श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा । काशी के वासी 126 वर्षीय बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज की चुस्ती-स्फूर्ति को देख कर दुनिया भर के अनगिनत नौजवानों की जवानी भी अवश्य ही शरमा जाती होगी। उनकी चुस्ती-स्फूर्ति को देख कर राष्ट्रपति भवन में पहले तो लोगों को विश्वास ही नहीं हो पाया कि बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज अपने जीवन में 126 बार भौगोलिक ठंडी, गर्मी, बरसात व वसंत को झेल चुके हैं, पर उनका पासपोर्ट और आधार कार्ड उनके दिव्य स्फूर्तिमान 126 वर्षीय स्वस्थ शरीर की प्रमाणिकता पर कानूनी मुहर लगाते हैं। भारत सरकार ने अपने देश के सबसे बुजुर्ग व्यक्तित्व बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज को ‘पद्मश्री’ से सम्मानित कर स्वयं को गौरवान्वित किया है।
कुछ दिन पूर्व राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक सम्मान समारोह में ‘पद्मश्री’ सम्मान के लिए बैठे विशिष्ठ जनों के बीच बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज के नाम की उद्घोषणा होते ही एक अति वयोवृद्ध व्यक्तित्व बहुत ही स्फूर्ति से अपने स्थान से उठा और समादृत महामहिम माननीय राष्ट्रपति के पास पहुँचने के पूर्व तीन बार ‘नंदीवत योग’ की मुद्रा में प्रणाम किया। ऐसा ही उन्होंने प्रधान मंत्री के समक्ष भी अपने दोनों पैर को मोड़कर हाथों को आगे कर उन्हें भी प्रणाम किया। जिनका अभिवादन स्वयं प्रधान मंत्री ने भी अपने दोनों हाथों को जोड़े और आगे कुछ झुक कर किया। फिर राष्ट्रपति भवन में उपस्थित सभी विशिष्ठ जनों ने खड़े होकर उस दिव्य व्यक्तित्व का अभिवादन किया। वह दिव्य व्यक्तित्व स्वस्थ्य तन और स्फूर्ति के स्वामी, बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज जी ही थे।
आयुश्रेष्ठ बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज का जन्म बंगाल के श्रीहट्टी जिले के हरिपुर नामक ग्राम वर्तमान बंगलादेश, तत्कालीन भारत में एक बहुत ही निर्धन परिवार में हुआ था। परिवार के किसी भी सदस्य को दो वक्त का भी भरपेट भोजन तक न नसीब हुआ करता था। उनके माता-पिता भीख माँगकर किसी तरह से अपना और अपने अबोध बच्चे का गुजारा किया करते थे। गरीबी से तंग आकर उन्होंने अपने चार वर्षीय अबोध बालक को उसके कुछ बेहतर भविष्य की कामना से नवद्वीप धाम के बाबा ओंकारनंद गोस्वामी के पास पहुँचा दिया। बाबा ओंकारनन्द गोस्वामी जी ने उस बालक का नाम ‘शिवानंद’ रखा। अब बालक शिवानंद के लिए गुरु बाबा ओंकारनन्द गोस्वामी जी ही सब कुछ थे। उनकी सेवा और कुछ पूजा-पाठ संबंधित कार्यों में ही बालक शिवानंद का समय गुजरने लगा। इसी बीच बालक शिवानंद जब लगभग छः वर्ष का हुआ होगा, तभी से वह इस लोक में मातृ-पितृ विहीन हो गया।
अपने गुरु ओंकारनन्द गोस्वामी की सानिध्यता में ही बालक शिवानंद ने खेलने-कूदने की छः वर्ष की अल्पायु में ही योग साधना तथा आध्यात्मिकता को अपने जीवन का परमलक्ष्य मानकर उन्हें अपने जीवन का अहम हिस्सा बना लिया और पूर्णतः सात्विक जीवन जीने का संकल्प भी ले लिया। इसके साथ ही साथ भूख से तड़प-तड़प कर मृत अपने गरीब माता-पिता को स्मरण कर बालक शिवानंद ने आजीवन केवल आधा पेट और वह भी अति साधारण भोजन करने का भी एक भीष्म संकल्प ले लिया। जिसका पालन आज भी बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज करते रहे हैं।
कालांतर में युवा ब्रह्मचारी शिवानंद ने अपने गुरु के आदेश को सिरोधार्य कर साल 1925 में 29 वर्ष की आयु में लोगों को स्वस्थमय निरोग जीवन हेतु योग और स्वस्थ संबंधित संदेशों को प्रसारित करने जैसे वृहत कार्य हेतु विभिन्न देश-देशांतरों का व्यापक भ्रमण किया। जहाँ-जहाँ गए, वहाँ के लोगों को योग तथा स्वस्थ संबंधित दिनचर्या हेतु प्रेरित भी करते रहें।
83 वर्ष की अवस्था में बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज अपने लिए कोई स्थायी स्थान की तलाश में साल 1979 में पावन सलिला गंगा की निर्मल गोद में बसी शिव की प्रिय नगरी काशी में आए। शिव-गंगा की यह पवित्र नगरी काशी उनके मन को हर ली। यहीं काशी में दुर्गाकुंड के पास कबीरनगर में तीसरे तल्ले के एक मकान में रहते हुए पूर्णतः काशीवासी बन गए। पावन माता गंगा और सर्व पिता भगवान शंकर जी की कृपया से आज 126 वर्ष की अवस्था में भी वह निरंतर स्वस्थ्य और स्फूर्तिमान जीवन लाभ कर रहें हैं। आज भी वह तीसरे तल्ले पर प्रति दिन दो-चार बार बिना किसी सहारे के ही अवश्य ही चढ़ते-उतरते रहते ही हैं, जो अपने आप में कोई विशेष ईश्वरीय शक्ति से कम नहीं है।
पवित्र नगरी काशी के बारे में बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज का कहना है कि यह सर्व पाप नाशिनी पवित्र माँ गंगा के किनारे बसी हुई एक प्राचीन पवित्र भूमि है। यह भगवान शंकर के त्रिशूल पर आधारित उनकी अति प्रिय नगरी है। यहाँ पर स्वयं भगवान शंकर जी ‘बाबा विश्वनाथ’ के रूप में सदैव विराजमान रहते हैं। इसलिए ऐसी तपोभूमि को छोड़कर कहीं और जाने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है। यहाँ पवित्र गंगा माइया और देवाधिदेव शंकर जी के सानिध्य में ही रहना उनके तन और मन को सुकून देता है।
बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज की दैनिक क्रिया-कलाप सर्वदा एक समान रही है, जो ठंडी, गर्मी व बरसात सालों भर प्रायः एक जैसा ही रहती है। वह प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में 3 बजे उठ जाया करते हैं। इसके बाद नियमित क्रिया के उपरांत सदैव ठंढे पानी में ही नहाया करते हैं। फिर एक घंटा योग-साधन करते हैं। तत्पश्चात भगवद् गीता और माँ चंडी के श्लोकों का सस्वर पाठ करते हैं। हर मौसम में वे एक ही जैसे साधारण वस्त्र धारण करते हैं। यहाँ तक कि सर्दियों में भी वह एक साधारण कुर्ता और धोती ही पहने रहते हैं। आज भी वह बिना चश्मे के ही सब कुछ स्पष्ट रूप से देख व पढ़ लेते हैं। वह कभी स्कूल नहीं गए, उन्होंने जो कुछ भी सीखा, वह अपने गुरु ओंकारनन्द गोस्वामी जी की सानिध्यता से ही। उन्हें अंग्रेजी का बहुत ही अच्छा ज्ञान है। आजीवन ब्रह्मचर्य पालन और लोगों की सेवा-कार्य हेतु उन्होंने विवाह नहीं किया है।
बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज ने गरीबी को बहुत ही करीब से देखा है। गरीबी में अनेक लोगों को मरते हुए भी देखा है। अतः गरीबों के प्रति उनकी विशेष आत्मीयता रही है। चूंकि गरीब लोगों को फल और दूध की तो बात ही क्या? उन्हें तो दो वक्त का पूर्ण भोजन भी नसीब नहीं हो पाता है। अतः गरीबों के प्रति आत्मीयता को रखते हुए उन्होंने कभी भी फल और दूध ग्रहण नहीं किया। भोजन के रूप में गरीबों की भांति ही कम नमक के साथ उबला हुआ आलू-दाल-कुछ सब्जी ही निरंतर सेवन करते रहे हैं। संध्या उपरांत वह कुछ भी भोज्य-पदार्थ ग्रहण नहीं करते हैं। 126 वर्ष की इस अवस्था में भी बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज काफी स्वस्थ स्फूर्तिमान हैं। ईश्वर की कृपा से उनको आज तक कोई भी बीमारी और तनाव आदि न हुआ है। बाबा अपने स्वस्थमय दीर्घ जीवन का आधार अपनी जीवन शैली और खान-पान को ही बताते हैं।
योग साधक बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज कभी नाम-प्रसिद्धि के पीछे न भागे, बल्कि इससे उन्होंने सदैव अपने आप को एक खास दूरी पर ही रखा है। यहाँ तक कि उन्होंने अपने आप को देशी-विदेशी मीडिया से भी भरसक दूर ही रखा है। इसलिए उनके विगत जीवन संबंधित घटनाओं से लोग अनजान ही हैं। उन्हेांने स्वयं कभी किसी से अपने पिछले जीवन के बारे में कोई विशेष चर्चा नहीं की है। जबकि उनके आश्रम आज अमेरिका, जर्मनी और बांग्लादेश में भी सक्रिय हैं। बाबा समय-समय पर अपने इन आश्रमों में भी प्रवास के लिए जाया ही करते हैं। इन आश्रमों में मिलने वाले दान को वे गरीबों में ही वितरित कर दिया करते हैं।
हालाकि स्वाभिमान व्यक्तित्व के धनी योग साधक बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज कुछ वर्ष पूर्व मीडिया में आ ही गए, जब एक प्रसिद्ध अभिनेत्री ने अपने ट्विटर पर उनकी योग साधना संबंधित एक वीडियो शेयर कर उनकी लंबी आयु में स्वस्थ्य सेहत के बारे में सबको बताया। वह बाबा से काफी प्रभावित हुई और बाबा को ही अपना आदर्श मानकर स्वयं योग साधना में प्रावृत हुई। अब तो वह दूसरों को भी योग साधना के लिए प्रेरित कर रही है।
बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज इस धरती पर संभवतः सबसे अधिक आयु वाले जीवित व्यक्ति के रूप में विद्यमान हैं। वैसे तो ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में जापान के चित्तेसु वतनबे (122 वर्ष) का नाम सबसे अधिक आयु वाले व्यक्ति के रूप में दर्ज था, जिनका दो वर्ष पूर्व ही निधन हो गया। पर बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज की आयु तो उनके दीर्घायु विश्व रिकार्ड को भी तोड़ती है। बाबा की आयु संबंधित उपयुक्त और सबल प्रमाण के रूप में उनका आधार कार्ड और उनका पासपोर्ट है, जो उनके पास अभी भी मौजूद है। उनके आधार कार्ड व पासपोर्ट पर उनकी जन्मतिथि 8 अगस्त, 1896 दर्ज है। इस आधार पर बाबा शिवानंद स्वामी जी महाराज विश्व के सबसे बुजुर्ग स्वस्थ व्यक्ति हुए। हम उनकी स्वस्थमय दीर्घायु की कामना करते हैं।
श्रीराम पुकार शर्मा
हावड़ा (पश्चिम बंगाल)
ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com