बर्दवान । मानकर कॉलेज के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी दिवस, हिंदी पखवाड़ा एवं एकल व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान का विषय था – हिंदी का वैश्विक परिदृश्य : चुनौतियां एवं संभावनाएं। मुख्य वक्ता थें बर्दवान विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. शशि कुमार शर्मा। आयोजन का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित द्वारा किया गया। इस अवसर पर आयोजन का शुभारंभ करते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सुकांत भट्टाचार्य ने कहा कि हिंदी हमारे देश की सर्वप्रमुख भाषा है। हमें बिना किसी विवाद और मतभेद में न जाकर इसकी सम्मान करनी चाहिए और इसके विकास के लिए हर संभव प्रयास करनी चाहिए। इसे राष्ट्र भाषा की दर्जा मिलनी चाहिए।
प्रमुख वक्ता बर्दवान विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. शशि कुमार शर्मा ने ‘हिंदी का वैश्विक परिदृश्य : चुनौतियां एवं संभावना’ की चर्चा अपने एकल व्याख्यान में विस्तार से किया। डॉ. शशि कुमार शर्मा ने कहा कि “जिस प्रकार चारों दिशाओं में अगर सूर्य का प्रकाश फैला हो तो छोटे-छोटे दीपक या मोमबत्ती का कोई औचित्य नहीं होता, ठीक उसी प्रकार अगर हम सभी एक मंच पर एकत्रित होकर, एक स्वर में हिंदी रूपी सूर्य को जन-जन तक सम्प्रेषित करने की भाषायी चेतना देशवासियों में जागृत कर दें, उसे प्रकाशवान या दीप्तिमान बना दें तो फिर न ही हिंदी पखवाड़े की आवश्यकता होगी और न ही हिंदी दिवस की।”
इसी कड़ी में उन्होंने यह भी कहा कि “अगर बत्तीसों दांत मुख में अपने श्रेष्ठ अवस्था में हो तो जबड़ा और मुख भी श्रेष्ठतम अवस्था में रहता है, ठीक उसी प्रकार जब हमारी सभी बोलियां और भाषाएं श्रेष्ठ अवस्था में रहेगी तो हमारी हिंदी भी श्रेष्ठतम अवस्था में तटस्थ रहेगी।” अपने वक्तव्य में उन्होंने यह भी कहा कि उदारीकरण की प्रक्रिया, आधुनिकीकरण का आकर्षण, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विस्तार से हिंद जहां एक ओर संघर्षों एवं चुनौतियों का सामना करती दिख रही है, वहीं दूसरी ओर मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम त्रिनिदाद, गयाना आदि विदेशी देशों में हिंदी अपनी परचम लहरा रही है। हिंदी भाषा के इतिहास, प्रकृति और संस्कृति के गुरुत्वपूर्ण बिंदुओं को डॉ. साहब ने उद्धरण के साथ अपने वक्तव्य में पिरोया।
विदेशों में हिंदी शिक्षण, विपुल साहित्य, अनुवाद, हिंदी में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएं और रोजगार की संभावनाओं पर उन्होंने विस्तार से सभागार में अपनी बात रखी। अपने वक्तव्य के इसी कड़ी में उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी को इंस्टिट्यूशनल भाषा बनाने का मार्ग प्रशस्त करने में हम सभी को अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। बाजारवाद का तिलस्म, पोपुलर एवं कल्चरल संदर्भों को पाठ्यक्रम में कैसे स्थान मिले, उसकी आधारशिला क्या-क्या हो आदि केंद्रीय बिंदुओं का मंथन तथा भारत के मूल्यवान विरासतों व साहित्य के कर्णधारों को जन-जन तक पहुंचाकर ही हिंदी की सेवा सही अर्थों में कई जा सकती हैं।
हिंदी विभाग की सह – प्राध्यापिका डॉ. कुसुम राय ने हिंदी में अनुवाद की भूमिका एवं महत्व पर विचार रखते हुए कहा कि विश्व साहित्य का आज हिंदी में अनुवाद हो रहा है जो यह सिद्ध करता है कि हिंदी का भविष्य उज्जवल है। इस अवसर पर हिंदी विभाग के भूतपूर्व छात्र प्रेम कुमार साव और सुनील कुमार नायक भी अपने वक्तव्य में कहा कि हमारा लगाव हिंदी के प्रति होनी चाहिए। वरिष्ठ और सभी की प्रिय अध्यापिका संयोगिता वर्मा ने कहा कि हिंदी संस्कार की भाषा है।
प्रोफेसर मकेश्वर रजक ने भी वक्तव्य रखते हुए कहा कि आज हिंदी विश्व की भाषा बन चुकी है। दिनोदिन हिंदी बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है। विदेशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा और साहित्य पढ़ाई जा रही है। लेकिन अपने ही देश में हिंदी कहीं न कहीं दुर्नीति की शिकार है। इस अवसर पर हिंदी विभाग की छात्रा अंजली शर्मा एवं नैना ठाकुर ने शोधपत्र वाचन किया। इस अवसर पर हिंदी निबंध एवं छात्र – संगोष्ठी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था जिसमें अव्वल आए छात्र छात्राओं को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।
हम सभी जानते हैं कि अगर वाहन में चालक की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण रहती है तो संचालन में संचालक की। चालक न रहें तो यात्री अपने गंतव्य तक न पहुँचे पाये और संचालक न रहें तो संगोष्ठि। अतः श्रेद्धय बैजू नोनिया, धरेंद्र कुमार पासी और पूजा गुप्ता ने संचालन के द्वारा सभागार को भी ज्योतिर्मय बनाये रखा एवं हिंदी को बिंदी की भांति रविन्द्र हॉल के पवित्र-प्रांगण में आलोकित किया।
“अंत भला तो सब भला के तहत” अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. मकेश्वर रजक ने करते हुए कहा कि गौर तलब हो कि गत अठारह सितंबर को पश्चिम बंगाल के सूचना एवं प्रसारण विभाग के अंतर्गत हिंदी अकादमी द्वारा आयोजित हिन्दी लोकगीत गायन प्रतियोगिता में मानकर कॉलेज की ही छात्राओं ने प्रथम स्थान प्राप्त कर मानकर कॉलेज का नाम रौशन किए। उन्हें भी आज इस समारोह में सम्मानित किया गया।