‘ रामकथा : लोक और शास्त्र’ विषय पर 18 और 19 अक्टूबर को द्वि दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

  • दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गोरखपुर एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पोषित ‘साहित्यार्चन ‘ हिन्दी विभाग तथा गोरखनाथ साहित्यिक केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में सफ़ल आयोजन

पहले दिन सरस्वती वंदना से संगोष्ठी प्रारंभ हुई । प्रो. नित्यानंद श्रीवास्तव ने स्वागत वक्तव्य के माध्यम से देश भर से आए अध्यापकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का स्वागत किया।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सदानंद गुप्त ने कहा कि राम कथा संस्कृति कथा है। संस्कृति को खोकर कोई देश जीवित नहीं रह सकता। प्रो. राम जन्म सिंह ने कहा कि विभिन्न रामकथाओं के विस्तार के साथ साथ परिवर्धन और परिवर्तन भी हुआ है।

प्रो. रणविजय सिंह ने राम कथा को मूल रूप से जनता तक पहुंचाने में बाल्मीकि की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि बाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा इसलिए उनका रामायण उतना प्रसिद्ध नहीं हुआ जितना लोक भाषा में लिखे गए राम काव्य प्रसिद्ध हुए।

प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने अपने विद्वतापूर्ण वक्तव्य के माध्यम से यह संदेश दिया कि हमें यह जानना चाहिए कि बालक राम कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनते हैं ।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की डॉ. अमिता दुबे ने संगोष्ठी की सफलता हेतु शुभकामनाएं देते हुए रामकथा के विभिन्न आयामों को रेखांकित किया । इस सत्र का संचालन डॉ. विभा सिंह ने एवं धन्यवाद ज्ञापन इस महाविद्यालय के माननीय प्राचार्य डॉ. ओम प्रकाश सिंह ने किया ।

द्वितीय सत्र में डॉ. राजेश कुमार मल्ल, प्रो. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, प्रो. सर्वेश पाण्डेय,डॉ. गोपेश्वर दत्त पाण्डेय एवं प्रो. अजय कुमार ने अपना सुचिंतित वक्तव्य रखा ।

Organization of a two-day national seminar on the topic 'Ramkatha: Folk and Shastra' on 18th and 19th October.

इस सत्र का अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. राधेश्याम सिंह ने रामकथा के संदर्भ में लोक और शास्त्र के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया

इस सत्र का स्वागत वक्तव्य डॉ. विजय आनंद मिश्र, संचालन डॉ. राकेश सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अदिति दुबे ने किया। प्रो. राधे श्याम सिंह ने अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए रामकथा के विभिन्न संदर्भों को रेखांकित किया।

दूसरे दिन के प्रथम सत्र में डॉ. विजय आनंद मिश्र,डॉ. राणा प्रताप तिवारी , डॉ. गोविंद वर्मा एवं डॉ.विशाल गुप्त ने अपने व्याख्यानों से संगोष्ठी को समृद्ध किया। इस सत्र का संचालन डॉ. अदिति दुबे ने एवं आभार ज्ञापन डॉ. कृष्ण मुरारी पॉल ने किया ।

दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रो. सत्येंद्र दुबे ने किया । डॉ.अमित कुमार पाण्डेय, डॉ.सत्य प्रिय पाण्डेय, डॉ.मुकेश कुमार मिश्र ने रामकथा के विभिन्न आयामों पर अपने विचार व्यक्त किए। इस सत्र का संचालन डॉ. राकेश सिंह ने एवं स्वागत वक्तव्य प्रो. नित्यानंद श्रीवास्तव ने किया।

समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी ने नेपाली भाषा के भानुभक्त रामायण को केंद्र में रखते हुए अपना विचार व्यक्त किया। इस सत्र में डॉ.बबलू पॉल एवं डॉ. श्यामनंदन ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया।

डॉ. अमिता दुबे ने इस संगोष्ठी की सफलता को रेखांकित करते हुए आभार ज्ञापन किया ।

महाविद्यालय के माननीय प्राचार्य प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने समापन वक्तव्य देते हुए रामकथा के कुछ महत्वपूर्ण संदर्भों को रेखांकित करते हुए यह स्पष्ट किया कि राम के आदर्श किस प्रकार मानव जीवन को सफल बना सकते हैं।

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