कोलकाता : बंगाल में नई शिक्षा नीति, 2020 को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया आ रही है। एक ओर जहां आईआईटी खड़गपुर के निदेशक विरेन्द्र कुमारी तिवारी का कहना है कि नीति में अंतर-विषय अध्ययन पर विश्वास जताया गया है, जो बिलकुल सही है, वहीं राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने इस नीति को ‘पश्चिमी शिक्षा मॉडल की नकल’ बताया है। दो प्रतिष्ठित राजकीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का कहना है कि शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर वे बाद में टिप्पणी करेंगे, वहीं विश्वविद्यालय में शिक्षकों के दो वामपंथी संगठनों ने नीति का विरोध किया है।
उनमें से एक का दावा है कि यह देश में शिक्षा को कम से कम 100 साल पीछे धकेल देगी। केन्द्रीय कैबिनेट ने 29 जुलाई को नई शिक्षा नीति, 2020 को मंजूरी देकर देश की 34 साल पुरानी (1986 में बनी) शिक्षा नीति को बदल दिया।
आईआईटी खड़गपुर के निदेशक ने शनिवार को एक बयान में कहा कि प्राथमिक शिक्षा क्षेत्रीय भाषा में देने, ‘‘संस्कृत पढ़ाना, तीन भाषाओं का फॉर्मूला लागू करना, यह देश के लोगों के लिए, खास तौर से ग्रामीण परिवेश के लोगों के लिए बहुत हितकारी होगा।
तिवारी ने कहा कि कई यूरोपीय विश्वविद्यालयों में संस्कृत को प्रतिष्ठित पाठक्रम के रूप में अपनाया जा रहा है।
संपर्क करने पर जाधवपुर विश्विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरंजन दास ने कहा, ‘‘मैं इसपर बाद में बोलूंगा। यह पूछने पर कि क्या जब नीति के मसौदे पर प्रतिष्ठित शिक्षाविदों की सलाह मांगी गई थी तो उन्होंने कुछ कहा था, दास ने कहा, ‘‘मैंने अपने विचार रखे थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय की कुलपति सोनाली चक्रवर्ती बनर्जी से उनकी प्रतिक्रिया पूछने पर उन्होंने कहा, ‘‘मैं आपको बता दूंगी। शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने शनिवार को नई शिक्षा नीति 2020 को ‘‘पश्चिमी शिक्षा मॉडल की नकल बताया।’’