श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता : “आजादी के अमृत महोत्सव” वर्ष में अपने देश के गौरवमयी ‘संविधान दिवस’ (26 नवम्बर) पर आप सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई और विश्व के वृह्तम संविधान को हार्दिक नमन करते हुए अनंतकाल तक के लिए भारतीय संविधान की सबलता की कामना करता हूँ।” प्रत्येक देश की भाँति ही हमारे देश भारत की शासन-व्यवस्था को सुचारू रूप से गति देने के लिए अपना खुद का लिखा हुआ हमारा अपना संविधान है। स्वतंत्र भारत में भारत सरकार ने 26 नवम्बर, 1949 अपने नवनिर्मित ‘संविधान’ को अंगीकृत किया गया। अतः सम्पूर्ण भारत में प्रतिवर्ष 26 नवम्बर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में पालन किया जाता है।
देश की आजादी के एक वर्ष पूर्व ही ‘भारतीय संविधान सभा’ के लिए जुलाई 1946 में चुनाव हुए थे और उसमें नये संविधान निर्माण हेतु एक विशेष सभा का गठन किया गया था। इसकी पहली बैठक दिसंबर 1946 को हुई थी। इस सभा में 299 सदस्य थे, जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। इसी बीच 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हो गया। देश के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान निर्माण सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1947 से आरम्भ कर दिया।
संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की विभिन्न सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने गए थे। पंo जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इसमें से डॉ. भीमराव अंबेडकर को गरिमामय कानून मंत्री का पद प्रदान किया गया था।
कानून मर्मज्ञ डॉ. भीमराव अंबेडकर को ‘भारतीय संविधान की प्रारूप समिति’ का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। भारतीय संविधान लिखने वाली सभा ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में विभिन्न देशों के संविधान का गंभीर अध्ययन किया तथा देश के सभी वर्ग के नागरिकों के सम्पूर्ण विकास के लिए गुणवत्ता युक्त नियमों को बारीकी से जाँच-परख कर उनका क्रमबद्ध संग्रह करके 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में भारतीय संविधान का निर्माण किया। संविधान सभा में कुल 12 अधिवेशन हुए तथा 166 दिन बैठक की गई और अंतिम दिन 284 सदस्यों ने इस पर अपने-अपने हस्ताक्षर किये।
इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की भी स्वतन्त्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में संविधान सभा के सभी 389 सदस्यो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे भारत सरकार ने 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत कर लिया। भारतीय संविधान में मूल रूप से 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे और इसमें केवल 8 अनुसूचियाँ थीं। इस सविधान में सर्वाधिक प्रभाव ‘भारत शासन अधिनियम 1935’ का है। उसमें से लगभग 250 अनुच्छेद इस अधिनियम से लिये गए हैं। वर्तमान समय में इसमें 395 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियाँ हैं और ये 25 भागों में विभाजित है। गणतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से देश के लिए नवीन संविधान को अमल में लाया गया।
इसी दिन की याद में हम भारतीय प्रतिवर्ष 26 जनवरी को अपना ‘गणतंत्र दिवस’ के रूप में मनाते हैं। हमारे देश के संविधान के अंग्रेजी स्वरूप को कैलिग्राफी शिल्पी प्रेमबिहारी नारायण रायजादा (दिल्ली) ने छः महीनों में अपने सुंदर कैलिग्राफी में हाथ से लिखा, जबकि हिंदी भाषा में इसे गवर्नमेंट कॉमर्स प्रेस के कर्मचारी नासिक निवासी वसंत कृष्ण वैद्य ने हाथ से लिखा। शान्तिनिकेतन के 70 वर्षीय वयोवृद्ध महान शिल्पी नंदलाल बोस (मूल निवासी हवेली खड़गपुर, मुंगेर, बिहार) ने संविधान के पन्नों पर अतिसुंदर चित्रांकन किया, जबकि इसको भारतीय संस्कृति के अनुरूप चित्रों से अलंकृत शिल्पी नन्दलाल बोस के शान्तिनिकेतन के ही आज्ञाकारी शिष्य व्यौहार राममनोहर सिन्हा (मूल निवासी जबलपुर) ने किया।
संविधान की मूलरूप हस्तलिखित काँपियाँ संसद भवन की लाइब्रेरी में एक खास ‘हीलियम केस’ में रखी गई हैं। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने हाथ से लिखी गई संविधान के दो कॉपियों पर संसद भवन के सेंट्रल हॉल में दस्तखत किए थे। भारतीय संविधान में अब तक 105 बार संशोधन किया जा चुका है, जबकि संविधान संशोधन के लिए अब तक 127 बिल लाए जा चुके हैं।
‘संविधान सभा के प्रारूप समिति’ के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष (2015) के अवसर पर पहली बार भारत सरकार द्वारा ‘संविधान दिवस’ (26 नवम्बर) सम्पूर्ण भारत में मनाया गया तथा तब से अब तक अनवरत प्रतिवर्ष 26 नवम्बर को सम्पूर्ण भारत में नियमित रूप से ‘संविधान दिवस’ मनाया जा रहा है। हलाकि इससे पहले इसे ‘राष्ट्रीय कानून दिवस’ के रूप में मनाया जाता था। देश के संविधान के बारे में देश के नागरिकों के बीच जागरूकता लाने और संवैधानिक मूल्यों का प्रचार तथा बचाव करने के उद्देश्य से अपने देश में प्रतिवर्ष ‘संविधान दिवस’ मनाया जाता है।
संविधान सभा के निर्माण के समय सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है, जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख ‘राष्ट्रपति’ को माना गया है। भारत के संविधान के अनुसार केन्द्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन है, जिन्हें राज्यों की परिषद ‘राज्यसभा’ तथा लोगों का सदन ‘लोकसभा’ के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे परामर्श देने के लिए एक विशेष ‘मंत्रिपरिषद’ है, जिसका प्रमुख ‘प्रधानमन्त्री’ होते हैं।
राष्ट्रपति इस ‘मन्त्रिपरिषद’ की सलाह के अनुसार अपने प्रशासकीय कार्यों का निष्पादन करते हैं। इस प्रकार देश की वास्तविक कार्यकारी शक्ति ‘मन्त्रिपरिषद’ में ही निहित रहती है। ‘मन्त्रिपरिषद’ ही सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोक सभा) के प्रति उत्तरदायी है। केन्द्रीय प्रशासित भू-भागों को ‘संघराज्य क्षेत्र’ कहा गया है।
भारत के प्रत्येक राज्य में एक ‘विधानसभा’ हैं। कुछ राज्यों में ‘विधान सभा’ के अतिरिक्त एक उपरी सदन ‘विधान परिषद’ भी हैं। ‘राज्यपाल’ राज्य के प्रमुख होते हैं। राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है। मन्त्रिपरिषद, जिसका प्रमुख ‘मुख्यमन्त्री’ होते हैं, जो राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देने के कार्य करते हैं।
संविधान की प्रस्तावना :
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”