नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में ‘मोदी उपनाम’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की इसमें कोई संदेह नहीं है कि बयान अच्छे मूड में नहीं होते हैं, सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय सावधानी बरतने की उम्मीद की जाती है। जैसा कि इस अदालत ने अवमानना याचिका में उनके हलफनामे को स्वीकार करते हुए कहा, उन्हें (राहुल गांधी) अधिक सावधान रहना चाहिए था। ‘मोदी’ उपनाम टिप्पणी मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोर्ट जानना चाहता है कि अधिकतम सज़ा क्यों दी गई? अगर 1 साल 11 महीने की सजा दी होती तो वे (राहुल गांधी) अयोग्य (लोकसभा सदस्यता) नहीं ठहराए जाते।
‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी मामले में राहुल गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी का मूल उपनाम ‘मोदी’ नहीं है और उन्होंने बाद में यह उपनाम अपनाया। गांधी ने अपने भाषण के दौरान जिन लोगों का नाम लिया था, उनमें से एक ने भी मुकदमा नहीं किया…इस समुदाय से केवल भाजपा के पदाधिकारी मुकदमा कर रहे हैं। सिंघवी का कहना है कि जज इसे नैतिक अधमता से जुड़ा गंभीर अपराध मानते हैं।
यह गैर-संज्ञेय, जमानती और समझौता योग्य अपराध है। अपराध समाज के विरुद्ध नहीं था, अपहरण, बलात्कार या हत्या नहीं था। उनका तर्क है कि यह नैतिक अधमता से जुड़ा अपराध कैसे बन सकता है? लोकतंत्र में हमारे पास असहमति है, लोकतंत्र में हमारे पास असहमति है। जिसे हम ‘शालीन भाषा’ कहते हैं। गांधी कोई कट्टर अपराधी नहीं हैं. भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा कई मामले दायर किए गए हैं, लेकिन कभी कोई सजा नहीं हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि गांधी पहले ही संसद के दो सत्रों से चूक चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को कांग्रेस नेता द्वारा दायर विशेष याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी और नोटिस जारी किया था क्या उनकी सजा को याचिका पर सुनवाई पूरी होने तक निलंबित रखा जाना चाहिए। पीठ ने दोनों पक्षों को सुने बिना गांधी की याचिका पर कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। उसने भाजपा नेता पूर्णेश मोदी और अन्य को अपनी बात रखने के लिए 10 दिन का समय देते हुए मामले की अगली तारीख 4 अगस्त तय की थी।
कांग्रेस नेता ने हलफनामे में अदालत को बताया था कि शिकायतकर्ता ने उन्हें “अहंकारी” बताया था क्योंकि उन्होंने ‘मोदी उपनाम’ मानहानी मामले में माफी मांगने से इनकार कर दिया था। इसमें कहा गया है कि गांधी ने हमेशा कहा है कि वह निर्दोष हैं और “अगर उन्हें माफ़ी मांगनी होती तो वह काफी पहले ऐसा कर चुके होते।” भाजपा विधायक ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि गांधी ने “अहंकार” दिखाया है और सर्वोच्च न्यायालय को उनकी याचिका खारिज कर उनसे कीमत वसूली जानी चाहिए। इसमें कहा गया है कि गांधी ने देश के चयनित प्रधानमंत्री के प्रति “व्यक्तिगत द्वेष” के कारण मानहानिकारक बयान दिए, और वह दी गई सजा के मामले में “किसी सहानुभूति के पात्र नहीं हैं”।
गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा केस में तत्काल सुनवाई के लिए 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर अदालत सुनवाई के लिए तैयार हुई थी। इससे पहले 15 जुलाई को कांग्रेस नेता ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। गुजरात उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक की पीठ ने निचली अदालत द्वारा उन्हें दी गई सजा पर रोक से इनकार कर दिया था।
मार्च में सूरत की एक अदालत द्वारा अप्रैल 2019 के इस मामले में दोषी ठहराये जाने और दो साल की जेल की सजा सुनाये जाने के बाद कांग्रेस नेता को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य करार दिया गया था। अप्रैल 2019 में एक नामांकन रैली के दौरान उन्होंने कहा था, ”सभी चोरों के उपनाम मोदी ही क्यों होते हैं।” उनका अभिप्राय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भगोड़े घोटालेबाजों ललित मोदी तथा नीरव मोदी के बीच कटाक्षपूर्ण तुलना से था।