अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : रिक्शावाला

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। आज मंगरू चाचा रिक्शा चलाकर थक गए थे उन्हें चक्कर आ रहे थे। वो रिक्शा को पकड़ने के बाद भी अपना संतुलन खोये जा रहे थे तभी पास से गुजर रहे वर्मा जी ने उन्हें संभाला और अपनें बैग से पानी का बोतल निकाल कर मंगरू चाचा के सर पर डाला और उन्हें पानी पिलाकर एक पेड़ के नीचे बैठाया। मंगरू चाचा अचेत सा हो गए थे। कुछ देर के लिए वर्मा जी की समझ में भी नही आ रहा था की वो क्या करें, वो फिर एक बार अपना बैग खोलकर अखबार निकाले और मंगरू चाचा के चेहरे पर हवा देने लगे। भीड़ इकट्ठा हो गई थी, लोग अलग-अलग सलाह दे रहे थे कोई हॉस्पिटल ले जाने की तो कोई घर पहुंचाने की। कुछ लोग तो वीडियो बनाने में लगे हुए थे।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

कुछ देर बाद मंगरू चाचा सामान्य हो गए तभी वर्मा जी ने मंगरू चाचा से कहा! मंगरू चाचा अब आपके उम्र नही रह गए सवारी ढोने लायक अब तो आराम कीजिए अब तो बेटा भी जवान हो चला है तभी मंगरू चाचा बोल पड़े उसी के चलते तो खून जला रहा हूं वर्मा जी, उसे अफसर बना दूं फिर तो सुख के दिन आ हीं जायेंगे, रात दिन परिश्रम करता हूं जिससे उसके तमाम मांगों को पूरा कर सकूं। सुबह जल्द ही निकल गया था पेट खाली है सो चक्कर आ गए। आप अपना ध्यान रखिए समय बदल गया है आज कल के बच्चे…वर्मा जी अभी वाक्य पूरा भी नही किये थे की मंगरू चाचा ने तपाक सा उत्तर दिया – मेरा बेटा ऐसा नहीं होगा वर्मा जी, भगवान करे ऐसा ही हो, कह कर वर्मा जी वहां से निकल पड़े थे।

इधर रिक्शा लेकर मंगरू चाचा अपनें घर पहुंच कर अपनें गमछे से पसीने को पोछते हुए अपनी पत्नी से कह रहे थे, अब थक जाता हूं शरीर अब पहले जैसा नहीं रह गया है शरीर अब साथ नही दे रहा है। आज चक्कर आ गए थे, वर्मा जी ने संभाला नही तो घायल हो जाते। अभी ये सब बातें हो ही रही थी की डाकिए ने आवाज लगाई, अमित अमित कोई है रजिस्ट्री पत्र आया है। जैसे ही अमित बाहर निकला डाकिए ने उसे पत्र दी और एक कागज पर हस्ताक्षर करवाया, इस पत्र को खोल कर अमित ने जैसे पढ़ा उसके खुशी का ठिकाना न रहा। अमित की नौकरी उसी शहर के एक मल्टीनेशनल कंपनी में पक्की हो गई थी। यह खबर सुनकर मंगरू चाचा के तमाम दुख दूर हो गए थे। मां भी अपने बेटे को चूम रही थी और घर में रखे भगवान के मूर्ति के आगे अपना सर पटक रही थी।

समय गुजरता गया किंतु मंगरू चाचा ने अभी रिक्शा चलाना नहीं छोड़ा। आज अमित बहुत ही जल्दबाजी में था उसे ऑफिस जाने की जल्दी थी, मां ने जल्द नाश्ता तैयार कर अमित को दिया किंतु उसने समय का हवाला देते हुए खाने से मना कर दिया। किंतु मां का दिल ही ऐसा होता है उसने अपने हाथों से एक निवाला लेकर अमित के मुंह में देना चाहा जिससे कुछ भी उसके पेट में जा सके, किंतु अमित ने मां को झिड़क दिया, बेटा खा लो सारा दिन काम करना है सेहत खराब हो जायेगा तेरा। किंतु अमित ने अपनें मां की एक न सुनी और ऑफिस को निकल पड़ा।तभी मंगरू चाचा बोल पड़े बचपन से ही जिद्दी है तुम्हारे लाड प्यार ने तो उसे और जिद्दी बना दिया है। लाख कहने पर भी एक निवाला लेने को तैयार नहीं हुआ, मुझे खाना लगाओ सुबह से हीं खाली पेट परेशान हूं बस थोड़ा नहाधोकर तैयार हो जाऊं।

तभी अमित की मां ने कहा आप तैयार हो जाइए मैं खाना निकाल रही हूं। कुछ देर बाद मंगरू पति-पत्नी खाने पर बैठे ही थे की अचानक अमित के मां को याद आया मेरा बेटा अभी तक भूखा हीं होगा उसने अपने पति मंगरू से कहा – सुनते हो जी, आप जाओ अपनें अफ़सर बेटा को खाना देकर आओ फिर हम लोग खाते है और हां अच्छा कपड़ा पहन लो, अफ़सर बेटा का बाप बन कर जाओगे, मंगरू भी खुश हो गया, जानती हो अमित की मम्मी बहुत खुश होगा मेरा बेटा अपनें ऑफिस में मुझे देखकर। मिलवाएगा अपनें सहकर्मियों से, बतलाएगा मेरे संघर्ष की कहानी कि मेरे पापा ने कितना संघर्ष कर हमें पढ़ाया लिखाया है और आज भी संघर्ष करते है मेरे पापा ग्रेट है। हां-हां चलिए तैयार हो जाइए मैं टिफिन तैयार करती हूं, कुछ देर में मंगरू चाचा तैयार हो गए उनकी पत्नी उन्हें टिफिन दे रही थी और वो टिफिन लेकर अपनें रिक्शे से अमित के ऑफिस की तरफ चल पड़े थे।

ऑफिस पहुंच कर मंगरू चाचा अपनें बेटे के ऑफिस को देख कर काफी प्रसन्न हुए इसलिए की इतने बड़े ऑफिस में उन्हें प्रवेश करने का भी सौभाग्य नही हुआ था जहां आज उनका बेटा अफसर बन कर बैठा था। मंगरू चाचा हाथ में टिफिन लिए गेट के अंदर प्रवेश करनें लगे तभी सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें रोक दिया और किससे मिलना है पूछा, मंगरू ने बड़े ही शान से कहा मुझे अमित बाबू से मिलना है, इतना सुनने के बाद भी सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें वही खड़ा होने का आदेश दिया और अमित से टेलीफोन से कहा -सर, आपने कोई मिलने आए है जो रिक्शा चालक है,अमित ने कहा भेज दो, मंगरू दरवाजा खोल कर टिफिन अमित की तरफ बढ़ा दिया और मंगरू वहां से लौट आए।

अब मंगरू रोज रोज अमित का टिफिन लेकर पहुंचाने लगे। रोज की तरह आज भी मंगरू अमित को टिफिन देने पहुंचे थे, अमित अपनें पिता से जैसे ही टिफिन अपनें हाथ में लिया तभी अमित का एक सहकर्मी बोल पड़ा, अमित बाबू आपका रिक्शावाला बहुत अच्छा है जो आपको भी लाता है और मौके पर आपका टिफिन भी लाता है। मंगरू उस व्यक्ति की तरफ देखे फिर अमित की तरफ देखने लगे और मन ही मन सोचने लगे कि अमित क्या बोल रहा है तभी अमित ने कहा बहुत अच्छे है ये काका बिल्कुल अपनें बेटा जैसा मानते है हमें। सुनिये मंगरू काका आज के बाद मेरी मां जब भी आपको मेरे ऑफिस भेजे आप मत आइयेगा, हमें परेशानी होती है, आपने क्या कहा… अमित बाबू, मंगरू को जैसे सांप सूंघ गया हो, वो अभी कुछ बोल पाते अमित ने सिक्योरिटी को बुलाकर डांटा किसी को भी भेज देते हो अंदर काम में बाधा पड़ती है, ये सारी बातें सुनकर मंगरू निराश होकर रिक्शा लेकर चल पड़े थे किंतु उसके दिमाग में अमित के कहे सारी बातें गूंज रही थी।

सड़क पर चलते-चलते मंगरू को सदमा ने संतुलन बिगाड़ दिया और वो एक चारपहिया वाहन से टकराकर लहूलुहान हालत में सड़क पर गिर पड़े, चारो तरफ शोर मच गया लोग अपनें अपनें मोबाईल से वीडियो बना रहे थे।ये खबर सेक्युरिटी ने अमित को दी कि आपके रिक्शे वाले की मौत गाड़ी से टकराने के कारण हो गई है तो वो हक्का बक्का रह गया और ऑफिस से बाहर दौड़ा हुआ आया। किंतु वो लोगों के सामने रो भी नही सकता था। अंततः वो अकेले में जाकर रो रहा था उसे क्या पता की उसने आज अपनें उस पिता को खोया है जिसकी बदौलत वो इस पद को प्राप्त किया है। वो रोए जा रहा था क्योंकि उसके पास रोने के अलावा कुछ बचा ही नहीं था। पुलिस पहुंच चुकी थी और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था। इधर अमित के मां का भी हाल बुरा था वो रो रोकर सदमे में अपनें पति के साथ चल पड़ी थी।

माता पिता इस धरती के भगवान है, उनके रूप को पूजना चाहिए, मंगरू ने अगर ईमानदारी से रिक्शा चला कर अपने परिवार का भरण पोषण किया तो इस में बुराई क्या थी। आज के आधुनिक बच्चे अपने झूठी शानो शौकत के लिए मां बाप को ठुकरा देते है जिसका जवाब ऊपर वाले के दरबार में देना पड़ेगा और उसे किसी ना किसी तरह प्रकृति सजा देगी।

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