही मुझे यह राह दिखाई है।”

अर्जुन भी स्नेहा की इस सफलता से बेहद खुश था। उसने स्नेहा को गले लगाते हुए कहा, “तुमने साबित कर दिया कि इंसान चाहे जितनी भी जिम्मेदारियाँ संभाल रहा हो, अगर उसके दिल में सच्ची लगन और मेहनत हो, तो वह कुछ भी कर सकता है।”

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

अब स्नेहा का जीवन न केवल एक सफल लेखिका के रूप में बल्कि एक सशक्त महिला के रूप में भी स्थापित हो चुका था। उसने अपने जीवन में हर भूमिका को बखूबी निभाया- एक पत्नी, एक माँ, एक बेटी और अब एक लेखिका के रूप में। उसकी सफलता ने उसे नई ऊँचाइयाँ दीं, लेकिन उसने कभी अपने परिवार और रिश्तों को पीछे नहीं छोड़ा।

सूचना : अगली किश्त में देखेंगे कि कैसे स्नेहा अपने जीवन की नई जिम्मेदारियों और सफलता के बीच संतुलन बनाते हुए, समाज में अपनी एक नई पहचान बनाती है।

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