नैहाटी। 31 जुलाई बुधवार शाम को नैहाटी, गौरीपुर अंचल की सामाजिक संस्था न्यू कल्याण संघ के तत्वाधान में प्रेमचंद जयंती मनाई गई। जयंती में अंचल के गणमान्य व्यक्ति एवं स्कूल-कॉलेज के अध्यापक उपस्थित रहें। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रेमचंद की तस्वीर पर माल्यार्पण और दीपक प्रज्वलित करके किया गया। कार्यक्रम में एंड्रयूज हाई स्कूल के अध्यापक सुभाष साव ने प्रेमचंद की रचनाओं के महत्व को बताते हुए कहा की वर्तमान पीढ़ी के छात्रों के लिए प्रेमचंद की कहानियां बहुत उपयोगी हैं। ये कहानियां विद्यार्थियों के मनोरंजन के साथ-साथ उन्हें नैतिक शिक्षा की तरफ उन्मुख करती है।
जगद्दल श्री हरि उच्च विद्यालय के अध्यापक डॉ. कार्तिक कुमार साव ने प्रेमचंद की रचनाओं में वर्णित समस्याओं को वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक बताते हुए अंचल विशेष की समस्याओं को उजागर करते हुए उन समस्याओं पर चिंता व्यक्त किया और प्रशासन एवं प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने बताया कि अंचल विशेष की समस्याएं सिर्फ हमारे अंचल की ही नहीं हैं बल्कि संपूर्ण भारत में यह समस्याएं विद्यमान है। केंद्र की सरकार हो या राज्यों की सरकारें हो उनको गंभीरता से इस पर विचार करनी चाहिए और समस्याओं के निवारण हेतु कदम उठाने चाहिए। जिससे सालों से दबती आई इस जन मानस को आत्म गौरव के साथ अपने देश की माटी में जीवन-यापन करने का अवसर प्राप्त हो। उन्होंने कई ज्वलंत उदाहरणों को भी इस संदर्भ में प्रस्तुत किया।
एंग्लो वर्नाकुलर हाई स्कूल उच्च माध्यमिक के अध्यापक पप्पू रजक ने प्रेमचंद के निबंधों का जिक्र करते हुए महाजनी सभ्यता के परिवर्तित रूप को व्याख्यायित किया एवं पाठकों और भारत वासियों को सचेत होने की बात कही कि आज अगर हम सचेत नहीं होंगे तो हम अपनी सभ्यता और संस्कृति के मूलभूत आधारों को खो बैठेंगे। गौरीपुर हिंदी हाई स्कूल के अध्यापक राजकुमार साव ने शिक्षा व्यवस्था की दुर्गति का पर्दाफाश करते हुए बताया कि अगर निम्न वर्ग के परिवार से कोई एक व्यक्ति भी सही शिक्षा प्राप्त करके आगे बढ़ता है तो उसकी आने वाली तीन पीढ़ियां मजबूत हो जाती हैं। ऐसे में प्रेमचंद के साहित्य में उपस्थित शिक्षा संबंधी विचारों को हमें क्रियान्वित करना होगा।
कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता बैरकपुर राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ कॉलेज, हिंदी विभाग के डॉ. बिक्रम कुमार साव ने प्रेमचंद की प्रासंगिकता को तुलसीदास की प्रासंगिकता से जोड़ते हुए कहा कि जैसे हम तुलसीदास के रचनाओं के रचनात्मक महत्व को कई शताब्दियों से देखते आ रहे हैं ठीक उसी प्रकार प्रेमचंद की रचनाएं भी कई शताब्दियों तक अपने रचनात्मक महत्व के साथ साहित्य जगत में उपस्थित रहेंगी। प्रेमचंद दूरदर्शिता के धनी रचनाकार थे। सामाजिक क्षेत्र में आने वाली भविष्य की समस्याओं को वे भाप जाते थे और अपनी रचनाओं में इसका उल्लेख भी करते थे इन समस्याओं के समाधान हेतु उपाय भी बताते थे।
उनके द्वारा बताए गए उपाय गांधीवादी दर्शन से प्रभावित था। समाज की समस्याओं के चित्रण के वक्त वे मार्क्सवादी दिखाई देते हैं पर जब वह उन समस्याओं के समाधान हेतु उपाय बताते हैं तब वह गांधीवादी दर्शन से जुड़ जाते हैं। मुक्तिमार्ग, बुढ़ी काकी, पंच परमेश्वर, सद्गति, दो बैलों की कथा, शतरंज के खिलाड़ी, दो भाई, बेटों वाली विधवा जैसी कई कहानियां हैं और साथ में उनके द्वारा लिखित जितने भी उपन्यास हैं उन सभी रचनाओं में आप उनके दोनों विचारों को देख सकते हैं। उनकी रचनाओं में आप इन दोनों दर्शनों का समन्वय देख पाइएगा।
बिना समन्वय और सामंजस्य के किसी भी सुंदर चीज की कल्पना नहीं की जा सकती है इस प्रकार मार्क्सवादी और गांधीवादी विचारों के समन्वय से ही उनकी सुंदर कृतियां हमारे पास उपलब्ध हुई है। यह कृतियां विषहर औषधीय गुणों से संपन्न है जो मनुष्य के भीतर की कलुषता, ईर्ष्या, द्वैष, अहंकार, घमंड, बड़बोलापन, चुगलखोरी, बेईमानी जैसी बीमारियों को दूर करती हैं। हृदयगत भावनाओं और व्यापारों के संक्रमण के उपचार में उनकी रचनाएं एंटीबायोटिक की तरह काम करती हैं। उनकी रचनाएं हमारे हिंदी साहित्य जगत की ही नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्य जगत के साथ विश्व साहित्य जगत की एक बड़ी उपलब्धि है।
कार्यक्रम में काउंसलर आरती देवी माल्लाह, सत्य प्रकाश दुबे, शिक्षक श्याम राजक, शिक्षक दिनेश दास, शिक्षक चंदन भाई, शिक्षक लालटू साव के साथ संस्था के सदस्य गण अमरजीत कुमार, शिबू दास, सुरज साव, संदीप प्रसाद, विनोद दास, धर्मानंद तिवारी, उमेश राय उपस्थित रहें। कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के संयोजक रामचंद्र मल्लाह ने सभी वक्ताओं और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया।
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