स्मार्त वैष्णव समाज 17 को और निम्बार्क वैष्णव 18 जून को मनाएगा निर्जला एकादशी

वाराणसी। उदया तिथि के आधार पर निर्जला एकादशी व्रत 17 जून को रखा जाएगा। निर्जला एकादशी व्रत का पारण स्मार्त लोग 18 जून को करेंगे। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, स्मार्त लोग निर्जला एकादशी व्रत 17 जून को रखेंगे। वहीं वैष्णव लोग 18 जून को निर्जला एकादशी व्रत रखेंगे।

वैष्णव और स्मार्त में क्या अंतर है? कई बार आप व्रत उपवास की तिथि निर्धारित करते समय दुविधा में पड़ जाते हैं। क्यों वैष्णवों और स्मार्तों के लिए अलग-अलग तिथि बताई जाती है। लोग समझ नहीं पाते हैं कि वह किस तिथि को व्रत करें।

कौन हैं वैष्णव? जो व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रीहरि को अपना सर्वस्व सौंप देता है और संन्यास ग्रहण करके भागवत मार्ग पर बढ़ जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय में शामिल होने के लिए इसके गुरु या धर्माचार्य से विधिवत दीक्षा लेनी होती है। जिसके बाद गुरु से कंठी या तुलसी माला गले में ग्रहण करना होता है। वैष्णव व्यक्ति के शरीर पर तप्त मुद्रा से शंख चक्र का निशान गुदवाया जाता है। ऐसे ही धर्मनिष्ठ व्यक्ति ही वैष्णव कहे जा सकते है।

वैष्णव गृहस्थ धर्म से दूर रहने वाले लोग हैं। वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं। जिन्हें छ: गुणों ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण भगवान या ‘भगवत्’ कहा गया है। उन भगवत् के उपासक भागवत कहे जाते हैं।

कौन हैं स्मार्त? इसके विपरीत सामान्य सांसारिक नियमों का पालन करने वाले लोग स्मार्त कहे जाते हैं। अर्थात् ऐेसे व्यक्ति जो वेद-पुराणों के पाठक, आस्तिक, पंचदेवों (गणेश, विष्णु,‍ शिव, सूर्य व दुर्गा) के उपासक और गृहस्थ धर्म का पालन करने वाले होते हैं। उन्हें स्मार्त कहा जाता है। स्मार्त श्रुति स्मृति में विश्वास रखता है। उसकी आस्था पांच प्रमुख देवताओं में होती है वह स्मार्त है।

प्राचीनकाल में देश भर में अलग-अलग देवता को मानने वाले अलग-अलग संप्रदाय के लोग थे। श्री आदिशंकराचार्य द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि सभी देवता परमब्रह्म परमात्मा के स्वरूप हैं। तब जन साधारण ने उनके द्वारा बतलाए गए मार्ग को अंगीकार कर लिया तथा स्मार्त कहलाये।

वैष्णवों और स्मार्तों के व्रत में फर्क : प्रायः पंचांगों में भगवान विष्णु से जुड़े एकादशी या जन्माष्टमी जैसे व्रत त्योहार स्मार्त जनों के लिए एक दिन पहले और वैष्णव लोगों के लिए दूसरे दिन होता है। इससे जनसाधारण भ्रम में पड जाते हैं। लेकिन इसकी भी व्याख्या है। दरअसल दशमी तिथि का मान 55 घटी से ज्यादा हो तो वैष्णव जन द्वादशी तिथि को व्रत रखते हैं अन्यथा एकादशी को ही रखते है। इसी तरह स्मार्त जन यदि अर्ध्दरात्रि को अष्टमी पड़ रही हो तो उसी दिन जन्माष्टमी मनाते हैं। जबकि वैष्णव संन्यासी उदया तिथि जन्माष्टमी मनाते हैं एवं व्रत भी उसी दिन रखते हैं।

वैष्णव संप्रदाय को पांचरात्र भी कहते हैं : वैष्णव सम्प्रदाय की पांचरात्र की भी संज्ञा दी गई है। इसकी भी व्याख्या अलग अलग ग्रंथों में विशेष रुप से की गई है।
‘महाभारत’के अनुसार चार वेदों और सांख्ययोग के समावेश के कारण यह नारायणीय महापनिषद् पांचरात्र कहलाता है। – नारद पांचरात्र के अनुसार इसमें ब्रह्म, मुक्ति, भोग, योग और संसार–पाँच विषयों का ‘रात्र’ अर्थात ज्ञान होने के कारण यह पांचरात्र है।
‘ईश्वरसंहिता’, ‘पाद्मतन्त’, ‘विष्णुसंहिता’ और ‘परमसंहिता’ ने भी इसकी भिन्न-भिन्न प्रकार से व्याख्या की है।

शतपथ ब्राह्मण’ के अनुसार सूत्र की पाँच रातों में इस धर्म की व्याख्या की गयी थी, इस कारण इसका नाम पांचरात्र पड़ा- वैष्णव धर्म के ‘नारायणीय’, ऐकान्तिक’ और ‘सात्वत’ नाम भी प्रचलित रहे हैं।

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री मो.
99938 74848

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