बंगलादेश में रवींद्रनाथ टैगोर की संस्था उपेक्षित

ढाका। बंगलादेश में उत्तरी जिले नौगांव के पाटीसर में विश्व विख्यात कवि रवींद्रनाथ टैगोर की स्मृति से जुड़ा अंतरराष्ट्रीय रवींद्र शोध संस्थान (आईआरआरआई) उपेक्षित अवस्था में पड़ा है जिसके कारण ना केवल कवि की भावना को कायम रखने में बाधा आ रही है बल्कि इससे छात्रों को भी परेशानी हो रही है। कवि रवींद्रनाथ ने बंगलादेश के राजशाही डिवीजन में रवींद्रनाथ की विरासत में मिली जमींदारी की रक्षा के लिए यहां अपने जीवन के आखिरी कुछ साल बिताए। रवींद्रनाथ अपने जीवन में कई बार यहां आए और इस क्षेत्र के गरीब लोगों की दुर्दशा से बहुत द्रवित हुए।

रवींद्रनाथ की स्मृति को संरक्षित करने के लिए भारत के पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में दो विश्वविद्यालय और बंगलादेश में कुल तीन विश्वविद्यालय और एक संस्थान उनके नाम पर रवींद्र-अनुसंधान और रवींद्र-दर्शन के माध्यम से अध्यापन के लिए बनाए गए हैं। पश्चिम बंगाल राज्य में दो मुख्य विश्वविद्यालय हैं-बिष्य भारती विश्वविद्यालय और रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय। वहीं, बंगलादेश में रवीन्द्र अभ्यास और अनुसंधान के लिए क्रमशः रवीन्द्र विश्वविद्यालय, अंतर्राष्ट्रीय रवीन्द्र अनुसंधान संस्थान, रवीन्द्र-मैत्री विश्वविद्यालय और रवीन्द्र रचनात्मक कला विश्वविद्यालय हैं।

दरअसल, महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर की स्मृति से जुड़े इन संस्थानों में से कोई भी संकट में नहीं पड़ा है, बल्कि सभी संस्थान अपने दम पर अपना काम जारी रखे हुए हैं। केवल ‘अंतरराष्ट्रीय रवींद्र शोध संस्थान’ ही अत्यंत उपेक्षित अवस्था में है। इसके कारण रवीन्द्र की स्मृति खोने वाली है। वर्ष 2014 में उस क्षेत्र के सांसद इसराफिल आलम ने अपनी पहल पर ‘अंतर्राष्ट्रीय रवींद्र अनुसंधान संस्थान’ नामक संस्थान की स्थापना की। वह इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं।

बंगलादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हमीद के साथ रवींद्र भारती और भारत के बिश्य भारती विश्वविद्यालय के कुलपतियों ने क्षेत्र का दौरा किया। पर यह बहुत दुख की बात यह है कि पिछले कोरोना महामारी में संस्थापक अध्यक्ष इसराफिल आलम का निधन हो गया। परिणाम स्वरूप ‘अंतर्राष्ट्रीय रवीन्द्र शोध संस्थान’ की समस्त गतिविधियाँ ठप्प होने वाली हैं।
रवींद्रनाथ ने नौगांव-पटीसर में गरीब लोगों के कष्टों को दूर करने के लिए एक कृषि बैंक, जहां से गरीब लोगों को बहुत आसान शर्तों पर ऋण सुविधा, धर्मार्थ अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की थी।

इस कृषि बैंक के विकास के लिए रवींद्रनाथ ने अपनी पूरी नोबेल पुरस्कार राशि खर्च कर दी। संस्थान को एक पूर्ण विश्वविद्यालय बनाने या किसी अन्य पूर्ण विश्वविद्यालय के तहत एक अलग संस्थान के रूप में चलाने के लिए लगभग सब कुछ वहाँ उपलब्ध है। रवींद्र संग्रहालय है, जो पूरी तरह से सरकार द्वारा प्रबंधित है। शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए सुखद कक्षाएँ, छात्रावास, पुस्तकालय, कंप्यूटर लैब, अच्छी जगह वाले मैदान हैं जिन्हें अब रसेल स्क्वायर के रूप में जाना जाता है।

कलिग्राम रथींद्रनाथ संस्थान (स्वयं रवींद्रनाथ द्वारा स्थापित) के अलावा यहां सहायक सुविधाएं हैं। छात्रों के लिए कृषि डिप्लोमा कार्यक्रम और विश्वविद्यालय सम्मान, परास्नातक और पीएचडी कार्यक्रम (अनुशंसित) हैं। अब बड़े अफसोस की बात है कि इस संस्थान की स्थापना सरकार की मंजूरी से 2014 में हुई थी लेकिन इसके राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो सकी है।

संस्थापक अध्यक्ष सांसद इसराफिल आलम ने इस लक्ष्य की ओर कई कदम उठाए लेकिन इसे अधूरा छोड़ दिया क्योंकि जुलाई 2020 में कोरोना के कारण उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, वर्तमान कार्यवाहक उपाध्यक्ष ने कई बार इस संस्थान के राष्ट्रीयकरण के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी तक इसका कार्यान्वयन नहीं हुआ है।

नतीजतन, अधिकारी, संकाय, कर्मचारी, शोधकर्ता और छात्र पूरीतरह पीड़ित हैं। अंतरराष्ट्रीय रवींद्र शोध संस्थान की निदेशक व एसोसिएट प्रोफेसर फरहाना अख्तर ने कहा कि इस संस्थान को सार्वजनिक विश्वविद्यालय से मान्यता दिलाने के लिए प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्रालय को आवेदन भेजा गया है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

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