हिंदी दिवस और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जयंती के उपलक्ष्य में संगोष्ठी एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह संपन्न

नैहट्टी। रविवार 15 सितंबर 2024 को संध्या 4:30 बजे गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार व ‘पड़ाव’ साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी दिवस एवं सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जयंती के उपलक्ष्य में एक अंतरंग संगोष्ठी एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं थीं वरिष्ठ कवयित्री, कथाकारा, आलोचक, समाजसेवी डॉ. इंदु सिंह एवं वक्ता के रूप में जगद्दल श्री हरि उच्च विद्यालय के शिक्षक डॉ. कार्तिक कुमार साव और गारुलिया मिल हाई स्कूल (एचएस) के शिक्षक डॉ. आनंद श्रीवास्तव उपस्थित थे। गणमान्य विद्वानों द्वारा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के छायाचित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के संपूर्ण साहित्य पर अपने विचार प्रकट करते हुए संगोष्ठी के वक्ता डॉ. आनन्द श्रीवास्तव ने कहा कि- सर्वेश्वर के कवि व्यक्तित्व का अगर हम विश्लेषण करें तो वे हमें एक मूल्यवादी और लोकवादी कवि के रूप में नजर आते हैं। स्वातंत्र्योत्तर भारत में विकसित और अर्जित मूल्य जैसे मानव स्वातंत्र्य, आत्माभिमान, मानव वैशिष्ट्य, जिजीविषा, आत्मविश्वास और संघर्ष शक्ति को सर्वेश्वर ने अपनी रचनाओं में स्थापित किया है। वे सृजन के माध्यम से आशावाद की राह अपनाते रहे हैं। जब-जब हम मूल्य संकट की स्थिति महसूस करेंगे सर्वेश्वर की रचनाएं हमें एक नई दिशा दे जायेगी।

संगोष्ठी के वक्ता डॉ. कार्तिक कुमार साव ने हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में हिन्दी की दशा, दिशा और संभावना विषय पर अपने विचार श्रोताओं से साझा करते हुए कहा कि- हिंदी भारतीय जनमानस की आत्मा की भाषा है। अगर हम चाहते हैं कि संपूर्ण भारत में एकता विद्यमान हो तो भाषाई एकता आवश्यक है क्योंकि धर्म और जाति से भी अधिक ताकतवर भाषा होती है। अगर हमें हिंदी के भविष्य को समझना है तो इसके बहुआयामी स्वरूप को समझना होगा।

हिंदी को बोलचाल की भाषा, ज्ञान-विज्ञान की भाषा, नौकरी की भाषा, वाणिज्य की भाषा, व्यापार की भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा, मनोरंजन की भाषा, सोशल मीडिया की भाषा, यूट्यूब की भाषा, ओटीटी की भाषा के रूप में समझना होगा। हिंदी भाषी समाज को अपनी भाषा के प्रति मन में सम्मान और गौरव की भावना होनी चाहिए।

अध्यक्षीय भाषण में कहानीकार, वरिष्ठ आलोचक डॉ. इंदु सिंह ने कहा कि ‘हम यह जो तमाम खेमे और वाद के आधार पर साहित्यकारों का वर्गीकरण करते हैं उन्हें बाँट देते हैं यह अमान्य है। जैसे कोई अगर मार्क्स की विचारधारा से प्रभावित है तो वह पूजा नहीं करेगा, राष्ट्र की बात नहीं करेगा और करता है तो उसे सही न समझना यह एक संकुचित मानसिकता का परिचायक है। साहित्यकार इन सब बंधनों से मुक्त हो कर रचता है।

क्या राष्ट्र पर बात सिर्फ एक ही वर्ग के लोग कर सकते हैं, अन्य का अपने राष्ट्र, समाज, जाति, धर्म पर कोई अधिकार नहीं? हिन्दी भाषा के संदर्भ में अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी न कभी कमजोर थी, न कमजोर है और न आगे कभी होगी। रही बात प्रेम और सम्मान देने की तो इस पर हमें अवश्य ध्यान देना चाहिए।

छोटी-छोटी बातों में बदलाव कर हम हिन्दी को सम्मान भी दे सकते हैं और उसे मजबूत भी कर सकते हैं। हिन्दी में हस्ताक्षर करने की आदत हमें डालनी चाहिए। बिना किसी संकोच व हीनताबोध के हमें हिंदी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। यह छोटे-छोटे प्रयास ही हिन्दी के प्रसार को मजबूती प्रदान करेगा।’

इस अवसर पर सभी अतिथियों द्वारा सुप्रसिद्ध लेखिका माला वर्मा की लघुकथा संग्रह ‘मायरा’ व डॉ. बिक्रम कुमार साव द्वारा संपादित पुस्तक ‘दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र’ का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम में शिक्षक राजकुमार साव, शिक्षक अमरजीत पंडित, शिक्षक उत्तम कुमार ठाकुर, शिक्षक श्याम रजक, शिक्षक दिनेश दास, आकाश साव, राहुल चौधरी, आर्यन कुमार, आकाश कोईरी, सूरज साव, अमित कुमार शर्मा, लक्ष्मी कुमारी साव, शालिनी दास, मुकेश यादव सहित अन्य विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के विद्यार्थीगण उपस्थित रहें।

कार्यक्रम को सफल बनाने में ग्रंथागार के अध्यक्ष डॉ. मानबहादुर सिंह एवं संयोजक सुभाष कुमार साव की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन शिक्षक उत्तम कुमार ठाकुर ने एवं संचालन स्नेहा साव ने किया।

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