निर्जला एकादशी का व्रत मन को संयम सिखाता है
वाराणसी। एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं, लेकिन जब अधिकमास (मलमास) आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है, इस व्रत मे पानी तक पीना वर्जित है, इसलिये इसे निर्जला एकादशी भी कहते है। निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेन एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। इस व्रत के करने से व्यक्ति को दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण के अनुसार ज्येष्ठ माह की शुक्ल एकादशी को यानि निर्जला एकादशी के दिन व्रत करने से सभी तीर्थों में स्नान के समान पुण्य मिलता है और इस दिन व्रत करने से सालभर की एकादशी का पुण्य मिलता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है।
इस वर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि 17 जून सोमवार सुबह 04 बजकर 44 मिनट पर शुरू होगी और 18 जून मंगलवार 06 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी। पंचांग के अनुसार इस वर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि 17 जून पूरा दिन 60 घड़ी है और दूसरे दिन यानी 18 जून मंगलवार को भी एकादशी तिथि विद्यमान हैं यहां द्वादशी तिथि का क्षय भी नहीं है। इस स्थिति में धर्मग्रंथों के अनुसार वैष्णव संप्रदाय और स्मार्त संप्रदाय – दोनों को उत्तरवर्ती द्वादशीयुता एकादशी के दिन निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस वर्ष वैष्णव संप्रदाय और स्मार्त संप्रदाय 18 जून मंगलवार को निर्जला एकादशी व्रत करना चाहिए। निर्जला एकादशी व्रत 2024 पारण का समय- 19 जून बुधवार को सुबह 5 बजकर 24 मिनट से सुबह 7 बजकर 28 के बीच किया जाएगा।
इस दिन जो व्यक्ति दान करता है वह सभी पापों का नाश करते हुए परमपद प्राप्त करता है। इस दिन ब्राह्माणों एवं जरूरतमंद को छाता, खडाऊँ, आँवले, आम, खरबूजे, वस्त्र, जल का भरा घड़ा (कलश), पंखा, जौ, गाय आदि का दान देना शुभ माना जाता है। मिष्ठानादि, दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करें। इस दिन लोग मीठे पानी की छबीलें लगाते हैं। निर्जला एकादशी के दिन दान-पुण्य और गंगा स्नान का विशेष महत्त्व होता है। किसी कारण वश बाहर नदियों में स्नान नहीं कर सके तो घर में ही स्नान एव घर के आसपास जरूरतमंद को दान करें पूरा पुण्य प्राप्त होगा।
एकादशी के दिन “ॐ नमो वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है, इसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी बहुत महत्त्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा : जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है, तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा?
पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए।
एकादशी व्रत पूजन विधि : शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए। एकादशी के व्रत को विवाहित अथवा अविवाहित दोनों कर सकते हैं। एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरु हो जाता है। दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण कर अगले दिन एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और शुद्ध जल से स्नान के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण जी की उपासना करें। पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर श्रीगणेश, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े) में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें, उसमें उपस्थित देवी-देवता, नवग्रहों, तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए। इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णु सहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, तिल, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
व्रत रखने वाले शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर कुछ दान-दक्षिणा जरूर दें।
एकादशी के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें : एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्रहम्चार्य का पालन करना चाहिए। इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए, व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए। काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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