गाजीपुर : 15 अप्रैल, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के अमौरा ग्राम में एक अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक काव्य गोष्ठी स्व. अखिलेश्वर सिंह के नाम पर “पुकार” गाजीपुरी और चन्द्र भूषण सिंह के कुशल संयोजन में आयोजित की गई जिसमें गाजीपुर के जाने माने कवियों द्वारा अपने-अपने प्रतिनिधि रचनाओं के माध्यम से स्व. सिंह को काव्यांजलि दी गई। इस अभूतपूर्व कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र सिंह ने की, जिसका कुशल संचालन किया–भोजपुरी और हिन्दी के प्रख्यात कवि मिथिलेश गहमरी ने।
इस अवसर पर प्रधानाध्यापक लाल बचन सिंह, अभियंता राहुल सिंह, पूर्व ग्राम प्रधान परमहंस सिंह, इन्सपेक्टर शैलेन्द्र सिंह, नरेन्द्र सिंह सहित सैकड़ो गणमान्य व्यक्ति उपस्थित होकर, कार्यक्रम की शोभा में चार चाँद लगा दिए। कार्यक्रम का शुभारम्भ – वरिष्ठ कवि कामेश्वर द्विवेदी द्वारा सरस्वती वन्दना की प्रस्तुति के साथ हुआ। इस कार्यक्रम में – काव्य पाठ का आरम्भ करते हुए – एक ओर जहां रंग बहादूर सिंह ने स्व. सिंह को याद किया तो वहीँ दूसरी ओर व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर कुमार प्रवीण की रचना – ‘यह केवल हिन्दी ही नही है पूरा हिन्दूस्तान है’ को श्रोताओं की सराहना मिली।
एक ओर नव गीतकार कुमार शैलेन्द्र की रचना – ‘भुरभुरा कर घड़े दो धड़े हो गया’ तो वहीं दूसरी ओर राजेन्द्र भैया की रचना – तन का नही मन का इतिहास भी रचो’ ने लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया। एक ओर डॉ. अक्षय पान्डेय की रचना – ‘एक पल तू गीत जैसा मन बना ले’ तो वहीं दूसरी ओर अखंड गहमरी की रचना – ‘जिसे है प्यार अफजल से उसे अब मत बचाओ’ पर श्रोताओं की खूब वाह वाही मिली। एक ओर मिथिलेश गहमरी की रचना – ‘बदल इतनी सी हो जाए इबादत की रिवाजों में’ तो वहीं दूसरी ओर “पुकार” गाजीपुरी की गजल ‘सामने गर हो चुनौती जूझ जाना चाहिए’ ने सभी का मन मोह लिया। एक ओर आनंद कुशवाहा का सामाजिक कुरीति पर कुठाराघात करती रचना तो वहीं कामेश्वर द्विवेदी की मधुर नव गीत ने लोगों को झूमने के लिये बाध्य कर दिया।
एक ओर सुप्रसिद्ध हास्य कवि फजीहत गहमरी ने अपनी हास्य कविताओं से खूब ठहाके लगवाए तो वहीं दूसरी ओर अपनी रचना – ‘जब से सुना जलोटा को जसलीन मिल गई/सब काम धाम छोड़ भजन गाने लगा हूँ।’ – पर अनवरत तालियाँ बजती रही। डॉ. राजेन्द्र सिंह ने अपनी अध्यक्षीय वक्तव्य में सभी रचनाकारों सहित श्रोताओं और आयोजकों की सराहना करते हुए कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस मौके पर स्व. अखिलेश्वर सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए शशि भूषण सिह सहित सभी वक्ताओं ने कहा कि वे व्यक्ति नही बल्कि एक संस्था थे। कार्यक्रम के अंत में संयोजक चन्द्र भूषण सिंह ने सभी मानिन्द रचनाकारों श्रोताओं और व्यवस्थापकों को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित कर अभूतपूर्व कार्यक्रम सुसंपन्न किया।