उज्जैन : सावित्रीबाई फुले देश की प्रथम शिक्षिका के प्रारंभिक जीवन में घर-परिवार से बाहर जाकर समाज सेवा करना विषय समय था। परन्तु पति महात्मा ज्योति बा फुले के मार्गदर्शन एवं सहयोग से पहले के समाज में जब नारी शिक्षा किसी पाप से कम नहीं समझी जाती थी। सावित्रीबाई फुले को लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने का दंड भुगतना पड़ा था। प्रथम महिला शिक्षिका बनी। उक्त विचार राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के द्वारा आयोजित आभासी संगोष्ठी में राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने व्यक्त किये। डॉ. चौधरी ने बताया कि कवित्री सावित्रीबाई फुले की प्रथम कविता ‘जाओ-जाओ, पढ़ो-लिखो और बनो मेहनती एवं आत्मनिर्भर बनो‘ थी।
संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता डॉ. टिलेकर दत्तात्रय माधवराव ने अपने उद्बोधन में बताया कि सावित्रीबाई फुले ने विधवा विवाह, तलाकशुदा महिलाओं के उद्धार के लिये कार्य किया। धर्म-शास्त्र का ज्ञान सभी जातियों को कराते हुए उनको अधिकार भी दिलाया। शिक्षा से पशुत्व से मनुष्यत्व प्राप्त होता है। फुले ने कविता में लिखा है। प्रकृति संवर्धन में मनुष्य को अग्रसर होना चाहिए। समारोह का शुभारंभ डॉ. रश्मि चौबे ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर किया एवं स्वागत भाषण डॉ. रजिया शेख ने दिया। विशेष अतिथि डॉ. सुरेखा मंत्री (राष्ट्रीय अध्यक्ष इकाई महिला) यवतमाल ने कहा कि फुलेजी ने विधवा विवाह की परम्परा शुरू की।
विशिष्ट अतिथि सुवर्णा जाधव ने फुले दम्पत्ति को नमन करते हुए कहा कि वे अपनी निष्ठा और निःस्वार्थ सेवा से फुले ने घोर विरोधियों को अपना बना लिया। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय मुख्य संयोजक डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने फुले दम्पत्ति के जीवन संबंधी अनेक संस्मरण सुनाये। संगोष्ठी में डॉ. बालासाहेब तोरस्कर, प्रतिभा मगर, डॉ. सुगंधा घरपडकर, सविता इंगले आदि ने भी संबोधित किया। संचालन महाराष्ट्र प्रदेश महासचिव डॉ. रोहिणी डावरे ने एवं आभार डॉ. भरत शेणकर प्रदेशाध्यक्ष ने माना।