पितृ पक्ष पर विशेष

क्या गया जी श्राद्ध से होती है मोक्ष की प्राप्ति?

वाराणसी। हिन्दू धर्म में श्राद्ध की बड़ी महिमा बताई गई है। शास्त्र का वचन है- ‘श्रद्ध्या इदं श्राद्धम्’ अर्थात् पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है। श्राद्ध पक्ष में पितृगणों (पितरों) के निमित्त तर्पण व ब्राह्मण भोजन कराने का विधान है किंतु जानकारी के अभाव में अधिकांश लोग इसे उचित रीति से नहीं करते जो कि दोषपूर्ण है क्योंकि शास्त्रानुसार पितरो वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता:’ अर्थात् देवता भाव से प्रसन्न होते हैं और पितृगण शुद्ध व उचित विधि से किए गए श्राद्धकर्म से।

शास्त्रानुसार श्राद्ध करने से दिवंगत जीवात्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां मोक्ष’ से आशय अत्यंत गूढ़ अर्थ में है क्योंकि ‘मोक्ष’ का अर्थ है जीवात्मा का जन्म-मृत्यु के आवागमन से मुक्त हो जाना। जिस प्रकार बूंद; जो कि सागर का ही अंश है उस बूंद का अपने अंशी सागर में ही समा जाना, विलीन हो जाना। जब अंशरूप जीवात्मा अपने अंशी परमात्मा में समाहित हो जाती है उसी का नाम मोक्ष’ है।

अब यहां यह प्रश्न उपस्थित होता है क्या किसी दूसरे के द्वारा सम्पादित किए गए कर्म से जीवात्मा का परमात्मा से मिलन सम्भव है?
क्या किसी के भोजन करने से आपकी क्षुधातृप्ति हो सकती है?

निश्चय ही नहीं। ‘मोक्ष’ प्राप्ति के लिए तो जीवात्मा को स्वयं ही प्रयत्न करना होगा किंतु उसके लिए जीवात्मा को देह अर्थात् शरीर की आवश्यकता होगी क्योंकि शास्त्र का वचन है- शरीरमाद्यं खलु साधनं…’ सांसारिक मृत्यु में जीव की केवल भौतिक देह ही नष्ट होती है, सूक्ष्म् देह के साथ वह जीव फिर अपने कर्मानुसार अगले जन्म की यात्रा पर आगे बढ़ता है।

इस सूक्ष्म शरीर में उसके समस्त मनोभाव उसी प्रकार सुरक्षित रहते हैं जैसे काष्ठ में अग्नि। वह इन्हीं मनोभावों एवं अपने कर्मानुसार पुन: गर्भधारण नवीन देह की प्राप्ति करता है। सामान्यत: अधिकांश जीवात्माएं सामान्य मनोभावों वाली होती है किंतु कुछ विरली जीवात्माएं असाधारण मनोभावों वाली होती हैं जिनमें श्रेष्ठ मनोभाव एवं निकृष्ट मनोभाव दोनों ही प्रकार के होते हैं। इन्हीं दो श्रेणियों की जीवात्माओं को पुन: गर्भ एवं नवीन देहप्राप्ति में विलंब होता है।

यहां विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि श्रेष्ठ मनोभावों वाली जीवात्माएं (सूक्ष्म शरीर) अपने अशरीरी रूप में रहते हुए किसी का अनिष्ट या हानि नहीं करतीं किंतु निकृष्ट मनोभावों वाली जीवात्मा (सूक्ष्म शरीर) अपने किसी विशेष कामना रूपी अवरोध के कारण अपने अशरीरी रूप में होते हुए नवीन देह की प्राप्ति हेतु कोई संकेत या हानि कर सकतीं हैं।

हिन्दू धर्म में जन्म लेने वाला बच्चा जीवनपर्यंत अपने हिन्दू संस्कारों से ही संस्कारित होता है, अत: श्राद्ध इत्यादि कर्म में उसकी पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होता है। अब यदि देहावसान के बाद उसके इसी विश्वास और श्रद्धा के अनुरूप उसके निमित्त श्राद्धकर्म ना किए जाएं तो उसके यही अपेक्षित मनोभाव उस जीवात्मा के नवीन गर्भधारण और नूतन देह प्राप्ति में बाधक बन सकते हैं, इसलिए प्रत्येक हिन्दू धर्मावलंबी को अपने दिवंगत परिजनों की जीवात्मा की मोक्ष पर्यंत आगे की यात्रा के निमित्त श्राद्धकर्म करना नितांत आवश्यक है।

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848

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