कोलकाता। बच्चों के लिए किशोरावस्था की उम्र का बहुत ही नाजुक दौर होता है। इस उम्र में बच्चे आसानी से भटक जाते हैं। ऐसे में पैरेट्स के लिए जरूरी हो जाता है कि वे बच्चों को भटकने से पहले संभाल लें और उनका भविष्य अंधकार में न जाने दें। इसके साथ ही अभिभावकों की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि वे अपने बच्चों को संस्कारी बनाएं और उन्हें जीवन मूल्यों के बारे में बताएं।
डिसिप्लिन में रहना सिखाएं : आज के दौर में बच्चे बहुत आसानी से बुरी संगत में आकर गलत रास्ते पर चलने लगते है। बुरी चीजों की लत, दिखावे की सोच और खराब बिहेवियर तो मानो उनके लिए आम बात हो चुकी है। इसी तरह कई किशोर बच्चे अपनी उम्र के बच्चों को देखकर गलत आदतें अपना लेते हैं, अभद्र भाषा बोलने लगते हैं। ऐसे किशोर बच्चों को डिसिप्लिन का पाठ पढ़ाकर, आप उनकी बुरी आदतों को बदल सकती हैं।
अगर सही समय पर ही संस्कारों की बुनियाद मजबूत कर दी जाए, तो बच्चे की सोच शुरुआत में ही सही दिशा पा जाती है। इस तरह समय रहते मर्यादित व्यवहार का पाठ पढ़ाकर किशोर बच्चों को दिखावटी-बनावटी बातों से बचाया जा सकता है। आदिशक्ति की आराधना के इस उत्सवीय माहौल में किशोर बच्चों को सधे और शालीन जीवन का पाठ पढ़ाएं। डिसिप्लिन लाइफस्टाइल के मायने को समझाएं।
स्प्रीचुएलिटी से जोड़ें : नवरात्र के नौ दिन, मन की ऊर्जा को साधने के दिन हैं। इस एनर्जी का आधार दिलो-दिमाग को शांत और सहज रखने के भाव से जुड़ा है। यही भाव किशोर बच्चों को भी बताए जा सकते हैं। इसे एक किस्म से स्प्रीचुएलिटी से जुड़ना भी कहा जाएगा। स्प्रीचुअल होने का मतलब किशोर बच्चों का पूरी तरह आध्यात्मिक हो जाना नहीं है।
उनके मन में परिवार के लिए प्यार और सम्मान का भाव होना जरूरी है। सकारात्मक रहना है, आत्म-संतोष को समझना है। किशोर बच्चों की इस तरह की सोच विकसित करने के लिए अभिभावक घर में उनसे बातचीत करें। मेडिटेशन, प्रार्थना और संतुलित जीवनशैली अपनाकर उनको इसके प्रति प्रेरित करें।
जीवन मूल्यों का महत्व बताएं : किशोर बच्चों को जीवन मूल्यों का महत्व बताना बहुत जरूरी है। उन्हें पता होना चाहिए कि उदारता, सहयोग, रचनात्मक सोच, संतुलन, चेतना, विनम्रता और जिज्ञासा, ये वो गुण हैं, जो उन्हें बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं। सही मायनों में यही जीवन- मूल्य हैं, जो भावी पीढ़ी तक जरूर पहुंचने चाहिए। हमारे नवरात्र जैसे पारंपरिक उत्सव किशोर बच्चों को इन जीवन-मूल्यों से जोड़ने का अच्छा अवसर हैं।
शक्ति की उपासना का यह पर्व चेतना संपन्न बनने और पॉजिटिव विचार लाइफ में उतारने का ही संदेश लिए है। अभिभावकों को चाहिए कि कच्ची उम्र के इस मोड़ पर अपने किशोर बच्चों को जीवन-मूल्यों का महत्व बताएं। साथ ही जीवन-मूल्यों को सिखाने के लिए अभिभावक खुद रोल मॉडल बनें। बच्चे जब इन मूल्यों को अपनाएं तो उनकी सराहना जरूर करें। इससे वे जीवन-मूल्यों को अपनाए रखने के लिए प्रोत्साहित होंगे।