20 मार्च : मनुष्य के जीवन में खुशहाली के महत्त्व को इंगित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय खुशहाली दिवस पर विशेष…

अपने चेहरे पर मुस्कान को अपना ब्रांड बना लो : डॉ. विक्रम चौरसिया

डॉ. विक्रम चौरसिया, दिल्ली । हम सभी का जीवन जीवंत होना चाहिए, खुश रहना व लोगो को खुश रखना ही हमारे जीवन का सबसे बड़ा धर्म व उद्देश्य होना चाहिए, प्रसन्न या कहे की खुश रहने के लिए कोई कारण नहीं हम इंसान को चाहिए, सोचकर देखिए हम इंसान के लिए यही पर्याप्त नहीं है क्या की हम व आप आज फिर सुबह उठे जबकि ना जानेकितने लोगो की सुबह हुआ तो उनकी आंखें खुली ही नहीं। पुरी दुनियां में प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को मनुष्य के जीवन में खुशहाली के महत्त्व को इंगित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय खुशहाली दिवस का आयोजन किया जाता है, इस वर्ष भारत को विश्व प्रसन्नता सूची में 136वां स्थान मिला है जबकि वर्ष 2021 में भारत 139वें पायदान पर था, इस साल की रिपोर्ट में यूरोपीय देश फिनलैंड को खुश रहने के मामले में सभी देशों से पहले स्थान पर है।

आज लोगो में बढ़ती ये अवधारणा की उसका घर मेरे घर से अच्छा क्यों? उसकी कार मेरी कार से बड़ी कैसे? मेरे बेटे के नंबर पड़ोसी के नंबर से कम कैसे रह गए? मुझे नौकरी में तरक्की कब मिलेगी? इन सवालों में उलझी जिंदगी हमे खुश रहने नही दे रही है, आज के इस वैश्वीकरण के दौर में बढ़ती प्रतिस्पर्धा व स्वार्थ लोगो को खुशी से जीने नही दे रही है। कही हमने सुना था की एक अमेरिकी संपादक को एक ऐसी बीमारी हो गई थी जिसे डॉक्टरों ने असाध्य करार दे दिए थे। इस रोग का नाम था रूमेटाइड अर्थराइटिस, इस रोग के कारण संपादक के पुरे हड्डियों का सिकुड़ना व जकड़ना जिससे बहुत पीड़ा होती थी।

जिस हॉस्पिटल में इन्हें भर्ती किया गया था वहां के डॉ. चेतावनी देते हुए बोले की संपादक जी यह रोग कठिन है किंतु यदि तुम चिंता करते रहोगे तो तुम्हारी मृत्यु जल्द हो जाएगी, आप समझदार हो अतः अपने आप को संभालो। डॉ. के चले जाने के बाद संपादक जी सोचे कि यदि चिंता करने से मृत्यु जल्द हो सकती है तो क्या प्रसन्न रहने से मृत्यु टल भी सकती है? क्यों नहीं प्रयोग कर लिया जाए? संपादक जी ने नर्सिंग होम के अपने प्राइवेट कमरे की नर्स से कहा, नर्स मैं अपने कमरे को बंद कर रहा हूं, मैं आज से जोर-जोर से हंसूंगा, तुम यह मत समझना कि मैं पागल हो गया हूं।

इस तरह से शुरुआत हुई, जो की पुरे दिन में 3 से 4 बार 15 से 20 मिनट तक जोर-जोर से ठहाके लगाकर कुछ सप्ताह तक हंसते रहे, आपको बता दे कुछ सप्ताह के बाद जब जांच किया गया तो डॉ.अचरज में पड़ गए कि जो दवाइयां पहले अपना प्रभाव संपादक जी की बीमारी पर नहीं दिखा रही थी वे अब बसर करती नजर आ रही थी। धीरे धीरे संपादक जी के हड्डियों के जोड़ खुलने लगे उनकी बीमारी कम होने लगी ठहाके जारी रखें और कई महीनों के जबरदस्त प्रयोग के बाद चमत्कार के रूप में संपादक जी बिल्कुल ठीक हो गए थे जिनका नाम था नॉर्मन कजिंस।

बिल्कुल स्वस्थ होने के बाद इनकी अद्भुत कहानी अमेरिका के सारे अखबारों में चर्चा का विषय था। अमेरिका के 80 विश्वविद्यालयों में इनको भाषण के लिए बुलाया गया, जिसका विषय था मैं अब तक कैसे जीवित हूं? इनकी कहानी चिकित्सा जगत में तहलका मचा दिया की हंसने का चमत्कार क्या हो सकता है? यह पहली बार ही वैज्ञानिक दृष्टि से सामने आया। मैने खुद कई लोगो को खुश रखकर हंसने के लिए प्रेरित कर कर के कई लोगों के मानसिक बीमारियां ठीक कर चुका हूं।

आज ही आप भी खुद तो खुश रहोगे ही 24 घंटे में 2 लोगों को कम से कम 5 मिनट जरूर हंसाने का कोशिश करोगे। यह सच है कि आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, बेरोजगारी, लालच में लोग जीना ही भूलते जा रहे हैं। लेकिन क्या आप 24 घंटे में से 5 से 10 मिनट ठहाके लगाकर हंसी नहीं ला सकते, कुछ नहीं समझ में आ रहा है तो आप आज से ही अपनी ही गलतियों या मूर्खता पर भी खिलखिला कर मुस्कुरा लिया करो।

डॉ. विक्रम चौरसिया

चिंतक/आईएएस मेंटर/सोशल एक्टिविस्ट/दिल्ली विश्वविद्यालय/इंटरनेशनल यूनिसेफ काउंसिल (दिल्ली डायरेक्टर)

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