कोलकाता, कुमार संकल्प। पत्रकारिता के मायने समय के साथ बदल चुके हैं। अब वह जुनून लोगों के जेहन में नहीं नजर नहीं आता। युवा पत्रकारों में जोश तो है, लेकिन पत्रकारिता के प्रति विश्वास को और मजबूत बनाना बड़ी चुनौती है। आज के दौर में जबकि सोशल मीडिया ने बड़े पैमाने पर युवा पीढ़ी को प्रभावित किया है। डिजिटल मीडिया का चलन बढ़ रहा है। ऐसे समय में उद्देश्यपरक पत्रकारिता को जीवंतता बनाए रखने के लिए और अधिक सक्रियता से काम करने की आवश्यकता है। कोलकाता को आज भी सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है।
यह आज भी कहा जाता है कि जो बंगाल पहले सोचता है वह और लोग बाद में सोचते हैं। पहला हिन्दी अखबार- ‘उदन्त मार्तण्ड’ भी यहीं से निकला था। यही वजह है कि कोलकाता को हिंदी पत्रकारिता की जन्मभूमि कहा जाता है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में 30 मई 1826 को देश का पहला हिंदी अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ प्रकाशित हुआ था। अर्थाभाव में यह साप्ताहिक अखबार डेढ़ साल से अधिक नहीं चल पाया और 4 दिसम्बर 1827 को आखिरी अंक निकला था।
अंग्रेजों के जमाने में ‘उदन्त मार्तण्ड’ को डाक में छूट की सुविधा उपलब्ध नहीं थी, जिसका वितरण पर असर पड़ता था, वहीं ‘समाचार दर्पण’ को रियायत मिलती थी। डेढ़ साल के जीवन में भले ही ‘उदन्त मार्तण्ड’ बंद हो गया, लेकिन न पत्रकारिता धर्म से समझौता किया और न ही नैतिक मूल्यों से। हिंदी के पत्रकारों ने आजादी की लड़ाई में जितनी ईमानदारी से जिस तरह की भूमिका का पालन किया, वह वर्तमान समय के पत्रकारों में नहीं नजर आता।
‘उदन्त मार्तण्ड’ के बाद बंगदूत (1829), प्रजामित्र (1834), बनारस अखबार (1845), मार्तड पंचभाषीय (1846), ज्ञानदीप (1846), जगदीप भास्कर (1849), मालवा अखबार (1849), साम्यदन्त मार्तड (1850), मजहरु लसरूर (1850), सुधाकर (1850), बुद्धिप्रकाश (1852), ग्वालियर गजेट (1853), समाचार सुधावषर्ण (1854), प्रजाहितैषी (1855), सर्वहितकारक (1855), दैनिक कलकत्ता (1855), जगलाभचिंतक (1861), प्रजाहित (1861), सूरजप्रकाश (1861), सर्वोपकारक (1861), भारतखंडामृत (1864),
तत्वबोधिनी पत्रिका (1865), सत्यदीपक (1866), सोमप्रकाश (1866), ज्ञानप्रदायिनी पत्रिका (1866), ज्ञानदीपक (1867), कविवचनसुधा (1867), वृत्तांतविलास (1867), धर्मप्रकाश (1867), विद्याविलास (1867), वृत्तांतदर्पण (1867), विद्यादर्श (1869), ब्रह्मज्ञानप्रकाश (1869), अलमोड़ा अखबार (1870), आगरा अखबार (1870), बुद्धिविलास (1870), हिंदू प्रकाश (1871), प्रयागदूत (1871), बुंदेलखंड अखबर (1871), प्रेमपत्र (1872) और बोधा समाचार (1872) प्रकाशित हुआ, इसलिए 1826 से 1873 तक को हम हिंदी पत्रकारिता का पहला चरण कह सकते हैं। 1873 में भारतेन्दु ने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ की शुरु आत की।
एक वर्ष बाद यह पत्र ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ नाम से चर्चित हुआ। आचार्य देवीदत्त शुक्ल, बाबू राव विष्णु राव पराड़कर, गणेश शंकर विद्यार्थी, अंबिका प्रसाद वाजपेयी, पंडित युगल किशोर शुकुल और शिव पूजन सहाय का नाम इस संदर्भ में विशेष रूप से लिया जा सकता है। इन लोगों को सामाजिक मुद्दों की पत्रकारिता के लिए जाना जाता था, लेकिन आज सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता लुप्त होती नजर आती है। जरूरत है कि उद्देश्य व सामाजिक सरोकार पर भी पत्रकार ध्यान दें।
लोकतंत्र के स्तंभ को बनाए रखें-
पत्रकारिता, लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर मीडिया के सभी बड़े भाई, मित्रों को बहुत बहुत शुभकामनाएं। भारतीय लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्धन में पत्रकारिता, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक का महत्वपूर्ण योगदान है। स्वतंत्र, निष्पक्ष और साहसिक पत्रकारिता के बल पर ही एक सशक्त राष्ट्र निर्माण संभव है। जरूरत है कि हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर संकल्प लिया जाए। इसे आगे बढ़ाने में पत्रकार समाज बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
(नोट-कई जानकारी अलग-अलग वेबसाईट्स से भी साभार)