रतन कहार || मुफलिसी में गुजरा जीवन, बीड़ी बनाकर चलाना पड़ा परिवार

  • पढ़े पद्मश्री से सम्मानित हुए गुमनाम लोक गायक रतन कहार के बारे‌ में
  • गरीबी का आलम ऐसा है की बेटी के लिए हारमोनियम तक नहीं खरीद सके

Kolkata Hindi News, कोलकाता। मशहूर रैप सिंगर बादशाह के गाने में आपने “बड़ो लोकेर बिटी लो लंबा लंबा चूल” गाना जरूर सुना होगा। लेकिन शायद ही आपको पता हो कि यह गीत बॉलीवुड की चकाचौंध और रंगीन दुनिया के किसी मशहूर संगीतकार का नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले लोक कलाकार रतन कहार (Ratan Kahar) का है।

भारत सरकार ने अब इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है जिसके बाद पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर है। बीरभूम जिले के सिउड़ी भट्टाचार्य पाड़ा के रहने वाले वयोवृद्ध लोक कलाकार रतन कहार पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से लोकगीत गा रहे हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि सुबह-सुबह ग्रामीण लोग उनकी मधुर आवाज और खंजनी ( एक प्रकार का वाद्य यंत्र) की आवाज से जागते हैं।Ratan Kahar || Lived in poverty, had to run the family by making beedis.

रतन कहार ने अपनी कला साधना अलकाप गीत मंडली में शामिल होकर शुरू की। वह तरूण तरण यात्रा दल में ‘चुकरी’ धारण करते थे। उन्होंने कई भादु, झुमुर गीत और लोकगीत से लोगों के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल की है। सादगी का अंदाजा इस बात से लगाइए कि झोपड़ी में रहते हैं।

शानदार लोकगीत के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले थे जिसे उसी झोपड़ी में रखा था लेकिन एक बार तूफान में घर पर ही पेड़ गिर गया और सारे पुरस्कार प्रमाण पत्र खो गए। 94 वर्ष की आयु हो चुकी है और रोज सुबह 3:00 बजे जगा कर लोकगीतों से समां बांध देते हैं। समझी थी उनकी साधना है जीत ही उनकी सांसें और जिंदगी है।

आर्थिक तंगी की वजह से बांधते थे बीड़ी

Ratan Kahar || Lived in poverty, had to run the family by making beedis.एक समय था जब परिवार में इतनी तंगी थी कि रतन कहार ने परिवार चलाने के लिए बीड़ी बांधना शुरू किया था। उनकी बेटी भी अच्छी लोक गायिका हैं।

पद्मश्री मिलने के बाद रतन कहार कहते हैं , ”जिंदगी बहुत कठिन रही है। लड़की अच्छा गाती है लेकिन मैं संगीत सीखने के लिए उसे किसी पारंगत संगीत शिक्षक के पास नहीं भेज पा रहा हूं। मैं हारमोनियम भी नहीं खरीद सका। बेटी की शादी अभी बाकी है। यही मेरी चिंता है। सरकारी भत्ते और कार्यक्रम से जो मिलता है, उसे किसी तरह काम चल जाता है लेकिन मैं अपने जीवन के आखिरी दिन तक गरीबी से संघर्ष करूंगा।”


लिख चुके हैं दो हजार से अधिक गीत

दो हजार गीतों के रचयिता कलाकार रतन कहार ने कभी आकाशवाणी और बाद में दुदर्शन में काम किया। उन्होंने कहा, पहाड़ी सान्याल ही मुझे आकाशवाणी ले गये थे मैंने तब नियमित रूप से काम किया। ‘

बात 1972 की है कालजयी गीत, ‘बड़ो लोकेर बिटी लो’ गाना उस समय के युवा कलाकार रतन कहार ने लिखा था, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। स्वप्ना चक्रवर्ती ने 1976 में गाना रिकॉर्ड किया था। उस वक्त ये गाना काफी मशहूर हुआ था और आज नई धुन में भी मशहूर है।Ratan Kahar || Lived in poverty, had to run the family by making beedis.

अपने गीत के बारे में रतन कहार कहते हैं, “मैंने वह गाना पहले भी रेडियो पर गाया है। उसके बाद बहुतों ने ऐसा किया। लेकिन मेरा नाम बताना भूल गए। मेरे ही गीत को कई लोगों ने गाया लेकिन मुझे किसी ने याद नहीं रखा।”


संस्कार भारती के सलाहकार हैं रतन

रतन कहार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध सांस्कृतिक संगठन संस्कार भारती बीरभूम जिला समिति के सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं। वह पहले भी संस्कार भारती के कई कार्यक्रमों में संगीत प्रस्तुति देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर चुके हैं। संस्कार भारती ने उन्हें नटराज सम्मान से सम्मानित किया है। रतन स्वभाव से कवि हैं और एक अच्छे कलाकार भी हैं। जब कार्तिक मास आता है तो वह नगर में कीर्तन करने निकलते है‌ लेकिन किसी से कुछ नहीं मांगते।

रतन कहार के बेटे शिवनाथ कहार ने कहा, “मुझे भी गाना पसंद है। आज पिताजी को अपना खोया हुआ सम्मान वापस मिल गया, जो सबसे बड़ी बात है।”

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