अनुराधा वर्मा “अनु”, कोलकाता। आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक महिला चिकित्सक के साथ कथित बलात्कार और हत्या का मामला एक गंभीर और चिंताजनक घटना है जो समाज में महिलाओं की सुरक्षा, न्याय व्यवस्था की कमजोरी और कानूनी प्रक्रिया की जटिलताओं को उजागर करता है। ऐसे मामलों में सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि क्या दोषियों को सही समय पर और उचित सजा मिल पाएगी या यह मामला भी अन्य मामलों की तरह न्याय के लंबे इंतजार में खो जाएगा।यह घटना भारतीय समाज में बढ़ती हिंसा और अपराधों की प्रवृत्ति को दिखाती है, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर में वृद्धि हो रही है।
महिला डॉक्टर की हत्या ने पूरे देश में आक्रोश और चिंता की लहर पैदा की है। लोग न्याय की मांग कर रहे हैं और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन अक्सर ऐसे मामलों में न्याय प्रक्रिया की धीमी गति, कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग और राजनीतिक एवं सामाजिक प्रभावों के चलते न्याय मिल पाना कठिन हो जाता है।
न्यायिक प्रक्रिया की चुनौतियां : भारत की न्यायिक प्रणाली अपने आप में जटिल और समय-साध्य है। इसमें कई प्रक्रियाओं, साक्ष्यों और गवाहों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि प्रभावशाली लोगों द्वारा कानून का गलत इस्तेमाल किया जाता है, जिससे न्याय में देरी होती है।
कोलकाता में सरकारी आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में नौ अगस्त को ड्यूटी के दौरान स्नातकोत्तर प्रशिक्षु चिकित्सक के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई। महिला डॉक्टर की हत्या का मामला भी शायद इसी दिशा में जाता दिखाई दे रहा है! पुलिस की शुरुआती जांच में कई तरह की कमियां और बाधाएं देखने को मिल सकती हैं। साक्ष्य एकत्रित करने में देरी या गवाहों का प्रभावित होना भी न्याय प्रक्रिया को बाधित करता है। मीडिया का इस मामले में काफी महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। जब तक इस प्रकार के मामलों को जनता के सामने जोर-शोर से पेश किया जाता है, तब तक न्याय प्रणाली पर दबाव बना रहता है।
मीडिया समाज की आवाज बन सकती है और न्याय की प्रक्रिया को तेज कर सकती है। लेकिन अगर मीडिया का ध्यान हट जाता है, तो अक्सर मामले दब जाते हैं, और दोषियों को सजा मिलने की उम्मीद धूमिल हो जाती है।महिला डॉक्टर की हत्या का मामला केवल एक आपराधिक घटना नहीं है, बल्कि यह समाज में गहरी जड़ें जमा चुके लैंगिक भेदभाव, महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों के सवालों को उठाता है। यह जरूरी है कि सामाजिक और राजनीतिक दबाव बनाए रखा जाए ताकि सरकार और न्यायपालिका को दोषियों को सजा देने के लिए मजबूर किया जा सके। यह कहना मुश्किल है कि कोलकाता में महिला डॉक्टर की हत्या के दोषियों को सजा मिलेगी या नहीं!
क्योंकि भारतीय न्याय प्रणाली में न्याय पाने की प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है। लेकिन अगर सामाजिक और राजनीतिक दबाव बना रहा, मीडिया ने अपनी भूमिका निभाई और जनता न्याय की मांग करती रही, तो दोषियों को सजा मिलने की उम्मीद की जा सकती है। कोलकाता की महिला डॉक्टर की हत्या का मामला गहरा राजनीतिक मोड़ ले चुका है। पुलिस जांच की धीमी प्रगति को लेकर विपक्षी दलों, विशेष रूप से बीजेपी ने आरोप लगाए हैं कि इस मामले में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण दे रही है।
बीजेपी नेताओं का कहना है कि जांच में जानबूझकर देरी की जा रही है और सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका जताई गई थी इसी कारण से मामला अब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा गया है। बीजेपी के अनुसार, यह देरी और संभावित छेड़छाड़ ममता सरकार की राजनीतिक मंशा को उजागर करती है फिलहाल, मामले की सीबीआई जांच चल रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस सुराग सामने नहीं आया है, जिससे सरकार और पुलिस पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है कि ऐसे मामलों को केवल कानूनी प्रक्रिया तक सीमित न किया जाए, बल्कि समाज में जागरूकता और सुधार की दिशा में कदम उठाए जाएं। यदि ये प्रयास सफल होते हैं, तो ऐसे गंभीर मामलों में न्याय की संभावना बढ़ सकती है। अन्यथा, यह मामला भी शायद “ढाक के तीन पात” की तरह खो सकता है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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