जुलूस : (कहानी) :– श्रीराम पुकार शर्मा

श्रीराम पुकार शर्मा

‘ठहर जा बेटा ! मेरी बात मान ले I तू जुलूस में मत जा I सरकार ढेर सारी पुलिस लगाईं है I वहाँ कुछ भी सकता है I’ – माँ बेचारी तड़पकर बोली I उसका कहना कोई व्यर्थ भी न था I वह अपनी आँखों के सामने ही विगत दो-चार जुलूसों में देख चुकी है कि पुलिस कैसी निर्दयता से जुलूसकर्ताओं की बेरहमी पिटाई की I उनकी पिटाई से जुलूसकर्ता घर नहीं, बल्कि अस्पताल ही जा पहुँचे I अस्पताल में भी उन्हें मामूली-सी मरहम-पट्टी की गई और उन्हें छोड़ दिया गया I फिर पीड़ितजन अपनी रोजी-रोटी छोड़ महिना-दो महीना अपने घर पर अपनी पीड़ा झेलते बैठे रहें I बाद में कोई पूछने तक न आया I तीन-चार की तो जानें भी चली गईं I

‘बेटा! तुम्हारे सिवाय हमारा कोई और सहारा नहीं है I तुम पर ही घर-संसार निर्भर है I एक बहन भी तुम्हीं पर ही निर्भर है I यह राजनीति हम जैसे गरीबों के लिए नहीं है I यह उनके लिए है, जिनको यह नहीं पता कि भूख किसे कहते हैं? जिनको सुबह-शाम राशन की चिंता न रहती है I हमलोग तो सुबह का भोजन करते ही शाम के भोजन के लिए चिंतित हो जाते हैं I जुलूस की अपेक्षा अपने काम पर जाओ I जिससे सबका पेट भरेगा I’ – कई बार खुलते, कई बार बंद होते जूट मिल में सेवानिवृत के करीब पहुँचे अनुभवी पिता ने परामर्श दिया I उन्होंने भी तो राज्य में कई बार भयानक जुलूसों और उसके परिणामों को देखा है I भीड़ पर पुलिस गोलियाँ चलाती है, अश्रू गैस छोड़ती है, बुरी तरह से मार-पिट कर थाने ले जाती है , बेरहमी से उन्हें मारती-पिटती है और कई बार किसी झूठे केस में भी फसा देती है I फिर सारा जीवन चौपट I

पर युवा शंकर अपने पिता की इन बातों को कहाँ सुनने वाला था I अधिकांश युवाओं की भांति उसे भी अपने पिता की उपदेशात्मक बातें अनर्गल ही लगीं I पिछले सप्ताह ही जिला पार्टी के अध्यक्ष के आदेशानुसार उसे लोकल कमिटि का एक विशेष सक्रिय सदस्य बनाया गया है I पार्टी के जिला अध्यक्ष ने इसकी खूब तारीफ की I तारीफ में भी एक अजीब सी शक्ति निहित होती है, जो किसी को कुछ भी कर गुजरने की प्रबल भावना जागृत कर देती है I जिला पार्टी अध्यक्ष ने उसे गत कल पार्टी ऑफिस में बुलाया और किसी भी तरह से आज के जुलूस में उसे अपने साथ सौ-डेढ़ सौ जुलूसकर्ताओं को लाने का आदेश दिया है I

अपनी कर्मठता और मिलनसार व्यवहार के आधार पर ही शंकर ने सैकड़ों लोगों का जुगाड़ भी कर लिया है I ऐसे में अगर वह जुलूस में न जायेगा, तो जिला अध्यक्ष की आँखों से हमेशा के लिए गिर जायेगा I जबकि उन्होंने उसे भरोसा दिया है कि आने वाली चुनाव में उनकी जीत होते ही उसे पार्टी में जिला स्तर का कोई उच्च पद प्रदान किया जायेगा और उसके लिए एक सरकारी नौकरी पक्की, जहाँ वह काम पर जाय या न जाय, पर उसकी हाजरी लगती ही जाएगी I इतने सारे लाभजनक स्थिति को वह किसी भी कीमत पर छोड़ने की बेवकूफी नहीं कर सकता है I पार्टी के जिला अध्यक्ष के कारण ही आज उसकी पहचान कई केन्द्रीय नेताओं तक हो गई है I

‘मेरे न जाने से जिला अध्यक्ष नाराज हो जायेंगे I मैं उन्हें हरगिज नाराज नहीं करना चाहता हूँ I उनसे मेरे बहुत सारे काम बनने वाले हैं I मेरे भरोसे ही हमारे सौ-डेढ़ सौ लोग जुलूस में जाने के लिए तैयार हुए हैं I और आप लोग चाहते हैं कि मैं ही न जाऊँ I आप सब व्यर्थ की चिंता करते हैं I यहाँ के सभी पुलिस वाले मुझे जानते भी हैं I फिर, मैं तो जिला अध्यक्ष के साथ रहूँगा I उनके साथ उनके कई अंगरक्षक भी तो रहते हैं I मुझे कोई परेशानी न होगी I आप लोग व्यर्थ की चिंता न करेंI’ – आज के जुलूस कार्यक्रम हेतु विशेष रूप से पार्टी द्वारा प्रदत्त ‘पार्टी-गमछा’ को अपने गले में लपेटा और पास में रखे पार्टी के कई झंडों को अपने हाथों में समेत लिया I अब जाने को उद्धत हुआ I
‘भैया! भोजन तो करते जाओ I तुम जल्दी जाओगे, इसीलिए मैं बहुत जल्दी ही उठ कर भोजन बनाई हूँ I – छोटी बहन विनीता पानी का जग अपने हाथ में लिए कमरे से निकली और विनती पूर्वक बोली I देखते-देखते वह लगभग तेईस वसंत पार कर चुकी है I पर तेईस वर्ष की उम्र भी, क्या कोई विशेष उम्र हो जाती है ? लेकिन अभी से उसके जीवन सहित उसकी सौन्दर्यता में पतझड़ जैसे ऋतु के आगमन का आभास होने लगा है I माँ-पिता जी बहुत ही आशावान होकर उसे बी. ए. तक की पढ़ाई करवाई I सोचे थे कि पढ़-लिख कर कोई नौकरी पर लग जाएगी I फिर कोई अच्छा-सा घर-वर मिल जाएगा I डिग्री के सम्मुख दहेज़ आदि की कोई बाधक न बनेंगी I पर, समय आने पर वे सभी सुख स्वप्न केवल सब्जबाग ही निकलें I दहेज लोलुप समाज में आज भी पढ़ाई-लिखाई या कार्य-निपुणता को गौण ही स्थान प्राप्त है, प्रमुख स्थान तो दहेज-धन का ही है I बहुत कोशिश करने पर भी किसी स्कूल की मास्टरनी भी नहीं बन पाई I पैसों के अभाव में चाहकर भी उसे मास्टर ट्रेनिंग भी तो नहीं करवा पाए हैं I अंततः अब वह मुहल्ले के ही छोटे-छोटे कुछ बच्चों को अपने ही घर पर बुलाकर उन्हें ‘ट्यूशन’ पढ़ाती है और घर-संसार के खर्च में अपनी भूमिका का निर्वाहन करती है I

‘विन्नु! लौट कर भोजन करूँगा I मुझे पहले ही बहुत देर हो चुकी है I पार्टी के सभी पदाधिकारीगण जुलूस के लिए पहुँच गए होंगे I’ – और वह घर से निकल पड़ा I पीछे रह गए घर के तीनों चिंतित प्राणी, जिनके आश व विश्वास उसी पर केन्द्रित है I पर वे करते भी क्या, उसे जाते देखते रहने के सिवाय I शंकर एक होनहार युवक है I यह भी ‘ग्रेजुएट’ है I उसका संकल्प है कि पहले विन्नु को दुल्हन बना कर अपने घर से विदा करेगा, तब वह स्वयं शादी करेगा I वह अपने शहर के ही किसी प्राइवेट कंपनी में विगत सात वर्षों से काम किया करता था I पर कोरोना जनित वातावरण में कई अभागों की नौकरियाँ चली गईं, उन्हीं अभागों में से वह शंकर भी एक था I उसकी भी नौकरी छूट गई I घर-संसार के खर्च का बोझ अब पिता के अत्यल्प प्राप्त मासिक वेतन और बहन के ‘ट्यूशन’ कर्म के पहियों पर सवार किसी तरह लड़खड़ाते हुए चल रहा है I पर शंकर पर कोई मानसिक दवाब न पड़े, इसलिए घरवाले उसे खर्च और पैसों से सम्बन्धित कोई उलाहनाजनक बातें न कहते हैं I

कुछ वर्ष पहले शंकर शौक से राजनीति के झंडे को थामा और इसके साथ ही अपने मुहल्ले में ही अन्य पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं का वह अनायास कोपभाजन भी बन गया I इसीलिए अब वह झंडा उसकी आत्मरक्षा के लिए मजबूरी ही बन गई है I अब चाह कर भी वह अपने आप को उससे अलग नहीं कर सकता है I वर्तमान राजनीति तो ‘वन वे’ मार्ग है, इस मार्ग पर आप गए, तो फिर आप लौट कैसे सकते हैं? शंकर भी अब शौक से कम, पर बाध्यतामूलक ही झंडे को अधिक ढो रहा है I घर के छोटे से टेलीविजन पर सचिवालय घेराव हेतु जुलूस का सीधा प्रसारण चल रहा है I कई जगहों पर बंदूक, लाठियाँ तथा अन्य उपकरणों से लैस बड़ी संख्या में पुलिस टुकड़ियाँ तैनात दिखाई दे रही है I बड़े-बड़े नेताओं का चेहरा टी.वी. पर बार बार दिख जाता था I अचानक विनीता चिल्ला उठी, – ‘वह देखो भैया हैं, अपने कंधे पर झंडे लिए सड़क पर उस बड़े नेता के कुछ आगे-आगे चल रहे हैं I’
‘अरे हाँ! यह शंकर ही तो है I’ – माँ भी प्रसन्नता से बोली I

टेलीविज़न पर दृश्य बदल गए I हजारों लोगों की भीड़ भरी जुलूस I पूरी सड़क जुलूसकर्ताओं से परिपूर्ण है I सड़कों पर जगह-जगह पर पुलिस की बेरीकेट लगा हुआ है I प्रत्येक बेरीकेट पर कई दर्जन पुलिस कर्मी हाथ में दंडें सम्भालें तैयार हैं I बीच सड़क पर ही पुलिस की पानी का बछौर से हमला करने वाली करने वाली गाड़ियाँ भी खड़ी हैं I सरकार का आदेश है, कोई भी जुलूसकर्ता किसी भी कीमत पर सचिवालय तक न पहुँच पाए I एक ट्रक पर बने खुला मंच से पार्टी का एक बड़ा नेता माइक पर कुछ बोल रहा है I शायद वही जिला पार्टी अध्यक्ष है I हाँ! वही तो हैं I जरा सुने तो सही, क्या कह रहे हैं – ‘साथियों! आज आर या पार की लड़ाई है I यदि अपना अधिकार पाना है, यदि इस सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं, तो चाहे कुछ भी हो जाय, पर रुकना नहीं है I सचिवालय पर आज हमलोग का कब्जा हो जाना चाहिए I साथियों! आगे बढ़ो, हम आपके साथ हैं ……….. I’ अब तो कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा है I पर इसका बड़ा प्रभाव दिख रहा है I सड़क पर बने बेरीकेट के पास जुलूस-कर्ताओं का एक बड़ा-सा हुजूम इकट्ठा हो गया है I कुछ लोग बेरीकेट को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं I पाँच-सात उत्साही जुलूसकर्ता बेरीकेट पर ही चढ़ गए हैं I उनमें अपने कंधे पर झंडा लिए हुए एक शंकर भी है I पर यह क्या? पुलिस डंडे भांजना शुरू कर दी I भीड़ तितर-बितर हो चली I लो, तीन-चार पुलिस वाले मिलकर शंकर पर डंडे बरसा रहे हैं I जुलूसकर्ता शंकर सड़क पर गिर पड़ा I पुलिस के डंडे अभी भी जारी है I लो, वह तो पस्त हो गया I पर उसके कंधे से लगा पार्टी का वह झंडा अभी भी है I झंडे का निचला हिस्सा शंकर अभी भी जकड़ कर पकड़ा हुआ है I शंकर से निश्चिन्त होकर पुलिस दल अब आगे बढ़ गई I

एक और जुलुसकर्ता गिरा I उसकी दशा भी शंकर के ही समान हो गई I अब तो सड़क पर गिरनेवाले जुलूसकर्ताओं की संख्या बढती ही जा रही है I शायद बगीचे के पेड़ों को काट गिराने जैसे कार्य आज पुलिस बड़ी तत्परता से कर रही है I पुलिसिया डंडों से घायल तथा अर्धबेहोश जुलूसकर्ताओं को देख-भाल करने वाले वहाँ कोई नहीं हैं I इलाज या मरहम-पट्टी की तो बाते ही छोड़ दीजिए I ट्रक पर बने खुला मंच पर आसीन होकर दहाड़ने वाला जिला पार्टी अध्यक्ष अब ट्रक पर दिखाई नहीं दे रहे हैं I हाँ! अभी वह नजर आयें I वह तो अब अपने हट्टे-कट्टे चार-पाँच अंगरक्षकों के बीच सड़क के किनारे के एक पेड़ के नीचे खड़े हैं I चार पुलिसों की एक छोटी-सी टुकड़ी उनके पास भी पहुँची तो जरुर है I पर, उन पर किसी पुलिस ने डंडे न चलाई I पता नहीं, उनमें क्या खुसुर-फुसुर हुआ I उनके पास से सभी पुलिस लौट गईं I पुलिस के उस छोटी-सी टुकड़ी के जाने के बाद ही जिला पार्टी अध्यक्ष अपने अंगरक्षकों सहित आगे बढ़े, शायद घायलों की देखभाल या फिर उनसे बातें करने I शंकर भी सड़क पर पड़ा उन्हें अपनी ओर आते देख आशावान होता है I शायद वह उनसे कुछ कहना चाहता है I अब वे उसके बहुत ही पास आ गये हैं I शंकर को लगा कि वह उसे उठाएंगे, उसका हाल-चल पूछेंगे I शंकर आशाभरी नजरों से उन्हें देखता है और अपनी सहायता हेतु अपने हाथ को उनकी ओर बढ़ता है I शंकर पर उनकी भी नजर पड़ी I पर यह क्या? वह तो आगे बढ़ने लगे I शंकर के उठे हुए हाथ उनके पैर से जा लगे I उसने उनके पैर को पकड़ने की कोशिश की I परन्तु उनके दोनों पैर उसके हाथ को टक्कर मरते हुए बड़ी शान से डेंग भरते हुए आगे बढ़ गए I शंकर के उठे हुए हाथ स्वतः ही नीचे गिर गए I सड़क पर गिर कर तड़पने वालों में अकेला शंकर ही नहीं है I इनकी संख्या सैकड़ों में है I सुनने में आया है कि चार जुलूसकर्ता तो मारे भी जा चुके हैं I वास्तविक संख्या की जानकरी तो कल अख़बारों में प्राप्त होगी I कितने तो इन घायलों में से भी जरूर ही मरेंगे I
पहले तो नेतागण अपने-अपने सुरक्षात्मक साधनों से चले गए I उनके पीछे-पीछे जुलूसकर्ताओं की भीड़ भी कई टुकड़ियों में जा चुकी है I अब सड़क पर चतुर्दिक लावारिश पड़े जूतों, चप्पलों आदि के बीच कराहते हुए घायल जुलूसकर्ता पड़े हुए हैं I खबर पाकर उनके परिजन आ रहे हैं और रोते-धोते अपने-अपने घर के घायल चिरागों को सड़क से उठा-उठाकर अपने साथ ले जा रहे हैं I मदद हेतु हाथ बढ़ाने वाला वहाँ कोई नहीं है, सभी मदद को तरसते घायल लोग ही हैं I
खबर पाकर शंकर के माता-पिता और बहन भी रोते-कलपते घटना स्थल पर पहुंचे I कराहते घायलों के बीच अर्ध-बेहोशी की हालत में पड़ा शंकर को अपने आधार पर अपने साथ ले गएँ I अपने पास बेड खाली न होने की बात कह कर दो अस्पतालों ने शंकर को भर्ती लेने से साफ़ इंकार ही कर दिए I फिर क्या करते वे लोग? पडोसी से कर्ज पर रूपये लेकर उसे एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवाएँ I

बाकी घायल जुलूसकर्ता भी इसी तरह से तीन-चार घंटों के अन्तराल में किसी तरह से अपने घर पहुँचे या फिर किसी अस्पताल में पहुँचे I शाम को आँसू से डबडबाएँ लाल आँखों युक्त अपने माँ-पिता व बहन से घिरे शंकर अस्पताल के बेड पर अर्ध-बेहोश पड़ा हुआ है I शरीर में जैसे ही कुछ हरकत होती है या बड़ी मुश्किल से शंकर अपनी आँखें खोलता है I तीनों प्राणी उसके चहरे पर तुरंत ही झुक जाते हैं I  ‘बेटा कैसे हो?’ आँसू से सरोबार माँ ने पूछा I पर शंकर कुछ न बोला सका I चुप-चाप तीनों को वेवश निहार रहा था I उसकी आँखों से भी आँसू के कुछ बूंदे चहरे पर ढुलक गए I तभी शंकर का एक साथी जग्गू (जगरनाथ) वहाँ पहुँचा I
‘कैसे हो यार, शंकर I तुम्हें तो बहुत मार पड़ गई I क्या जरूरत थी, सबसे आगे रहने का? देख, पुलिस को आते देख मैं वहाँ से खिसक गया I अन्यथा, मैं भी आज अस्पताल में तुम्हारे जैसा ही पड़ा रहता I …. खैर जो होना था, वह हुआ I सुनो, जिला पार्टी अध्यक्ष ने सबको कहा है कि आज की जुलूस में हमारे चार कार्यकर्त्ता मारे गए हैं I उनके लिए न्यायिक जांच हेतु कल नगर पुलिस मुख्यालय का घेराव करना है I तुम्हें विशेष कर कहने के लिए मुझे कहा गया है I तुम तो लोकल कमिटि के मेम्बर भी हो I ….. लेकिन, कल तुम कैसे जा पाओगे I तुम मत जाना I मैं उन्हें समझा दूँगा I तुम चिंता मत करो I जल्दी ही ठीक हो जाओगे I अच्छा मैं चलता हूँ I मुझे और कई जगहों पर इस सूचना को देने जाना है I’ – जग्गू बहुत जल्दी में था I अतः बहुत जल्दी-जल्दी उसने अपनी सारी बातें कही और फिर वह वहाँ से हवा की तरह फुर्र हो गया I
दवाइयों के असर के कारण अस्पताल के बेड पर अगले दिन शंकर की नींद लगभग दस बजे के आस-पास टूटी I अस्पताल से ही सटी हुई मुख्य सड़क है, जो नगर पुलिस मुख्यालय की ओर जाती है I बड़ी भीड़ की शोरगुल हो रही थी I बीच-बीच में नारें गूंज रहे थे I जिला पार्टी अध्यक्ष की आवाज माइक पर गूंजी, – ‘मारे गए साथियों के लिए सी. बी. आई. जांच चाहिए I’
उसके पीछे ही एक साथ गम्भीर जोरदार सामूहिक आवाज गूंजी, – ‘सी. बी. आई. जांच चाहिए I’ ‘सी. बी. आई. जांच चाहिए I’

‘शहीद साथियों के रक्त का हर बून्द का बदला चाहिए I’ – माइक पर I बदला चाहिए I’ ‘बदला चाहिए I’ – सामूहिक आवाज गूंजी I मेरे साथियों! हम न डरे हैं, न डरेंगे I हम अपना अधिकार लेकर रहेंगे I अत्याचारी और जुल्मी पुलिसकर्मियों को बर्खास्त करना पड़ेगा I इस अत्याचारी सरकार को हम उखाड़ फेकेंगे I साथियों! आगे बढ़ो I पुलिस मुख्यालय को धूल में मिला दो I हम आप सब के साथ हैं ……….. I’ – जिला पार्टी अध्यक्ष की जोरदार आवाज माइक पर रह-रह कर गूंज रही है I अस्पताल के लोग खिड़की से बाहर झाँकने लगे I शंकर का दर्द बढ़ गया था I दर्द से उसके चहरे सहित उसकी मुट्ठियाँ भींच गए I आँखें कुछ और अधिक लाल हो गई थीं I पर यह कौन-सा दर्द था? शारीरिक, जो अस्पताल की दवाइयों से दूर हो जाएगा? या फिर मानसिक, जो इन नेताओं ने उसे जीवन भर के लिए दिया है?
मैं कह नहीं सकता।

 

 

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