अर्चना संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी संपन्न

कोलकाता। अर्चना संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी अति सुंदर रही, इन्दु चांडक के संयोजन में सदा की तरह अनूठी रही। स्वतंत्रता दिवस से लेकर रक्षाबंधन तथा अन्य विषयों पर कविता और रचनाओं की प्रस्तुति दी गई। नील गगन से बातें करता, ध्वज तिरंगा प्यारा है। गाथा गाएँ मिलकर सारे, हिन्दुस्तान हमारा है।।

1) मॉं भारती रही पुकार (स्वतन्त्रता दिवस सम्बन्धी
2) है चिन्तन की दरकार (जीवन की विसंगतियों पर),
कुण्डलिया- झंडे सुन ले तू व्यथा, मेरे मन की आज। हालत देख समाज की, आती मुझको लाज।।
1) जलधर बरसो अब धरा, हरो सभी की पीर। व्याकुल सारे जीव हैं, माँग रहे हैं नीर।।
2) हिम्मत चोरड़िया प्रज्ञा ने कविताएँ पढ़ी। गोष्ठी में बारिश की बूंदो के साथ रक्षाबंधन, श्रावण मास और स्वाधीनता दिवस सभी त्योहारों पर बहुत सुंदर रचनाएं सुनाई गई।
1) हाइकु- रक्षा बंधन पर/कचहरी में/रक्षा बंधन रंग फाइलों संग
2) माहिया बरसात पर/बरखा भू पर आयी/दोनों सखियों ने मिलकर कजरी गायी, राष्ट्रीय गीत- ‘पन्द्रह अगस्त का मतलब केवल झण्डा नहीं फहराना है, वीर शहीदों की गाथायें फिर से हमें दोहराना है! सुशीला चनानी ने रचनाएं प्रस्तुत की।

माहिया छंद धरती गुलशन गुलशन, ओ सावन राजा, हर दिल की तू धड़कन। माथे पर सूरज की बिंदिया सजे, मांग में करने का सिंदूर सजे, कब आओगे इस पथ से तुम, बैठी हूं नैनों में दीपक लिए, स्वाधीनता दिवस पर आओ बंधु, एक लगाए नारा, भारत देश हमारा भारत विश्व से न्यारा। मृदुला कोठारी, ये बारिश का पानी, दिल करना चाहे, थोड़ी सी मनमानी, दरवाजा जो खोला, दिल तो कांप उठा, मन पीड़ा से डोला। रात देवों के देव महादेव, देखती देखती सो गई। संगीता चौधरी ने सुनाया।

माथे पर सूरज की बिंदिया सजे, मांग में करने का सिंदूर सजे, कब आओगे इस पथ से तुम, बैठी हूं नैनों में दीपक लिए, स्वाधीनता दिवस पर आओ बंधु, एक लगाए नारा, भारत देश हमारा भारत विश्व से न्यारा-मृदुला कोठारी ने कविताएँ पढ़ी। 1) मॉं भारती रही पुकार (स्वतन्त्रता दिवस सम्बन्धी 2) है चिन्तन की दरकार (जीवन की विसंगतियों पर) मालू जी ने सुनाया।

डॉ. वसुंधरा मिश्र ने अपनी रचना में रक्षा बंधन पर पर जब कई हाथ जुड़ जाते हैं, छोटा-सा यह कच्चा धागा भी, प्रेम पवित्र पथ बन जाता है रक्षा और सुरक्षा का हिमालय बन जाता है और देश की वीरांगना के नाम, ए देश की वीरांगना तुझको मेरा सलाम, तुझको मेरा प्रणाम, तेरे ही कारण विश्व में भारतवर्ष का है नाम… स्वाधीन भारत की कहानी थी अधूरी तुम्हारे बिना सुनाया।

इंदू चांडक ने गीत – झिरमिर बरसै ए महारै आँगणिए रिमझोल मचावै प्यारी बिरखा राणी ए, हमेशा की तरह संचालन करते हुए अपना गीत सुनाया। डॉ. वसुंधरा मिश्र ने बताया कि अर्चना संस्था के सभी सदस्य अपनी स्वरचित रचनाएँ ही सुनाते हैं जो इस संस्था की विशेषता है।

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