के. एल. महोबिया, अमरकंटक । पर्यावरण के चिंतक पांच जून को पर्यावरण दिवस पर गहन चर्चा करके अपने कार्य क्षेत्र के अनेक प्रकार की उपलब्धियों की गिनती करा कर श्रेय लेने की होड़ में लग जाते हैं। वास्तव में पर्यावरण की क्षति गंभीर चिंता का विषय और मुद्दा है। मेरे समझ के परे है कि सरकार वृक्षारोपण का कार्यक्रम बड़े धूमधाम से कराती है। चित्रों, छवियों, प्रतिबिंब के माध्यम से अपार यश वैभव बटोर लेती है और कीर्तिमान स्थापित करती है परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात।
हम बचपन से पर्यावरण के बारे में संरक्षण की बात सुनते आए हैं परंतु इस पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रम से हम कितने लाभान्वित हुए यह मुझे समझ में नहीं आता है। क्योंकि मैं आस-पास पड़ोस में वृक्ष को काटे जाना अवश्य देखता हूं किंतु उतनी मात्रा में वृक्षारोपण नहीं देख पा रहा हूं अतः मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं ना कहीं अवश्य कमी हमारी सोच में है। हम अपनी प्राण वायु से जीवन तत्वों को बचाने के नाम पर दिखावा कर रहे हैं और स्वयं के साथ छल कर रहे हैं।
हमारी सरकारें पर्यावरण संरक्षण के नाम पर राजनीति करते हुए वोट बैंक का जरिया मानते हैं कई बार ऐसा देखा जाता है जब वन विभाग द्वारा किसी तस्कर पर कार्यवाही की जाती है तब कोई ना कोई ऊपर से दबंग राजनीतिक पद आसीन व्यक्ति उस तस्कर को बचाने के लिए भरसक प्रयास करता है परिणाम यह होता है कि वृक्ष काटे जा रहे हैं, वृक्ष लगाए जा रहे हैं परंतु वृक्षारोपण का परिणाम निर्मूल्य है।
वृक्ष ही मानव जीवन को संरक्षित करने के लिए प्राणवायु जीवन दान देने के लिए अहम हिस्सा है। मानव के जीवन काल में एक वृक्ष से जितनी ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है उस वृक्ष के काटे जाने पर उसकी भरपाई नन्हे छोटे-मोटे पौधे नहीं कर पाते हर एक व्यक्ति को काटे जाने के परिणाम स्वरूप पहले से ही वृक्षारोपण कार्यक्रम किए जाने चाहिए। जिससे काटे जाने वाले वृक्षों की भरपाई की जा सके अगर नहीं ऐसा हुआ तो आगे आने वाले समय में जीवन के लिए अनेकतम खतरे सामने होंगे। इसकी भरपाई कर पाना हमारे लिए संभव नहीं होगा।
पर्यावरण मनुष्य जीवन का अभिन्न अंग है और प्रकृति पर्यावरण को संरक्षित ना करने के कारण आज जलवायु परिवर्तन बड़ी तेजी से हो रहा है। आज हम देख रहे हैं की जलवायु में अत्यधिक परिवर्तन हो रहा है फल स्वरूप पर्यावरण के कारण क्षरण ओजोन परत में खिंचाव बढ़ता हुआ रेगिस्तान जंगलों का कटाव सुप्त ज्वालामुखी क्यों का उठना लहरें सुनामी तूफान अनेक कई कारण है जिससे मानव जीवन की छाती हो रही है। वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण मरूभूमि या मरुस्थल का विस्तार हो रहा है जिससे खेती युक्त जमीन की कमी हो रही है या जंगल खत्म हो रहा है जिससे तापमान में आशातीत वृद्धि हुई है और इसी तापमान में वृद्धि के परिणाम स्वरूप पराबैंगनी किरणों को रोकने वाली ओजोन परत में शरण के कारण लोगों को त्वचा रोग अनेक प्रकार की बीमारियों का आगाज कर लिया गया।
आज मानव जीवन की आवश्यकता है कि पर्यावरण संरक्षित करें पेड़ पौधे लगाए पेड़ पौधों की कमी के कारण आज वर्षा की कमी देखी जाती है साथ ही साथ घटना चक्र ऋतु चक्र में परिवर्तन हो रहा है। मानव जीवन को बचाना अत्यंत आवश्यक है इसी तरह पर्यावरण असुरक्षित रहा तो भविष्य की पीढ़ियां खत्म हो जाएंगी। आगे आने वाली सदी में हमारी पीढ़ियां विनाश के कगार पर बैठी हुई नजर आएंगी। आज मनुष्य जीवन में विकास की चाह ने जीवन के चक्र को तोड़ दिया है जो जीव विज्ञान के घटक चक्र हैं उनमें कमी आई है और इस प्रकार से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा है। जिसके परिणाम स्वरूप हमें अनेक प्रकार के खतरे महसूस हो रहे हैं। अगर पर्यावरण बचाया नहीं गया तो भावी भविष्य ही खत्म हो जाएगा। आज पेड़ पौधे वनस्पतियां जीव जंतु जंगल आदि को संरक्षित करने की आवश्यकता है। इन्हीं के कारण मनुष्य का जीवन इस धरती पर बचा रह सकता है।
अगर पेड़ पौधे वनस्पतियां जीव-जंतु संरक्षित नहीं किए गए तो जीवन खत्म हो सकता है अतः जीवन को बचाने के लिए संरक्षित करना जरूरी है। विश्व के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट लगातार पर्यावरण घटना चक्र पर नजर रखते हुए अपनी रिपोर्ट हर वर्ष प्रेषित की जाती है परंतु परिणाम निराधार होता है। हमारी सरकारें भी मानव जीवन को जागरूक करने के लिए कार्य कर रही है किंतु थोड़ी सी लापरवाही या राजनीतिक स्वार्थ और पूर्ण मंशा की कमी के कारण पर्यावरण की क्षति बड़ी तीव्रता से हो रही है परिणाम स्वरुप ध्वनि वायु जल भूमि मृदा का क्षरण हो रहा है जिससे पर्यावरण खतरे में है यानी मानव जीवन खतरे में है। आज समाज, सरकार और आम नागरिक को इसकी चिंता करनी चाहिए अन्यथा भविष्य की पीढ़ियां पर्यावरण के अभिशाप से मुक्त नहीं हो पाएंगी।
के. एल. महोबिया
अमरकंटक, अनूपपुर, मध्यप्रदेश