कोलकाता। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के गरपंचकोट नामक इलाके में एस.एन. बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज की ओर से पंचेट पहाड़ी के ऊपर नई वेधशाला स्थापित की गई है। यह खगोलीय पिंडों के वैज्ञानिक अवलोकन में अहम भूमिका निभाएगी। एस.एन. बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का स्वायत्त संस्थान है।
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि यहां पर छात्रों को दूरबीनों के संचालन और आंकड़ों को रिकॉर्ड करने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। साथ ही, इस वेधशाला के माध्यम से खगोलीय अनुसंधान में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शुरू करने की बात भी कही गई है।
सबसे अहम दो ध्रुवों के बीच इस क्षेत्र में अध्ययन की कमी को भी दूर किया जा सकता है।
विज्ञप्ति के मुताबिक, यह वेधशाला जमीन से 600 मीटर की ऊंचाई पर और लगभग 86 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित है। यह पूर्वी भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया की एक प्रमुख वेधशालाओं में से के होगी। उत्तर में आर्कटिक महासागर से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिका तक फैले 86 डिग्री पूर्वी देशांतर पर बहुत कम वेधशालाएं हैं। यह वेधशाला उस कमी को दूर करेगी।
प्रेस विज्ञप्ति में प्रसिद्ध खगोल भौतिक विज्ञानी और अशोका विश्वविद्यालय के कुलपति के हवाले से कहा गया है कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक चलने वाली अस्थायी खगोलीय घटनाओं के अवलोकन के लिए दुनिया के सभी देशांतरों पर अच्छी वेधशालाओं का होना जरूरी है। इसलिए, पंचेट वेधशाला रणनीतिक रूप से सबसे अच्छी जगह पर स्थित है।
विज्ञप्ति के अनुसार, एसएन बोस केंद्र ने वेधशाला को मिलकर चलाने और संसाधनों को साझा करने के उत्तरदायित्व के लिए सिद्धू कानू बिरसा विश्वविद्यालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
प्रेस विज्ञप्ति में एसएन बोस सेंटर की निदेशक डॉ. तनुश्री साहा दासगुप्ता के हवाले से कहा गया है कि यह इस केंद्र के लिए गौरव का पल है और उन्हें उम्मीद है कि यह केंद्र अवलोकन संबंधी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अहम योगदान देगा।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल का पिछड़ा जिला माने जाने वाले पुरुलिया में इस स्तर की वेधशाला विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए प्रोत्साहन का एक बड़ा स्रोत हो सकती है।
विज्ञप्ति के अनुसार, एस.एन. बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज के खगोल भौतिकी विभाग के डॉ. रामकृष्ण दास, डॉ. सौमेन मंडल और डॉ. तपस बाग ने 2018 में औपचारिक रूप से भूमि के अधिग्रहण के बाद वेधशाला की अवधारणा, लेआउट और इसको शुरू करने का काम किया था।
इसके निर्माण स्थल की तैयारी, खगोलीय ‘दृश्य’ और मौसम के मापदंडों का निर्धारण तथा वैज्ञानिक अवलोकन के लिए 14 इंच की दूरबीन लगाना उनके कार्यों में शामिल था।
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