Manipal Hospital, Broadway brings relief to many patients suffering from POEM

ब्रॉडवे के मणिपाल हॉस्पिटल ने POEM से पीड़ित कई मरीजों को दिलाई राहत

  • 14 साल के बच्चे को मिली नई उम्मीद

कोलकाता: भोजन करना ज़्यादातर लोगों के लिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी के सबसे सरल कार्यों में से एक है। लेकिन अमलान मजूमदार और रूपा नायक जैसे एक्लेसिया, यानी एसोफैगस से संबंधित एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित मरीजों को भोजन करने में भी लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जो उनके जीवन में मायूसी का कारण बनी।

इस बीमारी की वजह से मरीजों के लिए भोजन को निगलना और पेट में पहुँचाना धीरे-धीरे मुश्किल होता जाता है। इन दोनों मरीजों को कई महीनों तक खाने को निगलने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा।

वे बिना दर्द के कुछ भी नहीं खा पाते थे और भोजन उनके मुँह तथा नाक से उल्टी होकर बाहर निकल जाता था। यह रोग उनके लिए सिर्फ़ एक शारीरिक चुनौती नहीं थी; बल्कि इसकी वजह से वे काफी मायूस और अलग-थलग महसूस करने लगे करते थे, जिसका बुरा असर उनकी मानसिक सेहत पर भी पड़ा।

मणिपाल हॉस्पिटल, ब्रॉडवे में एडवांस्ड पेरोरल एंडोस्कोपिक मायोटॉमी (POEM) तकनीक की मदद से अब दोनों मरीज पहले की तरह अपनी ज़िंदगी जी रहे हैं। इस अत्याधुनिक प्रक्रिया ने उन्हें नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करने का मौका दिया है, यानी उन्हें दम घुटने के हमेशा मौजूद खतरे या लगातार शारीरिक परेशानी सहने के मानसिक दबाव से मुक्त होकर जीने का दूसरा मौका मिला है।

गौरतलब है कि, एक्लेसिया के उपचार के लिए कई दूसरे विकल्प भी उपलब्ध हैं जिनका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। हालांकि ये दवाएँ उतनी कारगर नहीं होती है, लेकिन कभी-कभी चीर-फाड़ वाले उपचार के लिए अयोग्य समझे जाने वाले मरीजों का इसी तरह इलाज किया जाता है।

न्यूमेटिक डाइलेशन भी इसी तरह का एक अन्य उपचार विकल्प है। इस प्रक्रिया में निचले एसोफेजियल स्फिंक्टर को चौड़ा करने के लिए एक गुब्बारा फुलाया जाता है, जो ऐसोफेगस को पेट से अलग करने वाली अंगूठी के आकार की मांसपेशी होती है।

हालांकि इस नॉन-सर्जिकल विकल्प से मरीजों को राहत तो मिलती है, लेकिन आमतौर पर इस प्रक्रिया को दोहराया जाता है और इसके लिए मरीजों को प्रक्रिया के एक साल के भीतर अस्पताल वापस आना पड़ता है। दूसरी ओर, इस रोग के लंबे समय तक समाधान के लिए POEM का सहारा लिया जाता है, जो इस बीमारी के मूल कारण को ठीक करके मरीज के जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार करता है।

प्रक्रिया के दौरान, निचली ऐसोफेगस की मांसपेशी को काट दिया जाता है, ताकि मरीज फिर से पहले की तरह भोजन को सामान्य रूप से निगलने में सक्षम बन सके।

18 महीने से ज़्यादा समय तक इस रोग के लक्षणों से पीड़ित 33 वर्षीय अमलान मजूमदार ने कहा, “मुझे लंबे समय से ठीक से खाना खाने या सोने के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। हर बार कोशिश करने पर, खाना मेरे मुँह और नाक के ज़रिये वापस बाहर आ जाता था। ऐसा लग रहा था मानो मैं अपने ही शरीर में फँस गया हूँ।

18 जनवरी 2025 को POEM सर्जरी करवाने के बाद, मैंने तुरंत एक बड़ा बदलाव महसूस किया। अब इसके लक्षण पूरी तरह से गायब हो गए हैं, और आखिरकार मैं सामान्य रूप से खा-पी सकता हूँ। मैं मणिपाल के डॉक्टरों और पूरी टीम का बहुत शुक्रगुजार हूँ, जिन्होंने मुझे एक नई ज़िंदगी दी है।”

अमलान की तरह रूपा नायक की कहानी भी चुनौतियों से भरी है। उसकी माँ, रिम्पा नायक बेबस महसूस कर रही थी, जो लाचार होकर बस यही देखती थी कि उनकी 14 साल की बेटी उल्टी के बिना कुछ भी खा या पी नहीं पा रही थी। वे इसके समाधान की उम्मीद में कई अलग-अलग डॉक्टरों के पास गईं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उन्हें ब्रॉडवे के मणिपाल हॉस्पिटल लाया गया।

डॉ. सुजीत चौधरी से सलाह के बाद रूपा की एंडोस्कोपी की गई। एंडोस्कोपी से पता चला कि वह बालिका एक्लेसिया से पीड़ित थी। उसने ब्रॉडवे के मणिपाल अस्पताल में POEM सर्जरी करवाई और अब वह पूरी तरह से ठीक हो गई है। रूपा ने खुशी से झूमते हुए कहा, “मैंने सोचा नहीं था कि मैं फिर से बिना किसी डर और चिंता के खाना खा पाऊँगी। इस सर्जरी ने मुझे सचमुच एक नया जीवन दिया है। अब मैं बिना किसी चिंता के अपना पसंदीदा खाना खा सकती हूँ।”

मणिपाल हॉस्पिटल, ब्रॉडवे के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, डॉ. सुजीत चौधरी ने कहा, “POEM अत्याधुनिक और बेहद कम चीर-फाड़ वाली प्रक्रिया है, जो एक्लेसिया से पीड़ित मरीजों के लिए उम्मीद की किरण की तरह है। यह बीमारी मरीजों की मानसिक और शारीरिक सेहत दोनों पर काफी बुरा असर डाल सकती है। POEM बेहद कम चीर-फाड़ वाली तकनीक के साथ इसका समाधान करता है, और मरीज कुछ ही दिनों में फिर से अपनी सामान्य ज़िंदगी जी सकते हैं। मेरा मानना ​​है कि यह जीवन बदलने वाली घटना से कम नहीं है। मरीजों का सफलतापूर्वक ठीक होना हमें याद दिलाता है कि, हम जो करते हैं वह क्यों करते हैं। मेरी खुशकिस्मती है कि मुझे उनके ठीक होने के सफ़र का हिस्सा बनने का अवसर मिला।”

मणिपाल हॉस्पिटल, ब्रॉडवे के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, डॉ. सुदीप्त घोष ने कहा, “एक्लेसिया बड़ी दुर्लभ बीमारी है, जिसमें खाने-पीने की चीजों को पेट तक पहुँचने में बहुत कठिनाई होती है। आम तौर पर भोजन नली (ऐसोफेगस) में नसों को नुकसान पहुँचने के कारण एक्लेसिया होता है, जो ऐसोफेगस को भोजन को पेट में जाने से रोकता है।

यह शरीर में रोग प्रतिरोधक प्रणाली की असामान्य प्रतिक्रिया की वजह से हो सकता है। इसके लक्षणों में गले में भोजन का वापस आना (रिगर्जिटेशन), सीने में दर्द और यहाँ तक ​​कि वजन कम होना भी शामिल है। हालांकि काफी दुर्लभ रोग है, लेकिन बेहद कम चीर-फाड़ वाली थेरेपी (एंडोस्कोपिक) या सर्जरी और दवा से इसको ठीक किया जा सकता है।”

दोनों मरीजों को तीन दिन रहने के बाद 21 जनवरी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। उन्हें अगले एक हफ़्ते तक सेमी-लिक्विड डायट लेने की सलाह दी गई। इसके बाद वे जल्द ही सामान्य रूप से खाना-पीना शुरू कर सकेंगे और एक्लेसिया के बोझ से मुक्त हो जायेंगे।

POEM सर्जरी में मणिपाल हॉस्पिटल, ब्रॉडवे की विशेषज्ञता ने इन मरीजों को एक नई उम्मीद दी है। अब अमलान और रूपा के मन में एक ऐसे भविष्य की आस जगी है, जहाँ वे बिना परेशानी के ज़िंदगी की छोटी-छोटी खुशियों का आनंद ले सकेंगे।

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