सोनार बांग्ला 1962 के बाद से आजतक सिर्फ छलावा, नारे हैं नारों का क्या?

पश्चिम बंगाल को सही मायनों में बंगाल के किसी मुख्यमंत्री ने सोनार बांग्ला बनाया था तो निःसंदेह एकमात्र नाम भारतरत्न डॉ० विधान चंद्र राय का ही लिया जा सकता है, जो कि सही मायनों में बंगाल और देश विभाजन के बाद पश्चिम बंगाल को नए सिरे से गढ़ने के शिल्पकार थे। वे बंगाल के द्वितीय मुख्यमंत्री थे, 14 जनवरी 1948 से लेकर अपनी मृत्यु 1 जुलाई 1962 तक अर्थात 14 सालों तक मुख्यमंत्री रहे। बंगाल में जितने भी बड़े-बड़े कल कारखाने लगे या शहरों की उन्नति हुई सब उनके ही कार्यकाल में। उनके बाद जितने भी मुख्यमंत्री या पार्टियों ने सोनार बांग्ला का नारा दिया वह सिर्फ खोखला नारा ही साबित हुआ। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि बाद की सभी राज्य सरकारें संयुक्त मोर्चा से लेकर वाममोर्चा और फिर आज की वर्तमान सरकार सभी ने हमेशा से ही केंद्र सरकारों की उपेक्षा करती आई और यही वजह रही कि केंद्र ने भी बंगाल को उपेक्षित छोड़ दिया।

इन राजनीतिक दलों की आपसी राजनीति के चलते बंगाल की जनता आज लगभग 60 वर्षों से इसका खामियाजा भुगत रही है। बंगाल के पड़ोसी राज्यों से युवा एक समय रोजगार के लिए पश्चिम बंगाल का रुख करता था और आज पश्चिम बंगाल का युवा रोजगार के जुगाड़ में दूसरे राज्यों की ओर रुख करते हैं।
कड़वी सच्चाई यही है कि आज बंगाल के ज्यादातर संपन्न और मध्यमवर्गीय लोग स्वास्थ सेवाओं के लिए दक्षिण भारत का रुख करते हैं जबकि उच्च शिक्षा के लिए भी युवाओं को उत्तर या दक्षिण भारत की ओर पलायन करना पड़ता है। आज पश्चिम बंगाल के राजनीतिज्ञ विशेषकर शासन करने वाले सभी अपने मुंह से राज्य की जितनी भी बड़ाई कर ले परंतु पश्चिम बंगाल आज रोजी रोजगार से लेकर स्वास्थ्य और शिक्षा में लगातार पिछड़ता जा रहा है।

इसके मूल में इन 60 वर्षों में लगातार यहाँ की राज्य सरकारों का केंद्र के साथ असहयोगात्मक रवैया रहा है। सभी पार्टियों ने सोनार बांग्ला के नाम पर बंगवासियों की भावनाओं को जगाकर सिर्फ वोट लेने का काम किया और अब एक बार फिर से भाजपा ने सोनार बांग्ला के नारों को उछाला है देखते हैं अगर इनकी सरकार आई तो बंगाल का खोया हुआ गौरव वापस आता है और सही मायनों में सोनार बांग्ला होता है या सिर्फ वादे ही! वैसे भी यह तो सिर्फ नारे हैं और नारों का क्या?

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