विश्‍व साक्षरता दिवस पर विशेष…आप भी स्लम बस्तियों में रोशनी लाने के लिए पहल करे : डॉ. विक्रम चौरसिया

नई दिल्ली । अगर आप अपनें घर पर किसी गरीब झुग्गी झोपड़ी बस्तियों के बच्चो को या किसी भी कारण से शिक्षा से दूर रहें लोगो को न पढ़ा पाएं, तो अपने ही क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर कोई छोटा सा समूह भी बनाकर, उसके स्कूल जाने की व्यवस्था जरूर कर सकते हैं या आसपास के किसी पार्क में भी कुछ वक्त निकालकर पढ़ा सकते है, पिछले 7 वर्षो से खुद मैं बिना किसी एनजीओ, ट्रस्ट या किसी भी संस्था के अपने कुछ सहयोगी साथियों के साथ दिल्ली के झुग्गी झोपड़ी बस्तियों के बच्चो के लिए पाठशाला संचालित कर रहा हूं।

इस मुहिम से ही प्रेरित होकर देश के अलग-अलग राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में मेरे जानने वाले या मेरे सहपाठी ऐसे वंचित बच्चों की कक्षाएं संचालित कर रहे हैं। ऐसे ही पिछड़े क्षेत्रों के वंचित लोगों के बीच आप भी शिक्षा के दीप रोशन कर सकते हैं। सभी ने देखा भी होगा की कोरोना काल में पढ़ने-लिखने के मामले में बहुत कुछ बदलाव आया है। इस दौरान दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों के झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में हमने अपने साथियों के साथ मिलकर वंचित बच्चो के कक्षाएं संचालित करने के साथ ही उनके जरूरत के वस्तु एवं कॉपी किताबे भी उपलब्ध कराएं थे, जो आज भी अनवरत जारी है, अभी आजादी के 75 वर्ष के अमृत महोत्सव के दौरान ही हमने 15 अगस्त को जरूरतमंद झुग्गी झोपड़ीयो के बच्चों को कपड़े व कॉपी किताब वितरित किए थे।

आप भी ऐसे पहल का हिस्सा बने। आज देखे तो सुविधा-असुविधा का खेल है, जिसका वंचित बच्‍चों पर काफी असर पड़ा रहा है। हमने देखा ही की कई सारे बच्‍चे कोरोना के दौर में करीब 2 साल से पढ़ाई से वंचित रह गए थे। आज यहां चर्चा करने का मुख्य उद्देश्य ये था की आपको बता दें कि हर वर्ष हम 8 सितंबर को विश्‍व साक्षरता दिवस मनाते है। सबसे पहला विश्‍व साक्षरता दिवस 1966 में मनाया गया था। हर वर्ष एक थीम तैयार की जाती है। साक्षरता दिवस कब और क्‍यों मनाया जाता है, इससे पहले जान लेते हैं साक्षरता का मतलब क्‍या है?

देखे तो युनेस्‍को 1976 के अनुसार, “वह व्‍यकित जो अपने दैनिक जीवन से संबंधित तथ्‍यों से संबंध रखने वाले छोटे तथा सरल विवरण न लिख सकता हो न पढ़ सकता हो और न समझ सकता हो निरक्षर है।” वही जो समझ सकता है वही साक्षर व्यक्ति है। वस्तुतः देखे तो किसी भी देश की सामाजिक आर्थिक सांस्‍कृतिक राजनैतिक और तकनीकी उन्‍नति इस तथ्‍य पर निर्भर करती है कि वहां के नागरिक किस सीमा तक शिक्षित है तथा शिक्षा के माध्‍यम से अपने व्‍यवसाय में कितनी उन्‍नति करते हैं।

जब हमारे झुग्गी झोपड़ी बस्तियों के बच्चो से मिलने डीआरडीओ वैज्ञानिक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सर जो की पूर्वराष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सर के सहयोगी भी रहे हैं आएं थे तो बहुत ही गर्व महसूस कर रहे थे कि आज के युवा जो खुद सिविल सर्विसेज जैसे परीक्षाओं की तैयारी करते हुए इन झुग्गी झोपड़ी के बच्चों के जीवन में रोशनी ला रहे, ऐसे ही युवाओं के संकल्प से राष्ट्र विश्व गुरु बनेगा। आज ही आप भी अभी संकल्प ले की 24 घंटे में से कुछ समय जरूर वंचितों व जरूरतमंद लोगों के जीवन में रोशनी लाने के लिए आप देंगे।

vikram
डॉ. विक्रम चौरसिया

चिंतक /दिल्ली विश्वविद्यालय

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