- विश्वविद्यालय में बाल अधिकारों को लेकर बनाया जाएगा पाठ्यक्रम : प्रो. केजी सुरेश
- कोरोना काल के दौरान पत्रकारों ने दिखाई बच्चों के प्रति संवेदनशीलता : विशाल नाडकर्णी
- इस मिशन से बाल अधिकारों के प्रति मिलेगी सकारात्मक गति मिलेगी : ब्रजेश चौहान
अंकित तिवारी, भोपाल। हमारा मक़सद न केवल छात्रों को एक बेहतर मीडिया कर्मी के तौर पर तैयार करना है बल्कि इस तरह की कार्यशालाओं के माध्यम से हम कई विशेष और विचारणीय मुद्दों को लेकर रिपोर्टिंग करने के लिए मीडिया में सक्रिय पत्रकार साथियों को भी तैयार करना है। यह कहना है माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. केजी सुरेश का। यह बात उन्होंने मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय और यूनिसेफ़ के सहयोग से “बाल अधिकारों को लेकर एक मीडिया विमर्श” का आयोजन के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि बाल अधिकारों से जुड़े विषयों को संबंधित विभागों से मिलकर पाठ्यक्रम तैयार करके छात्रों को पढ़ाया जाएगा। इस मौके पर मध्यप्रदेश सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के संयुक्त निदेशक विशाल नाडकर्णी, बाल अधिकार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी, बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान और विश्वविद्यालय की तरफ़ से यूनिसेफ़ के समन्वयक डॉ मणि नायर भी मौजूद रहे।
प्रो. सुरेश ने कहा कि “कि हम लोग जो पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े हैं वो हमेशा समाज के बीच में ही रहते हैं। एमसीयू एक ऐसे थिंक टैंक के तौर पर सालों से सक्रिय है जो मीडिया की इंडस्ट्री और एकेडमिक्स, दोनों के बीच एक सेतु का काम कर रहा है। इसी सिलसिले में हमने यूनिसेफ़ के साथ मिलकर बच्चों के खिलाफ़ हिंसा और शोषण की रोकथाम के लिए मिलकर एक योजना पर काम कर रहे हैं। चूंकि बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं, इसलिए इस तरह की कार्यशालाओं और इस कार्यशाला का भी ये उद्देश्य है कि आप सब को बाल अधिकारों और उन अधिकारों के हनन के बारे में अवगत कराया जा सके”।
आखिर में कुलपति प्रो केजी सुरेश ने कार्यक्रम में आए पत्रकारों का आभार भी व्यक्त किया। कुलपति के उद्घाटन संबोधन के बाद महिला एवं बाल विकास विभाग, मध्यप्रदेश सरकार, के संयुक्त निदेशक विशाल नाडकर्णी ने बाल अधिकारों को लेकर अपने विचार और आयोग का पक्ष रखा. संयुक्त निदेशक विशाल नाडकर्णी ने कहा कि, “जब भी बाल अधिकारों की बात आती है एक मानव होने का नाते हम बच्चों को लेकर थोड़े ज़्यादा संवेदनशील होते हैं।
अगर हम कहीं किसी रोड़ से गुज़रते हैं तो शायद एक वयस्क लाचार आदमी को देख कर हम उतनी जल्दी प्रतिक्रिया ने दें जितना कि हम बच्चे को देख कर प्रभावित हो जाते हैं। अपनी बात रखते हुए श्री नाडकर्णी ने आगे कहा कि, “मैं हमारे पत्रकार साथियों का भी बहुत आभार व्यक्त करना चाहता हूँ कि कोरोना काल के दौरान कई जगहों पर बच्चों के साथ हुई हिंसा और शोषण को लेकर एक बेहतरीन रिपोर्टिंग की जिसके ज़रिए संबंधित संस्थान सक्रिय हो सके और उचित कार्रवाई कर पाए।
बाल अधिकारों के हनन का मामला हम सबके लिए एक सोचने का अहम विषय है। इसी सिलसिले में मध्यप्रदेश शासन ने बच्चों के लिए एक स्पॉन्सरशिप स्कीम शुरु की है जिसके तहत हर बच्चे को 2000 रूपये की सहायता सरकार की तरफ़ से दी जाएगी।मुझे आप लोगों को ये बताते हुए खुशी हो रही है कि जब मैं इंदौर में डिस्क्ट्रिक्ट ऑफ़िसर था तो वहाँ पत्रकार साथियों की मदद से ही हमने शोषण और हिंसा के पीड़ित कई बच्चों को रेस्क्यू किया।
इस दौरान विशाल नाडकर्णी ने कुछ उदाहरणों का भी ज़िक्र किया जिसमें मीडिया की सहायता से बच्चों को रेस्क्यू किया गया था”। अपने संबोधन में मीडिया की रिपोर्टिंग और बच्चों से जुड़ी ख़बरों की कवरेज को लेकर श्री नाडकर्णी ने कहा कि, “मौजूदा समय में बच्चों से जुड़ी घटनाओं को लेकर होने वाली रिपोर्टिंग में ऐसे कई बिंदु हैं जिनका दुरुस्त किया जाना बेहद ज़रूरी है। मीडिया में नए पत्रकार साथियों को बच्चों से जुड़ी किसी भी ख़बर को कवर करते समय या उसे अख़बार/टीवी के माध्यम से रिपोर्ट करते समय कुछ चीज़ों का विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
ध्यान देने योग्य इन बातों में सबसे पहला नंबर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और उसके बनाए नियमों का है, किसी भी पत्रकार को बच्चे से जुड़ी ख़बर प्रस्तुत करते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी हाल में उस बच्चे की पहचान से जुड़ी किसी भी चीज़ का कोई खुलासा न हो”। अपनी बात का अंत करते हुए आखिर में विशाल नाडकर्णी ने कहा कि, “किसी भी बच्चे के खिलाफ़ हो रहे ज़ुर्म को नज़रअंदाज़ करना भी एक ज़ुर्म ही है”।
कार्यक्रम में दूसरे मुख्य अथिति के तौर पर आए बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के सदस्य श्री ब्रजेश चौहान ने बाल अधिकारों के विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि “कई बार कानूनों की जानकारी न होने के चलते भी बतौर मीडिया कर्मी एक व्यक्ति कुछ गलतियाँ कर बैठता है जो शायद उसे नहीं पता होती. हमें समाज में बच्चों की सुरक्षा और स्वतंत्रता दोनों को लेकर ही सोचना होगा। इसके अलावा उनको सहभागिता का अधिकार मिलना भी बेहद महत्वपूर्ण है”।
इसके अलावा आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान ने आखिर में एक सुझाव देते हुए कहा कि “माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के लगभग 1800 छात्र हैं, अगर उनके पाठ्यक्रम या व्यावहारिक प्रशिक्षण में बाल अधिकारों को लेकर भी कुछ पढ़ाया या सिखाया जाए तो इस बाल अधिकारों के प्रति हमारे इस मिशन को एक सकारात्मक गति मिलेगी”। ब्रजेश चौहान के इस सुझाव विश्वविद्यालय के कुलपति केजी सुरेश ने उसी सहमति देते हुए आगे की संभावित रुपरेखा के बारे में भी बताया।