कृषि की नई तकनीकी खोजना होगी जो बदलते हुए जलवायु के अनुरूप हो

उस व्यक्ति को लकड़ी में जलने अथवा रखने का कोई अधिकार नहीं है जिसने अपने जीवन में एक भी वृक्ष न लगाया हो

उज्जैन । मध्य प्रदेश सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान उज्जैन, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली एवं विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें भारतीय संदर्भ में पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक दायित्व चुनौतियां एवं संभावना विषय पर व्यापक चर्चा हुई। इस अवसर पर उच्च शिक्षा विभाग में कार्यरत अतिथि विद्वान डॉ. अश्वनी कुमार दुबे ने पर्यावरणीय चुनौतियों एवं समाधान विषय पर अपना अतिथि व्याख्यान प्रस्तुत किया। इन्होंने बताया कि जल थल और वायु तीनों प्रकृति की देन है जिनको संरक्षित करना हर मानव का कर्तव्य होना चाहिए।

इस पृथ्वी पर जितने भी जीव-जंतु पाये जाते है उन सभी को जीने का उतना ही अधिकार है जितना मानव जाति को। सामाजिक दायित्व के लिए उत्पादक उपभोक्ता तथा डी कंपोजर में आपसी तालमेल होना चाहिए जो मानव जाति के द्वारा संभव नहीं हो पा रहा है। इसी कारण से हमारा पर्यावरण असंतुलित हो रहा है। जलवायु परिवर्तन पर बात करते हुए कहा कि हमें कृषि की नई तकनीकी खोजना होगी जो बदलते हुए जलवायु के अनुरूप हो एवं फसल को पैदा किया जा सके। आपने उन्नत खेती के साथ-साथ बीज को संरक्षित करने पर भी जोर दिया है।

अंधाधुंध वृक्षों की कटाई करने वाले एवं वृक्षारोपण ना करने वालों के लिए कड़े शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा कि उस व्यक्ति को लकड़ी में जलने अथवा रखने का कोई अधिकार नहीं है जिसने अपने जीवन में एक भी वृक्ष न लगाया हो। इस अवसर पर संस्थान के अध्यक्ष डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा डायरेक्टर हितेंद्र सिंह सिसोदिया कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. राजेश सक्सेना वरिष्ठ वैज्ञानिक मध्य प्रदेश काउंसिल आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी भोपाल चेयरपर्सन डॉ कन्हैया अहूजा कोचेयर डॉ. प्रज्ञा अग्रवाल संयोजक डॉ. मनु गौतम तथा डाॅ. राकेश ढंड न्यास के राष्ट्रीय संयोजक संजय स्वामी सहित सैकड़ों पर्यावरणविद उपस्थित रहे। इस अवसर पर डॉ. दुबे को प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया।

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