परमा एकादशी आज

वाराणसी। इस एकादशी का व्रत दिलाता है दुख-दरिद्रता से मुक्ति, कुबेर को भी मिला था इसका फल। परमा एकादशी का व्रत 12 अगस्त 2023 को रखा जाएगा। इस व्रत के प्रभाव से विष्णु जी बेहद प्रसन्न होकर व्रती को दुख-दरिद्रता से मुक्ति दिलाते हैं। अधिकमास की परमा एकादशी धन संकट दूर करने वाली मानी जाती है। इस व्रत के प्रभाव विष्णु जी बेहद प्रसन्न होकर व्रती को दुख-दरिद्रता से मुक्ति दिलाते हैं। इस साल अधिकमास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत 12 अगस्त 2023 को रखा जाएगा। परमा एकादशी अपने नाम स्वरूप परम सिद्धियां प्रदान करने वाला व्रत है, मान्यता है कि यदि किसी कारणवश व्रत नहीं कर पाते हैं तो सिर्फ परमा एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य की दरिद्रता दूर हो जाती है।

परमा एकादशी का मुहूर्त :
अधिकमास कृष्ण एकादशी तिथि शुरू – 11 अगस्त 2023, सुबह 05.06
अधिकमास कृष्ण एकादशी तिथि समाप्त – 12 अगस्त 2023, सुबह 06.31
पूजा का समय – सुबह 07.28 – सुबह 09.07 (12 अगस्त 2023)
परमा एकादशी व्रत पारण समय – सुबह 05.49 – सुबह 08.19 (13 अगस्त 2023)

परमा एकादशी की कथा : पौराणिक कथा के अनुसार काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री अत्यंत पवित्र तथा पतिव्रता थी। किसी पूर्व पाप के कारण वह दंपती अत्यंत दरिद्रता का जीवन बिता रहे थे। हालात ये थे कि ब्राह्मण को भिक्षा मांगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी लेकिन ब्राह्मण की पत्नी बहुत दयावान और धार्मिक थी, घर में खुद भूखी रह जाती लेकिन द्वार पर आए अतिथि को अन्न जरुर देती थी।

गरीबी से उबारता है परमा एकादशी व्रत : एक दिन गरीबी से दुखी होकर सुमेधा ने परदेश जाने का विचार अपनी पत्नी को बताया, तब वह बोली की ‘’स्वामी धन और संतान पूर्वजन्म के दान से ही प्राप्त होते हैं, अत: आप इसके लिए चिंता ना करें। जो भाग्य में होगा यहीं प्राप्त होगा। पत्नी की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया। इसी प्रकार समय बीतता रहा। फिर एक बार कौण्डिन्य ऋषि वहां आए। ब्राह्मण दंपति ने बेहद प्रसन्न मन से उनकी सेवा की।

कुबेर को मिला था इस एकादशी का फल : दंपत्ति ने महर्षि से दरिद्रता दूर करने का उपाय जाना। उसके बाद महर्षि ने कहा कि मलमास की परमा एकादशी का व्रत करने से दुख, दरिद्रता और पाप कर्मों का नाश होता है। इस व्रत में नृत्य, गायन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए। इसी एकादशी के व्रत से यक्षराज कुबेर धनाधीश बने और हरिशचंद्र राजा हुए थे। ऋर्षि ने बताया कि परमा एकादशी के दिन से पंचरात्रि यानी पांच दिन और रात तक जो निर्जल व्रत करता है उसे कभी धन का संकट नहीं रहता। इसके बाद सुमेधा ने पत्नी सहित परमा एकादशी का व्रत किया और एक दिन सुबह कहीं से अचानक ही एक राजकुमार वहां आया और सुमेधा को धन, अन्न और सर्व साधन से संपन्न कर दिया। इस व्रत को करने से ब्राह्मण दंपति के सुखी दिन शुरू हो गए।

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

ज्योर्तिविद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five × 3 =