दार्जिलिंग। जगह-जगह अवैध निर्माण! परिणामस्वरूप जोशीमठ में हर दिन जमीन धंस रही है, सड़क पर दरारें दिख रही हैं। घर टूट रहे हैं। पूरे जोशीमठ के निवासियों की रातों की नींद हराम हो गयी है। जोशीमठ के हालात को देखकर दार्जिलिंग की पहाड़ियों के आसपास भी चिंता बढ़ती जा रही है। जोशीमठ के दृश्य ने दार्जिलिंग और कलिम्पोंग की पहाड़ियों में बने निर्माणों को लेकर एक बार फिर दहशत पैदा कर दी है। नदियों और पहाड़ों से घिरे जोशीमठ की हालत देखकर सवाल खड़ा हो गया है कि क्या वहां इतनी बड़ी आपदा का कारण अनियंत्रित शहरीकरण है? दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, कार्शियांग या सिक्किम के लिए भी यही सवाल उठने लगा है। यह इलाका भूस्खलन और भूकंप की दृष्टि से भी संवेदनशील है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन यह सब जानता है। उसके बाद भी क्या आपदा को रोकने के लिए कोई बड़ा कदम उठाया जा रहा है?
हाल ही में दार्जिलिंग शहर क्षेत्र में 132 अवैध निर्माणों की पहचान की गई थी। हालांकि पिछले सितंबर से शुरू हुआ अभियान नगर पालिका के बदल जाने से रुक गया है। सरकार द्वारा भले ही बोर्ड का गठन कर दिया गया है, लेकिन नगरपालिका का काम कब शुरू होगा, पहाड़ीवासियों के मन में इसे लेकर सवाल है। अजय एडवर्ड की हामरो पार्टी, जिसने हाल ही में नगरपालिका में सत्ता खोई है, ने शिकायत की कि पार्टी को ऊंचे-ऊंचे-कंक्रीट जंगलों व अवैध निर्माणों पर हाथ डालने के कारण ही उन्हें बोर्ड खोना पड़ा। अजय ने खुद आरोप लगाया है कि विभिन्न पार्टियों ने मिलकर साजिश रची है। हालांकि, दार्जिलिंग नगर पालिका के निवर्तमान चेयरमैन रितेश पोर्टेल इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहते।
जीटीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनीत थापा ने कहा कि, ‘पहाड़ियों का बहुमंजिला अवैध निर्माण चिंता का कारण है। इसी खतरे को ध्यान में रखकर काम किया जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि दार्जिलिंग, कार्शियांग और कलिम्पोंग पहाड़ियां अभी भी भूगर्भीय रूप से विकसित होने की प्रक्रिया में हैं। यह क्षेत्र कई खंडित चट्टानों पर टिका है, जिनकी पहले से ही कम क्षमता है। इसके अलावा, उस चट्टान से जुड़ी मिट्टी बहुत ढिली होती है। इसलिए यदि आप पर्यटन या व्यावसायिक कारणों से पहाड़ी पर निर्माण करना चाहते हैं तो उचित योजना आवश्यक है।
अनियंत्रित और अनियोजित ओवरप्रेशर भी चट्टान और मिट्टी के भीतर से पानी की धारा को बदल देता है, जिससे कोई संरचना अधिक नाजुक हो जाती है। नतीजतन, जोशीमठ जैसी घटना कभी भी असंभव नहीं है। साल-दर-साल ढहने का डर बढ़ रहा है। जादवपुर विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख पार्थ बिस्वास ने कहा, “कई विशेषज्ञ संगठनों और संयुक्त अधिकारियों की सलाह से पहाड़ी पर एक निर्माण नियंत्रण प्राधिकरण की आवश्यकता है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, राज्य के लोक निर्माण अधिनियम के अनुसार, दार्जिलिंग शहर में 11.5 मीटर की ऊंचाई के भीतर मकान बनाने का नियम है। कालिम्पोंग, मिरिक या कार्शियांग में भी इसका पालन किया जाना चाहिए। नगरपालिका और कुछ सरकारी भवन केवल विशेष अनुमति से 13 मीटर के करीब हैं। कथित तौर पर, दार्जिलिंग सहित पहाड़ी शहरों में पिछले तीन दशकों में अवैध निर्माण और गगनचुंबी इमारतें देखी गई हैं। आरोप है कि न केवल ऊंचाई बल्कि नगर पालिका की मंजूरी के बिना मकान का डिजाइन भी तैयार किया गया है। पहाड़ी की ढलान को काटकर बहुमंजिला भवन बना दिया गया है। ड्रेनेज, पार्किंग तय नहीं एक इमारत के ऊपर दूसरी इमारत बनी हुई है। न केवल बाजार, दुकानें, होटल, रेस्तरां या कार्यालय क्षेत्र, बल्कि सैकड़ों निजी मकान भी अवैध निर्माण के तहत आयें है। विशेषज्ञों का मानना है कि पहाड़ी की ढलानों पर यह स्थिति बेहद खतरनाक है।