पं. मनोज कृष्ण शास्त्री, बनारस : हर माह में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश जी को समर्पित की जाती है। माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। इस बार मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी 07 दिसंबर 2021 दिन मंगलवार को पड़ रही है। यह वर्ष 2021 की अंतिम विनायक चतुर्थी होगी। चतुर्थी का दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान गणेश का पूजन करना और व्रत रखना बहुत लाभकारी माना जाता है।
विनायक चतुर्थी मुहूर्त :
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मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 07 दिसंबर 2021 दिन मंगलवार तड़के 02 बजकर 31
मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिखि समाप्त- 07 दिसंबर 2021 दिन मंगलवार को रात 11 बजकर 40 मिनट पर
विनायक चतुर्थी का महत्व :
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भगवान गणेश बुद्धि, शुभता और विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले देव हैं। इन्हें विघ्नहर्ता या विघ्नविनाशक भी कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथो में मिलने वाले उल्लेख के अनुसार, भगवान गणेश की आराधना करने से जीवन में शुभता और सकारात्मकता बनी रहती है और आपके कार्यों में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं, जिससे जीवन सुख-शांति और खुशियां बनी रहती हैं। मान्यता है कि यदि विधि-विधान से भगवान गणेश का पूजन किया जाए तो वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।
गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए विनायक चतुर्थी पर दूर्वा की गांठे और मोदक अर्पित करें।
विनायक चतुर्थी की पूजन विधि :
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प्रातः उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजा स्थान की साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़कें। अब भगवान गणेश को वस्त्र पहनाएं और मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। सिंदूर से गणेश जी का तिलक करें व पुष्प अर्पित करें।
इसके बाद भगवान गणेश को 21 दूर्वा की गांठ अर्पित करें। गणेश जी को घी के मोतीचूर के लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। पूजा पूर्ण होने के बाद आरती करें और पूजन में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगे।
विनायकी चतुर्थी की पौराणिक कथा :
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श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ खेलने को कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया। बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- ‘यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।’ यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं।
एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश जी के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेश जी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। उस पर उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।’ तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई।
चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई। तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती है।
जोतिर्विद दैवज्ञ
पंडित
मनोज कृष्ण शास्त्री
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