कोलकाता। रामनवमी की शोभा यात्राओं को केंद्र कर हावड़ा, हुगली और राज्य के अन्य जगहों पर हुई हिंसा को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को तीखी टिप्पणी की है। राज्य सरकार को नसीहत देते हुए कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवज्ञानम की खंडपीठ ने कहा है कि राज्य पुलिस अगर हालात को संभालने में विफल हो रही है तो पैरामिलिट्री की मदद ली जानी चाहिए। उन्होंने आसन्न हनुमान जयंती का जिक्र करते हुए कहा कि अतीत की घटनाओं से सबक लेनी चाहिए।
बीमारी को लेकर अग्रिम बचाव बेहद जरूरी है। मैंने इसके पहले गणेश चतुर्थी की शोभायात्रा पर इसी तरह से हिंसा को लेकर आठ-नौ साल पहले सुनवाई की थी। तब मैंने ठोस निर्देश दिए थे और तब से गणेश चतुर्थी पर शांति बरकरार है। इसी तरह से हनुमान जयंती आने वाली है। उस दिन भी शोभायात्रा निकलेगी। राज्य पुलिस अगर संभालने में विफल है तो पैरामिलिट्री की मदद ली जाए लेकिन ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए।
हिंसा से डरे न्यायाधीश ने भी मांगी है सुरक्षा
न्यायमूर्ति शिवज्ञानम ने एक महत्वपूर्ण मामले का खुलासा करते हुए कहा कि डायमंड हार्बर के एक न्यायाधीश ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखा है। डायमंड हार्बर में जज हैं लेकिन उनका परिवार श्रीरामपुर में रहता है। उन्होंने खुद ही थाने और पुलिस के उच्च पदस्थ अधिकारियों से मदद मांगी लेकिन कोई मदद नहीं मिली। दो बेटे और पत्नी को लेकर परिवार श्रीरामपुर में रहता है। उन्होंने हाईकोर्ट से सुरक्षा मांगी है। जो लोग इस तरह से बाहर रहते हैं और उनका परिवार हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में हैं उनका क्या होगा?
लोगों के मन में भरोसा बहाल करने की जरूरत है। इसके लिए रूट मार्च की जानी चाहिए। प्राकृतिक आपदा आती है तब भी केंद्रीय टीम आती है इसीलिए ऐसे मामलों में भी शांति बहाल करने के लिए अगर आवश्यकता हो तो तुरंत पैरामिलिट्री की मदद ली जानी चाहिए। मुंबई का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि गणेश चतुर्थी के समय पुलिस बैरिकेड करके शोभायात्रा करवाती है। कोई हंगामा हिंसा नहीं होती।
इस दौरान कोर्ट में केंद्र सरकार के अधिवक्ता भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि अगर राज्य को आवश्यकता पड़ेगी तो केंद्रीय बलों की तैनाती तुरंत हो जाएगी। उन्होंने राज्य पुलिस पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निशित प्रमाणिक पर भी हमले हुए लेकिन उसमें पुलिस ने कोई जांच नहीं की। उल्टे भाजपा के जो लोग मार खाए थे उन्हीं पर दोषारोपण कर जिम्मेदारियों से बच रहे थे।