वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह- श्रद्धा भाव से आंखें बिछाए भक्तगण के नयन तृप्त हुए
पूरी दुनियां में गूंजा,धन गुरु नानक सारा जग तारिया- प्रकाशोत्सव की पावन बेला से जग पवित्र हुआ- अधिवक्ता के.एस. भावनानी
अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनियां में सतगुरु नानक प्रगटिया मिट्टी धुंध जग चानण होआ, नानक नाम चढ़दी कला तेरे भाणे सरबत दा भला के संदेश के साथ पूरे विश्व में स्थित सभी गुरुद्वारे सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक श्री गुरुनानक देव जी महाराज का 555वें प्रकाशोत्सव श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। इस पावन मौके पर सिख, सिंधी समुदाय के अलावा अन्य समुदाय के लोग भी माथा टेकने गुरुद्वारा पहुंच रहे है। हालांकि प्रकाश पर्व को लेकर अनेक दिनों से चल रहे प्रभात फेरी उपरांत जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल के जयकारे लगाते हुए गुरु नानक देव जी महाराज के प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में हर नगर कीर्तन की तरह प्रभात फेरी निकाली गई है। सिखों के पहले पातशाह श्री गुरु नानक देव जी महाराज, जिनका नाम लेने मात्र से मानो आत्मिक शांति का अहसास होने लगता है। श्री गुरु नानक देव जी सिखों के ही नहीं, अपितु समस्त मानव जाति के लिए आदर्श हैं। उनकी शिक्षाएं, उनके विचार और उनके कर्म आज हर मनुष्य को प्रकाश के मार्ग पर ले जाते हैं। गुरु साहब ने अपना पूरा जीवन लोक भलाई के लिए समर्पित कर दिया। चूंकि दिनांक 15 नवंबर 2024 को हम वैश्विक स्तर पर बाबा गुरु नानक देवजी का प्रकाशोत्सव मना रहे हैं, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, पूरी दुनियाँ में गूंजा धन गुरु नानक सारा जग तारिया – सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होआ, पावन बेला से जग पवित्र हुआ।
साथियों बात कर हम बाबा गुरु नानक देव के पावन जन्म की करें तो, बाबाजी का जन्म एक खत्रीकुल में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव (अभी पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त में जिसका नाम आगे चलकर ननकाना पड़ गया) में कार्तिकी पूर्णिमा को हुआ था। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल 1469 मानते हैं, किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था, जबकि बहन बेबे नानकी थीं।गुरु साहिब बचपन से ही प्रखर बुद्धि के स्वामी थे। लड़कपन से वे सांसारिक मोहमाया के प्रति काफी उदासीन रहा करते थे। पढ़ने-लिखने में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी, लेकिन उनका सारा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत होता था। उनके बाल्यकाल में कई ऐसी चमत्कारी घटनाएं हुई, जिसके बाद लोग उन्हे दिव्य शख्सियत मानने लगे।
साथियों बात अगर हम बाबा गुरु नानक देव के बाल्यापन से युवापन की करें तो, बाबाजी का मन पढ़ने में नही लगता था, हालाँकि वे तेज बुद्धि के थे। उन्होंने 7-8 साल की उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया था। उनका ध्यान शुरुआत से ही आध्यात्म की तरफ था, तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। आगे चलकर इनका विवाह सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले में लाखौकी नामक स्थान की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ था और चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमी दास का जन्म हुआ था। नानक का मन गृहस्थी में नही लगा इसलिए उन्होंने 1507 में अपने दोनों पुत्रों और पत्नी को अपने श्वसुर के घर छोड़ दिया और अपने चार साथियों रामदास, मरदाना, लहना, बाला के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े।
साथियों बात अगर हम बाबा गुरु नानक देव के दर्शन आधारशिला की करें तो, नानक देव जी के दर्शन की आधारशिला यह है कि वे सर्वेश्वरवादी थे। जिसका मतलब होता है कि ईश्वर सब जगह है अर्थात संसार के सभी तत्त्वों, पदार्थों और प्राणियों में ईश्वर विद्यमान है एवं ईश्वर ही सब कुछ है। नानक जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे इसके अलावा उन्होंने हिंदू धर्म में फैली कुरीतिओं का सदैव विरोध किया था। उन्होंने एक परमात्मा की उपासना के मार्ग को बताया था, यही कारण है कि उनके विचारों को हिंदु और मुसलमान दोनों धर्मों के लोगों ने पसंद किया जाता है। संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं। हिंदी साहित्य में गुरुनानक भक्तिकाल के अतंर्गत आते हैं और वे भक्तिकाल में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा से संबंध रखते हैं।
साथियों बात अगर हम सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध की करें तो, सतगुरु नानक प्रगट्या, मिटी धुंध जग चानन होया, कलतारण गुरु नानक आया, ज्यों कर सूरज निकलया तारे छपे अंधेरपोलावा। गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर यह शबद गुरुद्वारों में गूंजायमान हो रहे हैं। कथा वाचक अपनी वाणी व रागी ढाडी जत्थे अपने कीर्तन से गुरु की महिमा का जो बखान कर रहे हैं, उसे गुरु घर में पहुंची संगत आस्था के समंदर में गोते लगा रही है। पूरे विश्व के गुरुद्वारों में जहां हजारों की तादाद में संगत माथा टेकने को उमड़ रही है। संगत ने जोड़ा घर, लंगर व बर्तन की सेवा कर रही है। पवित्र सरोवर के पानी से खुद को पवित्र कर रही है। बता दें श्री गुरुनानक देव जी का जीवन सदैव समाज के उत्थान में बीता। उस समय का समाज अंधविश्वासों और कर्म कांडो के मकड़जाल में फंसा हुआ था।ऐसे जटिल दौर में गुरुनानक देवजी ने प्रकट होकर समाज में आध्यात्मिक चेतना जगाने का जो काम किया, उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।
श्री गुरुनानक देव जी ने अपने उपदेशों में निरंकार पर जोर दिया। उन्होंने कहा धार्मिक ग्रंथ का ज्ञान ऐसी नैया है, जो अंधविश्वास के भवसागर से पार उतारती है। ये ज्ञान हमें निरंकार के देश की तरफ लेकर जाता है, जिसके समक्ष सिख आज भी नतमस्तक होते हैं। सिख मत का आगाज ही एक से होता है। सिखों के धर्म ग्रंथ में एक की ही व्याख्या है। एक को निरंकार, पारब्रह्म आदि नामों से जाना जाता है। निरंकार का स्वरूप श्री गुरुग्रंथ साहिब की शुरुआत में बताया है जिसे आम भाषा में गुरु साहिब के उपदेशों का मूल मन्त्र भी कहते हैं। यह ग्रंथ पंजाबी भाषा और गुरुमुखी लिपि में है। इसमें मुख्यत: कबीर, रैदास और मलूकदास जैसे भक्त कवियों की वाणियाँ सम्मिलित हैं।
साथियों बात अगर हम बाबा जी की चार उदासियों की करें तो, गुरु साहिब चारों दिशाओं में घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देने लगे। 1521 ईस्वी तक उन्होंने चार यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य स्थान शामिल थे। इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियाँ के नाम से जाना जाता है। गुरु नानक देव जी मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं रखते थे। नानक जी के अनुसार ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही है। उन्होंने हमेशा ही रुढ़ियों और कुरीतियों का विरोध किया। उनके विचारों से नाराज तत्कालीन शासक इब्राहिम लोदी ने उन्हें कैद तक कर लिया था। पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी हार गया और राज्य बाबर के हाथों में आ गया, तो उन्हें कैद से मुक्ति मिली।
साथियों बात अगर हम बाबा जी के जीवन की आखिरी सांस तक लोग भलाई के काम करने की करें तो, जीवन के अंतिम दिनों में गुरु साहिब के लोकहित में किए गए कामों की प्रसिद्धि हवा में घुलती फूलों की महक की तरह हर तरफ फैल चुकी थी। अपने परिवार के साथ मिलकर वे मानवता की सेवा में पूरा समय व्यतीत करने लगे। उन्होंने करतारपुर नाम से एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है। अपनी चार उदासियों के बाद गुरुनानक देव जी 1522 में करतारपुर साहिब में बस गए। उनके माता-पिता का परलोक गमन भी इसी जगह पर हुआ था।
करतारपुर साहिब में ही गुरुनानक साहिब ने सिख धर्म की स्थापना की थी। उन्होंने रावी नदी के किनारे सिखों के लिए एक नगर बसाया और यहां खेती कर नाम जपो, किरत करो और वंड छको का उपदेश दिया। करतारपुर साहिब में उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 17 साल बिताए। यहीं पर 22 सितंबर 1539 ईस्वी को उन्होंने समाधि ले ली। ज्योति ज्योत समाने से पहले गुरु साहिब ने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव जी के नाम से जाने गए।
साथियों बात अगर हम बाबा जी के चार मित्रों की करें तो, सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देवी जी के चार शिष्य थे। यह चारों ही हमेशा बाबाजी के साथ रहा करते थे। बाबाजी ने अपनी लगभग सभी उदासियां अपने इन चार साथियों के साथ पूरी की थी। इन चारों के नाम हैं- मरदाना, लहणा, बाला और रामदास के साथ पूरी की थी। कहते हैं कि 1499 में उनकी सुल्तानपुर में मुस्लिम कवि मरदाना के साथ मित्रता हो गई। मरदाना तलवंड से आकर यहीं गुरु नानक का सेवक बन गया था और अन्त तक उनके साथ रहा। गुरु नानक देव अपने पद गाते थे और मरदाना रवाब बजाता था। मरदाना ने गुरुजी की चार प्रमुख उदासियों में उनके साथ यात्रा की। मरदाना ने गुरुजी के साथ 28 साल में लगभग दो उपमहाद्वीपों की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने तकरीबन 60 से ज्यादा प्रमुख शहरों का भ्रमण किया। जब गुरुजी मक्का की यात्रा पर थे तब मरदाना उनके साथ थे। गुरुजी के दो और शिष्य थे। जिसका नाम बाला और रामदास था। मरदाना, बाला और रामदास तीनों ने ही गुरुजी की उदासियों में उनका साथ दिया और वे हरदम उनकी
सेवा में लगे रहे। लहना नाम के भी गुरुजी के एक प्रसिद्ध शिष्य थे। कहते हैं कि लहना जी माता रानी ज्वालादेवी के परमभक्त थे। एक दिन उन्होंने गुरुनानक के एक अनुयायी भाई जोधा सिंह खडूर निवासी से उन्होंने गुरुनानक के शबद सुने और वे उससे बहुत ही प्रभावित हुए और वे बाबाजी से मिलने जा पहुंचे। भाई मरदाना जो मुस्लिम घर में पैदा हुए थे बाबा नानक जहां भी कहीं बाहर यात्राओं पर गए, भाई मरदाना हमेशा उनके साथ रहे। गुरबाणी के संगीत में उनकी गहरी छाप है। कहा जाता है कि जब तक भारत का बंटवारा नहीं हुआ था, तब तक पाकिस्तान के ननकाना साहिब और करतारपुर के गुरु ग्रंथ दरबार साहिब गुरुद्वारे में गुरबाणी पर संगीत की थाप उनके वंशज ही करते थे। नानक और मरदाना एक ही गांव में पैदा हुए। ये तलवंडी में हुआ, जो अब पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है।
तब गांवों में आमतौर पर हिंदू-मुसलमानों के बीच कोई खाई नहीं थी। सब मिलजुलकर रहते थे करीब 300-400 साल पहले हमारी सामाजिक संरचना यूं भी खासी अलग और भाईचारे वाली होती थी। नानक और मरदाना दोनों बचपन के दोस्त थे। हालांकि मरदाना बड़े थे। ऐसे भी बचपन की दोस्ती ना तो धर्म की दीवारों को मानती है और ना ही ऊंच-नीच को, नानक बड़े और अमीर खानदान से वास्ता रखते थे तो मरदाना उस मुस्लिम मीरासी परिवार से ताल्लुक रखते थे, जो गरीब थे और जिनका ताल्लुक संगीत के साजों से था। राम दी चिड़िया, राम दा खेत चुग लो चिड़ियो, भर-भर पेट।। यह लिखी गयी दो लाइन्स गुरुनानक जी की जिंदगी भर की फिलोसोफी को बयां कर देती हैं।
अतः अगर हम पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गुरु नानक जयंती महोत्सव 15 नवंबर 2024 पर विशेष-सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होआ। वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह श्रद्धा भाव से आंखें बिछाए भक्तगण के नयन तृप्त हुए। पूरी दुनियां में गूंजा, धन गुरु नानक सारा जग तारिया- प्रकाशोत्सव की पावन बेला से जग पवित्र हुआ।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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