पीने योग्य शराब बनाम औद्योगिक शराब

सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच का ऐतिहासिक फैसला- 34 साल पुराना अपना ही आदेश पलट दिया
आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही राज्य सरकारों के लिए औद्योगिक शराब टैक्स के रूप में राज्यों को नया राजस्व स्रोत मील का पत्थर साबित होगा- अधिवक्ता के.एस. भावनानीं

अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर प्रौद्योगिकी की निर्भरता के बढ़ते दौर में जीवन का परिदृश्य ही बदल गया है। जहां एक ओर इससे लॉन्ग टर्म सकारात्मक फायदे हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ शराब, तंबाकू, सट्टा, जुआ सहित अनेक गलत तौर-तरीके के व्यसनों की और मानवीय जीव चल पड़ा है तो तीसरी ओर इसका व्यापार, व्यवसाय करने वालों और राज्य सरकारों को भी मोटी आमदनी हो जाती है विशेष रूप से राज्य सरकारों को शराब से मोटा राजस्व प्राप्त होता है, यही कारण है कि पिछली बार कोविड अवधि में जहां सारा देश लॉकडाउन था वही सबसे पहले शराब बिक्री को ही अनुमति दी गई थी, अर्थात वही राजस्व का चक्कर था, आज हम शराब पर इसलिए बात कर रहे हैं क्योंकि बुधवार दिनांक 23 अक्टूबर 2024 को शाम संवैधानिक पीठ ने अपने ही 34 साल पुराने आदेश को पलट दिया और औद्योगिक शराब पर राज्य सरकारों को कर नीति बनाने या इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए कानून बनाने का अधिकार दे दिया है।

प्रतिकात्मक फोटो, साभार गूगल

हम कुछ अवधि से कुछ दशकों से सुनते आ रहे हैं कि जहरीली शराब से इतने मरे, उतनें मरे अभी-अभी हमने तमिलनाडु बिहार सहित कुछ राज्यों में जहरीली शराब पीने से बहुत लोगों की मौत का समाचार सुना था स्वाभाविक है। औद्योगिक शराब का दुरुपयोग हुआ होगा, इसलिए ही राज्यों ने 34 साल की लड़ाई कर मशक्कत के बाद फैसला उनके हक में आया है, इस पर कानून बनाने से अधिक औद्योगिक शराब पर मोटी टैक्स लगाने से राजस्व में भारी वृद्धि करने का फंडा है, क्योंकि अनेक राज्य सरकारी रेवड़ियों के कारण आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है। चूँकि सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला दिया है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही राज्य सरकारों के लिए औद्योगिक शराब पर टैक्स के रूप में राज्यों को नया राजस्व स्रोत मील का पत्थर साबित होगा।

साथियों बात अगर हम पीने योग्य शराब बनाम औद्योगिक शराब पर 9 जजों की बेंच द्वारा 23 अक्टूबर 2024 को दिए गए जजमेंट की करें तो, 23 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने इंडस्ट्रियल शराब के अधिकार को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें पुष्टि की गई कि राज्यों के पास इस मामले पर कानून बनाने का अधिकार है। केरल, महाराष्ट्र, पंजाब और यूपी जैस राज्य इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की शरण में थे, उनकी दलील थी कि जिस तरह इसका उपयोग किया जा रहा है, उसको देखते हुए राज्य सरकारें चुप नहीं बैठ सकतीं, क्योंकि इनके उपयोग से जहरीली शराब भी बनाई जा रही हैं और मौते हो रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला 9 जजों की खंडपीठ ने किया। ये फैसला 8:1 बहुमत से सुनाया गया। फैसले में इसे नशीली शराब के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस फैसले ने 1990 के पुराने फैसले को पलट दिया कि, जबकि इसका पॉवर केंद्र सरकार तक सीमित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडस्ट्रियल शराब पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों का है, इसे छीना नहीं जा सकता है। 9 जजों की बेंच ने 7 जजों की बेंच के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि इंडस्ट्रियल शराब को रेगुलेट करने का अधिकार केंद्र के पास है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है इंडस्ट्रियल अल्कोहल यानि औद्योगिक अल्कोहल का मसला केंद्र से ज्यादा राज्य सरकारों का है, लिहाजा वो इस पर कानून बनाने का अधिकार रखती हैं।इंडस्ट्रियल अल्कोहल को औद्योगिक शराब भी कह सकते हैं, इसे विकृत अल्कोहल भी कह सकते हैं, ये चूंकि इलेनॉल का शुद्धता वाला रूप में है, लिहाजा इसका उपयोग मानव उपभोग के लिए नहीं होता, ये पीते ही स्वास्थ्य को खराब कर सकती है और अस्पताल पहुंचा सकती है। ये जहरीली शराब जैसा काम भी करती है। असल में सुप्रीम कोर्ट ने 8:1 की बहुमत से फैसला सुना दिया है कि राज्य सरकार के पास भी औद्योगिक शराब को भी रेगुलेट करने की ताकत राज्य सरकारों के पास रहने वाली है, इसे उनसे छीना नहीं जा सकता है।बड़ी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि कानून में औद्योगिक और नशीली शराब के उत्पाद दोनों शामिल रखे जाएंगे। इसका मतलब यह है कि नशीली शराब पर भी कानून बनाने का अधिकार राज्य का रहने वाला है।

साथियों बात अगर हम पीने योग्य शराब व औद्योगिक शराब को समझने की करें तो, क्या है नशीली शराब की परिभाषा सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 8 में “नशीली शराब” शब्द में औद्योगिक शराब शामिल है, जो बताता है कि ये अगर मनुष्यों द्वारा उपयोग में लाई जाए तो जहर जैसा काम करती है, बहुमत की राय ने इस बात पर जोर दिया कि “नशीली” का अर्थ हानिकारक या जहरीले पदार्थों से भी हो सकता है। अल्कोहल कितनी तरह की होती है। शराब मुख्य तौर पर दो तरह की होती है- औद्योगिक अल्कोहल यह आमतौर पर आइसोप्रोपिल अल्कोहल (आइसोप्रोपेनॉल) या विकृत अल्कोहल (एडिटिव्स के साथ इथेनॉल) होती है। आइसोप्रोपाइल अल्कोहल की केमिकल संरचना सी₃₈0 होती है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से औद्योगिक सेटिंग्स में सफाई और कीटाणु शोधन के लिए किया जाता है दूसरी औद्योगिक अल्कोहल इथेनॉल यानि सी25ओह होती है, जिसका उपयोग अक्सर जहरीली शराब बनाने में किया जाता है।

उपयोग की जाने लायक अल्कोहल- यह मुख्य रूप से इथाइल अल्कोहल (इथेनॉल) है। जिसका उपयोग मनुष्यों द्वारा किया जाता रहा है। बीयर, वाइन और स्प्रिट जैसे मादक पेय पदार्थों में इसी के घटक होते हैं। इथेनॉल खो खमीर द्वारा शर्करा के किण्वन के माध्यम से बनाया जाता है। औद्योगिक शराब का जहरीलापन आइसोप्रोपाइल और विकृत शराब दोनों ही अगर पिए जाएं तो जहर जैसा काम करते हैं, सेवन से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, मसलन- पेट और आंतों में बुरी तरह जलन, नर्वस सिस्टम पर बुरी तरह असर, छोटी मात्रा से भी संभावित घातक परिणाम, आंखें जा सकती है, पागलपन, मौत भी, औद्योगिक अल्कोहल के लगातार सेवन से लीवर और किडनी को नुकसान हो सकता है, कोमा का जोखिम।क्या इथेनॉल हमेशा जहरीला होता है? नहीं ऐसा नहीं है। इथेनॉल उच्च खुराक हमेशा जहरीली होती है, लेकिन तय सीमा सेवन के लिए सुरक्षित है। शरीर इथेनॉल को तब पचा सकता है, जब जिम्मेदारी से इसका सेवन किया जाए, तब इसके हानिकारक प्रभाव नहीं होते।

साथियों बात अगर हम इस केस को समझने की करें तो केस यह था कि क्या राज्य सरकारों के पास इंडस्ट्रियल अल्कोहल की सेल्स, डिस्ट्रीब्यूशन, प्राइसिंग को रेगुलेट और कंट्रोल करने की शक्ति है या नहीं। इंडस्ट्रियल अल्कोहल का उपयोग फार्मास्यूटिकल्स, कीटाणुनाशक, रसायन और यहां तक ​​कि जैव ईंधन के निर्माण में होता है। सुप्रीम कोर्ट बोला- औद्योगिक शराब पर टैक्स का अधिकार राज्य के पास। औद्योगिक शराब संविधान की लिस्ट II की एंट्री 8 के तहत नशीली शराब की परिभाषा के तहत आती है, जिससे राज्यों को इसके उत्पादन को विनियमित करने और टैक्स लगाने का अधिकार मिलता है। औद्योगिक शराब पर कानून बनाने की राज्य की शक्ति छीनी नहीं जा सकती।

साल 2010 में यह केस 9 जजों की बेंच में ट्रांसफर हुआ था। इस साल अप्रैल में इस केस में 6 दिन लगातार सुनवाई हुई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज 9 जजों की बेंच ने 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने फैसले का विरोध किया। इंडस्ट्रियल अल्कोहल इथेनॉल का अशुद्ध रूप है। आमतौर पर सॉल्वेंट के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। ये लोगों के पीने के लिए नहीं होती। अनाधिकृत उपभोग से बचने के लिए, इंडस्ट्रियल शराब में उल्टी पैदा करने वाला पदार्थ मिलाकर भी बेचा जाता है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि कि इंडस्ट्रियल शराब पर टैक्स लगाने की शक्ति महत्वपूर्ण है। ये राज्यों की आय का एक महत्वपूर्ण जरिया है।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि औद्योगिक शराब को विनियमित करने की शक्ति केंद्र के पास चली जाती है, तो औद्योगिक शराब की अवैध खपत से निपटने के मामले में उनके हाथ बंधे रहेंगे याचिकाकर्ताओं ने अदालत को औद्योगिक शराब के उत्पादन की तकनीकी प्रक्रिया के माध्यम से यह भी समझाने की कोशिश की कि सभी शराब ‘नशीली’ होती है चाहे पीने योग्य हो या नहीं। केंद्र ने तर्क दिया कि औद्योगिक शराब को विनियमित करने की शक्ति हमेशा उनकी रही है। स्टेट लिस्ट की एंट्री 8 का उस शराब से कोई लेना-देना नहीं है जो पीने योग्य नहीं है। इंडस्ट्रियल अल्कोहल केस-7 जजों की बेंच का फैसला पलटा : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास, इसे नहीं छीना जा सकता।

वर्तमान मामले को 2007 में नौ जजों की पीठ को भेजा गया और यह उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 (आईडीआर अधिनियम) की धारा 18 जी की व्याख्या से संबंधित है। धारा 18 जी केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने की अनुमति देती है कि अनुसूचित उद्योगों से संबंधित कुछ उत्पाद निष्पक्ष रूप से वितरित किए जाएं और उचित मूल्य पर उपलब्ध हों। वे इन उत्पादों की आपूर्ति, वितरण और व्यापार को नियंत्रित करने के लिए आधिकारिक अधिसूचना जारी करके ऐसा कर सकते हैं। हालांकि, संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III की प्रविष्टि 33 के अनुसार, राज्य विधानमंडल के पास संघ के नियंत्रण वाले उद्योगों और इसी तरह के आयातित सामानों के व्यापार, उत्पादन और वितरण को विनियमित करने की शक्ति है। यह तर्क दिया गया कि सिंथेटिक्स एंड केमिकल लिमिटेड बनाम यूपी राज्य में सात जजों की पीठ राज्य की समवर्ती शक्तियों के साथ धारा 18 जी के हस्तक्षेप को संबोधित करने में विफल रही थी।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पीने योग्य शराब बनाम औद्योगिक शराब। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच का ऐतिहासिक फैसला- 34 साल पुराना अपना ही आदेश पलट दिया, आर्थिक चुनौतियों से जूझ रही राज्य सरकारों के लिए औद्योगिक शराब टैक्स के रूप में राज्यों को नया राजस्व स्रोत मील का पत्थर साबित होगा।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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