उज्जैन : नागरी लिपि में लिखने से मस्तिष्क के दोनों भागों का विकास होता है। अतः व्यक्तित्व विकास के लिए नागरी लिपि की उपयोगिता स्वयं सिद्ध है। इस आशय का प्रतिपादन डॉ. हरिसिंह पाल, महामंत्री नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली ने किया। नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली, इकाई म.प्र. तथा राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में वे अध्यक्षीय उद्वोधन दे रहे थे। डॉ. पाल ने आगे कहा कि, राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए देवनागरी लिपि श्रेयस्कर है। प्रवासी भारतीय भी नागरी लिपि के प्रचार-प्रसार कार्य में योगदान दे रहे हैं। एक से अधिक भाषाओं को सीखने में देवनागरी लिपि निसंदेह सहायक सिद्ध हो सकती है। रोमन लिपि के प्रति आकर्षण एक प्रकार का अंधानुकरण है।
मुख्य वक्ता डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन मध्य प्रदेश ने कहा कि- दुनिया की किसी भी भाषा को देवनागरी लिपि में सटीकता से लिखा जा सकता है। सर्वविदित है कि, विश्व के लिए भारत के दो अविष्कार बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। प्रथम सैंधव लिपि और बाद में ब्राह्मी लिपि का आविष्कार। उसी ब्राह्मी लिपि से नागरी लिपि निर्मित है। द्वि लिपि के बदले नागरी लिपि को प्राथमिकता देनी चाहिए। मुख्य अतिथि डॉ. शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि विश्व में मुख्य रूप से प्रचलित चार लिपियों की तुलना में देवनागरी लिपि अत्यधिक वैज्ञानिक एवं सुविधाजनक है। परिणामत: विश्व लिपि के रूप में देवनागरी का समर्थन निसंदेह स्वीकार्य है।
डॉ. सुधाने पौडेल, संस्कृत विश्वविद्यालय, नेपाल ने अपने मंत्तव्य में कहा कि नेपाल में नेपाली, संस्कृत व अंग्रेजी के प्रचलन सहित मैथिली और भोजपुरी भी व्यवहार में है। परंतु लिपि के रूप में देवनागरी का प्रचलन अत्यधिक है। राष्ट्रीय एकता के रूप में नेपाल में देवनागरी लोकप्रिय है। परिणामत: नेपाल में नागरी का भविष्य उज्ज्वल है। नेपाल के लोगों ने लोकोन्मुखी भाषा में देवनागरी लिपि को स्वीकारा है। हरे राम पंसारी उड़ीसा ने कहा कि तकनीकी की दृष्टि से देखें तो देवनागरी एक सक्षम लिपि है। डॉ. इसपाक अली बेंगलूरु ने कहा कि कोई भी लिपि, चिन्हों के माध्यम से भाषा की अभिव्यक्ति करती है। नागरी लिपि अपने आप में समर्थ लिपि है।
डॉ. सुनीता मंडल ने नागरी लिपि के नामकरण पर चर्चा करते हुए कहा कि देवनागरी लिपि, एक उन्नत लिपि है। जिसमें अभूतपूर्व सौंदर्य है। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष, सुवर्णा अशोक जाधव ने कहा कि देवनागरी अक्षरों पर आधारित लिपि है। अन्य लिपियों की तुलना में नागरी लिपि की वैज्ञानिकता स्पष्ट है। डॉ. विनोद बब्बर, नई दिल्ली ने कहा कि त्रिभाषा सूत्र के आधार पर प्रत्येक प्रांत में भी त्रिलिपि सूत्र को भी अमल में लाना चाहिए। डॉ. प्रभु चौधरी, महासचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि विनोबा जी अनेक भाषाओं के जानकार थे। परंतु उन्होंने सभी भाषाओं को जोड़ने में नागरी लिपि की महत्ता का प्रतिपादन किया।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य प्रवक्ता डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक ने अपनी प्रस्तावना में कहा कि सार्वदेशिक लिपि देवनागरी का प्रचार-प्रसार वैश्विक स्तर पर हो रहा है। इस अवसर पर मीरा सिंह, अमेरिका, डॉ. प्रसन्ना कुमारी, तिरुअनंतपुरम, डॉ. प्रतिभा येरेकर, धर्मावाद, नांदेड, डॉ. नजम बानू मलिक, नवसारी, गुजरात, डॉ. पंकज दीवान, नई दिल्ली, पवन धवन द्वारा भी अपने विचार प्रस्तुत किए गए। ज्योति तिवारी, इंदौर ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। डॉ. रश्मि चौबे, मुख्य महासचिव, महिला इकाई, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने गोष्ठी का कुशल व सफल संचालन किया।