महामारी के बाद बिहार का नवनिर्माण जरूरी

राजकुमार गुप्त, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता

आज इस वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने पूरे विश्व को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है, साथ ही आजादी के 72 बर्षो बाद भी देश के कुछ अविकसित राज्यों से लोगों का पलायन बदस्तूर जारी है। खासकर बिहार/झारखंड जैसे अति पिछड़े राज्यों से पलायन कुछ ज्यादा ही है।
तो मित्रों आज जब सभी प्रान्तों के लोग अपने-अपने प्रान्तों पर गर्व करतें हैं तो हम बिहारी भी क्यों न गर्व से कहें कि हाँ “मैं बिहारी हूँ”, परंतु नहीं हममें से ज्यादातर लोग नहीं कहतें हैं ऐसा क्योंकि कहीं ना कहीं हम खुद भी किसी अपराधबोध से या फिर हीन भावना से ग्रसित हैं।
बेशक हम बिहारियों के पूर्वज किसान और मजदूर थे या आज भी है तो हमें गर्व होनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने और आज की पीढ़ी भी सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों मैं भी जाकर अपने मेहनत के दम पर उसे सजाया और संवारा है तो फिर इसमें शर्म कैसी? शर्म है तो बस एक ही बात की कि हमने अपने बिहार राज्य को  ही ढंग से नहीं संवारा और यही वजह है कि हम अपने गृह राज्य को छोड़कर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए आज भी मजबूर हो रहे हैं और इसके लिए सिर्फ बिहारी नेताओं को दोष देने से काम नहीं चलेगा बल्कि हम बिहार के लोग भी कम जिम्मेदार नहीं हैं, हम आज भी जात-पात में बँटे हुए हैं।

राजनीति भी तो समाज का दर्पण ही है, समाज जैसा है राजनैतिक दलों के नेता हमें वैसे ही हाँक देते हैं। हम बिहारियों को जात-पात, धर्म-मजहब, वामपंथी-दक्षिणपंथी विचारधाराओं को दरकिनार करते हुए सिर्फ एक ही विचारधारा पर काम करना होगा और वह है बिहार का विकासपंथी, जब तक की बिहार एक पूर्ण विकसित राज्य ना बन जाए। इसके लिए आपको पंचायत स्तर से ही शुरु करना होगा।

निचले स्तर से ही यानी पंचायत और नगर पालिका के लिये हमें योग्य उम्मीदवारों को ही चुनना होगा जिससे कि हमारे गांव और मोहल्लों का विकास हो सके, फिर विधानसभा के लिए भी हमलोगों को किसी भी दलों या निर्दलीयों के बीच से योग्य उम्मीदवारों को ही चुनना होगा बिना किसी जातीय भेदभाव के, जो कि सिर्फ अपना या अपने लोगों का या अपने दल का सिर्फ विकास ना करें बल्कि पूरे क्षेत्र का विकास कर सकने में सक्षम हो।

सभी दलों के या निर्दलीय उम्मीदवारों से आपको यह प्रश्न पूछना ही पड़ेगा की क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए आपके पास क्या रोड मैप है जिससे कि मुझे या मेरी आने वाली पीढ़ी को अपनी जन्मभूमि बिहार को छोड़कर मजदूर के रूप में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर ना होना पड़े, अगर इसका संतोषजनक जवाब आपको मिलता है तो ठीक है नहीं मिलता है तो आप अपने गाँव या शहर को किस तरह विकसित करना चाहते हैं उसका एक रोड मैप चुनाव में खड़े हुए सभी उम्मीदवारों को दें और यह कार्य आज के पढ़े लिखे युवा ही कर सकते हैं, तो मित्रों इसके लिए आप बिहारी युवाओं को आगे आना होगा और इस कार्य को एक क्रांति के रूप में करना होगा यदि आप बिहार का नवनिर्माण चाहते हैं तो? नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ियों की जवानी और हमारी नदियों की पानी यूं ही बर्बाद होती रहेगी।

आज बहुसंख्यक बिहारियों का परिवार लॉक डाउन के वक्त जिस त्रासदी से गुजर रहा है इसका अनुभव या तो वह परिवार या अन्य राज्यों में फंसे लोग कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि अन्य राज्यों के लोग विभिन्न जगहों पर फंसे हुए नहीं है परन्तु बिहारियों की तादाद काफी अधिक है अतः अपने राज्य को संवारने का और इस विषय पर सोचने का एक मौका मिला है आपको अतः युवा पीढ़ी इस पर आत्ममंथन करे और अपने नेताओं को भी मंथन करने पर मजबूर करें कारण सामने ही विधानसभा का चुनाव है तो इस दोहरे मौके का लाभ उठाएं। अभी नहीं तो कभी नहीं।

नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत हैं । इस आलेख में  दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।

3 thoughts on “महामारी के बाद बिहार का नवनिर्माण जरूरी

  1. जितेंद्र जैन says:

    आपने अपने आलेख में बिहार सच्चाई व्यक्त की है। यह सच है
    बिहार की पावन भूमि पर अनेकानेक संतो का जन्म हुआ, इसी पावन भूमि पर जब दुनिया के बहुत से हिस्सों में लोग पढना लिखना भी नहीं जानते थे, उस समय शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र नालंदा विश्वविध्यालय बिहार की राजधानी पाटलिपुत्र था। बिहार के ही पावन भूमि पर ।सम्राट जरासंध ,अशोक, अजातशत्रु, बिम्बिसार और बहुत राजाओं का जन्म हुआ। आज़ाद भारत के प्रथम राष्टपति डॉक्टर राजेंद्र प्रशाद का जन्म भी बिहार में ही हुआ है, और बड़े विद्धवान साहित्य कार वैज्ञानिकों अनेक राजनेताओं ने बिहार में ही जन्म लिया है आज भी भारत के सबसे ज्यादा आईएस बिहार से ही निकलते हैं, लेकिन घटिया राजनीती के कारण बिहार भारत के सबसे गरीब और पिछड़े राज्यों में से एक हो गया है। विश्व में शिक्षा के केंद्र का गौरव प्राप्त करने वाले इस राज्य में साक्षरता दर अन्य राज्यों से कम हो गई है, और रोजगार न मिलने के कारण पलायन एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है।
    आज हर बिहारी को सोचना होगा की वो चाणक्य चन्द्रगुप्त वाला बिहार चाहता है या बिहार के नाम पर बट्टा लगाने वाले राजनेताओ का बिहार चाहता है।

    • राज कुमार गुप्त says:

      जी हम जैसे बिहार से स्थाई रूप से बाहर रहने वाले बिहारियों की यही दर्द है जिसे मैं अपने लेखों के माध्यम से समय-समय पर व्यक्त करता रहता हूं।
      जैन साहब धन्यवाद आपका अपनी समीक्षा देने के लिए

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