नव सृजन : एक सोच का ऑनलाइन कवि-सम्मेलन संपन्न

आजादी के रंग : कलमकारों के संग

कोलकाता। नव सृजन समूह द्वारा स्वतंत्रता दिवस की 78वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में दिनांक 15 अगस्त को रात 8 बजे से एक ऑनलाइन कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया। मंच का संचालन प्रबुद्ध कवि, विचारक और आध्यात्म में विशेष रुचि रखने वाले राजेंद्र सिंह रावत ने किया। जिसका शुभारंभ पश्चिम बंगाल की प्रसिद्ध कवयित्री मौसमी प्रसाद ने अपनी मधुर आवाज में सरस्वती वंदना के रूप में “शारदे, माँ शारदे” नामक रचना से किया। इसके बाद भिवानी से ओज कवि प्रवीण माटी ने गाँधी, नानक और भारत की देव नदियों के अमृतत्व के संक्षिप्त परिचय अपनी देशभक्ति रचना “मेरा देश है महान का” वाचन करके कार्यक्रम में देशभक्ति के रंग भरने का सत्कार्य किया।

इनके बाद लखीमपुर खीरी के युवा कवि गौरव मिश्रा भी पीछे नहीं रहे और “जय हो देश महान” नामक देशभक्ति कविता के माध्यम से भगत सिंह द्वारा बोए हथियारों बीजों का वर्तमान में मिराज युद्धक विमानों के रूप में वटवृक्ष बन जाने का वर्णन सहित खेलों में देश का परचम लहराए जाने तक विवरण प्रस्तुत किया। दिल्ली से जयप्रकाश ‘विलक्षण’ ने प्रत्येक सजग नागरिक की चेतना को झकझोरती रचना “क्या आजाद हैं हम?” के माध्यम से आत्ममुग्धता से बचने और देश में व्याप्त समस्याओं के समाधान ढूँढ़ने का आह्वान किया। बिहार से संघर्ष की कविताएँ रचने वाले सजग कवि रवि कुमार ‘रवि’ ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपनी कविता “कैसी आजादी?” के माध्यम से बड़े ही तीखे प्रश्न उठाए।

इसके पश्चात् वरिष्ठ कवि अंजन मिश्रा ने भगवतीचरण वर्मा की देशभक्ति रचना ‘हम दीवानों की क्या हस्ती’ द्वारा देशभक्ति के माहौल को और गहरा बनाकर श्रोताओं को आह्लादित किया। नवसृजन समूह के संस्थापक सदस्य अमित कुमार ‘अंबष्ट’ ने समूह की लगभग 10 वर्षीय यात्रा का संक्षिप्त परिचय देते हुए, दोस्ती के नाम अपनी कविता “जो पत्थर थे, वे भी तराशे गए” नामक रचना द्वारा खूबसूरत संदेश दिया। इसके पश्चात् कविनगर से युवा कवि सौम्य त्रिपाठी ने पुनः अपनी देशभक्ति रचना से कार्यक्रम के माहौल को देशभक्तिमय बनाने में सफल हुए।

कार्यक्रम के संचालक और नवसृजन के मुख्य सदस्यों में से एक राजेंद्र सिंह रावत ने इसी मध्य प्रसिद्ध कवि बलदेव प्रसाद की रचना के कुछ अंश सुनाए और पुनः मौसमी प्रसाद को अपनी रचना सुनाने का निमंत्रण दिया, जिन्होंने अपनी छंदमुक्त रचना “शांति पाकर प्रेम सभी से” के माध्यम से जीवन में शांति के महत्व को दर्शाते हुए इसके द्वारा परमतत्व को पाने में तक की यात्रा को अपने शब्द दिए। इसी मध्य समूह की सक्रिय सदस्य मंजू रवि कुमार ‘रवि’ ने केवल अपनी चार पंक्तियों से कार्यक्रम में एक अलग ही रंग भर दिया।

उनके पश्चात् कार्यक्रम में उपस्थित समूह की सबसे वरिष्ठ सदस्य और देशभर के कार्यक्रमों में बिहार की मुख्य प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित होने वाली सबकी आदरणीया विभा कुमारी ने अनूठी और कठिन शैली- ‘टेलीफोन शैली’ के माध्यम से तुकांत कविता-रूप में अपनी लघुकथा ‘धर्माधिकारी’ का वाचन किया। साथ ही शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक हेतु उपस्थित सदस्यों से उनकी साहित्यिक यात्रा के संबंध में लेख भी आमंत्रित किए।

इसके पश्चात् राजेंद्र सिंह रावत जी ने अपनी रचना ‘चाहत तो यह है कि रोज करूँ कविता का सृजन’ के माध्यम से समाज को सकारात्मकता और सर्व लोकहित की भावना द्वारा समरसता बनाए रखने का संदेश दिया। साथ ही समय की उपलब्धता को ध्यान में रखने हुए प्रवीण माटी जी को पुनः एक रचना सुनाने का आह्वान किया, जिन्होंने पुनः हमारे महान देश भारत को अपनी रचना समर्पित की।

कार्यक्रम समापन की ओर बढ़ रहा था और आवश्यकता थी एक मधुर गीत की, जिसकी पूर्ति की वरिष्ठ कवि रमाकांत मिश्रा ने अपने गीत “आप जगते रहें और जगाते रहें” के माध्यम से। कार्यक्रम के समापन से पूर्व रवि कुमार रवि ने अपने उद्बोधन द्वारा यह संदेश दिया कि यह समूह केवल समूह नहीं, परिवार है। अंत में अमित कुमार ‘अंबष्ट’ ने कार्यक्रम की समाप्ति की उद्घोषणा सहित सभी उपस्थित कवियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

लगभग 2 घंटे तक निर्बाध चलने वाले इस कार्यक्रम के माध्यम से सभी उपस्थित कवियों ने देश और समाज के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया और निरंतर ऐसे कार्यक्रमों के द्वारा निरंतर समाज में चेतना लाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

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