(संस्मरण मुम्बई के गोरेगांव स्थित योगेश जी की आवास मधुबन में पत्रकार पारो शैवलिनी से हुए बातचीत पर केन्द्रित)
पारो शैवलिनी
60 के शुरुआती दशक में लखनऊ से एक गोरा-चिट्टा लड़का काम की तलाश में बम्बई आया। उनके साथ उनका एक दोस्त सत्यप्रकाश भी आया था। योगेश को भरोसा था कि सिनेमा जगत में पहले से स्थापित उनके फुफेरे भाई व्रजेन्द्र गौड़ जो एक जाने-माने पटकथा व संवाद लेखक थे, उनसे सहयोग मिलेगा।
मगर उनकी इस बेरुखी से योगेश से कहीं ज्यादा विचलित सत्यप्रकाश (सत्तो) हुए। वापसी पर सत्तो ने जैसे एलान सा कर दिया कि लल्ला (योगेश जी का घरेलू नाम) तुम्हें फिल्म लाईन में ही कुछ करके दिखाना होगा। व्रजेन्द्र जी की बेरुखी ने योगेश को जो दर्द दिया, उस बेरुखी ने उसके कवित्त-मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा और अपने मन की पीड़ा को कागज पर उकेरना शुरू किया।
एक दिन योगेश के नये मित्र बने हास्य अभिनेता भगवान सिन्हा ने उनकी मुलाकात संगीतकार रोबिन बनर्जी से करवा दी। योगेश ने बताया, संगीतकार से मिलने के बाद काम के लिये इधर-उधर भटकना उनका बंद हो गया। रोबिन को भी एक स्थायी गीतकार मिल गया।
योगेश के मिलने के पूर्व संगीतकार की तीन फिल्में रिलीज हो चुकी थी। वजीरे आलम, इंसाफ कहां है और मासूम। इन तीनों फिल्मों में रोबिन के लिए अलग-अलग गीतकारों ने गाने लिखे। मगर 1962 में आई बीजे पटेल की फिल्म सखी में रोबिन के सारे छः गाने योगेश ने लिखे जो काफी लोकप्रिय हुए। योगेश का पहला गाना मन्ना डे और सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में रिकार्ड हुआ।
बोल थे-“तुम जो आओ तो प्यार आ जाये, जिन्दगी में बहार आ जाये।” सचमुच इस फिल्म ने रोबिन और योगेश दोनों की जिंदगी में जैसे बहार ला दिया। सखी रोबिन की सफलता के बाद रोबिन बनर्जी ने लगभग दस फिल्में की। सभी फिल्मों के लिए योगेश ने गाने लिखे। फिल्म के गीत-संगीत के क्षेत्र में रोबिन-योगेश की जोड़ी वैसी ही हिट रही जैसे नौशाद-शकील, रवि-साहिर, शंकर जयकिशन-शैलेंद्र, लक्ष्मी प्यारे-आनंद बक्शी आदि। योगेश ने बताया, हिन्दी सिनेमा जगत में जहां रोबिन ने मुझे पहचान दिलाई, वहीं संगीतकार सलिल चौधरी ने मेरे गीतों को ऊंचाई प्रदान की।
नौशाद को छोड़कर तकरीबन हर बड़े संगीतकारों के लिए योगेश ने गीत लिखे। फिल्म अंग्रेजी में कहते हैं योगेश की अंतिम फिल्म साबित हुई जिसमें उनका लिखा ठुमरी–“पिया मो से रुठ गये” काफी लोकप्रिय हुआ।इस ठुमरी को सत्येंद्र त्रिपाठी ने गाया जो गीतकार के अंतिम दिनों में उनके इतने करीब रहे कि उनका अंतिम सांस भी सत्येंद्र की बांहों में ही 29 मई 2020 को मुंबई के बसोई स्थित उनके आवास पर ही छूटा। तत्काल सत्येंद्र ने मुझे फोन पर बताया, पारो जी! मैं अकेला हो गया। योगेश जी हम सब को छोड़ कर चले गये। सचमुच, मेरा पिया मुझसे रुठ गए।