रतन टाटा : एक युग का अंत, श्रद्धांजलि

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। रतन टाटा, भारतीय उद्योग जगत के महानायक और टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष का निधन भारत और दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनके जाने से न केवल टाटा समूह, बल्कि संपूर्ण भारत ने एक ऐसा नेतृत्वकर्ता खो दिया, जिसने उद्योग और समाज सेवा के क्षेत्र में अद्वितीय मिसाल कायम की थी। रतन टाटा का जीवन, उनकी सोच और उनके कार्य, सदियों तक प्रेरणा के स्रोत रहेंगे। उनका व्यक्तित्व केवल एक उद्योगपति तक सीमित नहीं था, बल्कि वह सच्चे अर्थों में एक राष्ट्र निर्माता थे, जिन्होंने न केवल उद्योगों को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया, बल्कि भारत को वैश्विक मानचित्र पर मजबूती से स्थापित किया।

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को भारत के एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता, नवल टाटा और दादा, जमशेदजी टाटा, ने उन्हें उन मूल्यों की सीख दी, जो उनके जीवन का आधार बने। रतन टाटा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल से की और फिर अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम पूरा किया। यह शिक्षा न केवल उनके व्यावसायिक कौशल को निखारने में मददगार रही, बल्कि उनके दृष्टिकोण में वैश्विकता का समावेश किया।

रतन टाटा ने 1961 में टाटा समूह के साथ अपने करियर की शुरुआत की, जब वह टाटा स्टील में काम करने लगे। शुरुआती दिनों में उन्हें फर्नेस में काम करने का अनुभव मिला, जिसने उन्हें जमीनी हकीकत से जोड़ा। 1991 में उन्हें टाटा समूह का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और इसके बाद उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने कई महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं। रतन टाटा का दृष्टिकोण हमेशा से ही दीर्घकालिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित था। उन्होंने टाटा समूह को केवल मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि समाज सेवा के उद्देश्य से संचालित किया।

उनके कार्यकाल में टाटा समूह ने टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS) जैसी कंपनियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया। खासतौर पर, जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण टाटा मोटर्स के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, जिसने भारतीय उद्योग जगत को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित किया। 2008 में टाटा नैनो का लॉन्च, उनकी दृष्टि का एक उत्कृष्ट उदाहरण था। उन्होंने दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाई ताकि मध्यम वर्गीय परिवार भी कार खरीदने का सपना पूरा कर सकें।

रतन टाटा का नेतृत्व शैली हमेशा प्रेरणादायक और अनुकरणीय रही। उन्होंने उद्यमिता और सामाजिक उत्तरदायित्व के बीच एक संतुलन कायम किया। उनके लिए व्यवसाय केवल लाभ का साधन नहीं था, बल्कि समाज को बेहतर बनाने का एक माध्यम था। उन्होंने हमेशा टाटा समूह को एक ऐसे संगठन के रूप में संचालित किया जो नैतिकता, ईमानदारी और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर आधारित था। उनकी सोच थी कि “जिस समुदाय से आप लाभ प्राप्त कर रहे हैं, उसके प्रति आपकी जिम्मेदारी है।”

रतन टाटा का मानना था कि व्यापारिक सफलता का आकलन केवल वित्तीय उपलब्धियों से नहीं किया जा सकता, बल्कि समाज पर उसके प्रभाव से भी मापा जाना चाहिए। उन्होंने टाटा ट्रस्ट के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, और समाज कल्याण के क्षेत्रों में असीम योगदान दिया। आज भी टाटा ट्रस्ट भारत के सबसे बड़े और प्रभावशाली परोपकारी संगठनों में से एक है।

रतन टाटा अपने सादगी भरे जीवन और विनम्र स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे। अत्यधिक धन और वैभव होने के बावजूद उन्होंने हमेशा सरल जीवन शैली को अपनाया। उनकी निजी जीवन में ईमानदारी और पारदर्शिता की छवि थी और यही वजह थी कि उन्होंने अपने कर्मचारियों, सहकर्मियों और साझेदारों के साथ विश्वास और सम्मान का रिश्ता बनाया। रतन टाटा ने कभी भी किसी व्यक्तिगत विवाद या राजनीतिक रस्साकशी में हिस्सा नहीं लिया, और यही उनकी महानता का प्रतीक है।

रतन टाटा न केवल भारत में, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित थे। उन्हें कई वैश्विक मंचों पर सम्मानित किया गया और उनकी नेतृत्व क्षमता को अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा सराहा गया। उनके कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण (2000) और पद्म विभूषण (2008) से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें कई विदेशी सरकारों और संस्थानों से भी प्रशंसा प्राप्त हुई।

रतन टाटा का समाज सेवा के प्रति योगदान अतुलनीय है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई सामाजिक और परोपकारी कार्य किए। शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में टाटा ट्रस्ट द्वारा किए गए कार्य उनके नेतृत्व का प्रमाण हैं। उन्होंने देश के दूरदराज़ क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना की, जिससे लाखों लोग लाभान्वित हुए। उनके द्वारा संचालित टाटा ट्रस्ट ने भी कोविड-19 महामारी के दौरान महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो उनके सामाजिक दायित्वों के प्रति गहरी निष्ठा को दर्शाता है।

रतन टाटा का निधन एक युग के अंत जैसा है। उनकी विरासत सदियों तक जीवित रहेगी। उन्होंने न केवल एक महान उद्यमी के रूप में पहचान बनाई, बल्कि एक महान समाजसेवी और मानवतावादी के रूप में भी। उन्होंने भारतीय उद्योग जगत को एक नई दिशा दी और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आदर्श स्थापित किया।

रतन टाटा के जाने से जो शून्य उत्पन्न हुआ है, उसे भरना संभव नहीं है, लेकिन उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत हमेशा हमें प्रेरित करती रहेगी। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सफलता का मतलब केवल धन-संपत्ति नहीं होता, बल्कि समाज के लिए कुछ ऐसा करना होता है, जो आने वाले कल को बेहतर बना सके।

रतन टाटा के निधन से हम सभी शोक संतप्त हैं, लेकिन उनके विचार, उनके कार्य, और उनके आदर्श हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहेंगे। उनका जीवन हर उस व्यक्ति के लिए एक मार्गदर्शक रहेगा, जो नैतिकता, समर्पण और समाज सेवा को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहता है।

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