मानव इतिहास की सबसे मूल्यवान संपदा हैं पुस्तकालय- मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव
भारत की सांस्कृतिक विशेषताएं और ज्ञान परंपरा दूर-दूर तक पहुंच रही है प्राचीन ग्रंथों के माध्यम से- मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव
विक्रम विश्वविद्यालय में 22 एवं 23 अगस्त को जारी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रथम दिवस पर हुई बदलती शिक्षा और सामाजिक संरचना में पुस्तकालयों के लिए अवसरों और चुनौतियों पर गम्भीर चर्चा, देश के बीस से अधिक राज्यों से आए विद्वान
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा भारत में पुस्तकालय विज्ञान में विक्रम विश्वविद्यालय के प्रथम विजिटिंग प्रोफेसर पद्मश्री डॉ. सियाली रामामृत रंगनाथन के पुस्तकालय विज्ञान में पदार्पण के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में बदलती शिक्षा और सामाजिक संरचना में पुस्तकालयों के लिए अवसरों और चुनौतियों पर केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन दिनांक 22 एवं 23 अगस्त 2024 को स्वर्ण जयंती सभागार में किया जा रहा है। संगोष्ठी का शुभारंभ मध्यप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मुख्य आतिथ्य में दिनांक 22 अगस्त को प्रातः 10:30 बजे स्वर्ण जयंती सभागार में हुआ। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने की। विशिष्ट अतिथि एसएलए एशिया कम्यूनिटी के अध्यक्ष एवं डॉ. बी.आर. अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के डीन प्रो. एम.पी. सिंह, उज्जैन के संभागायुक्त एवं धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व संचालनालय के संचालक संजय गुप्ता तथा जिला कलेक्टर नीरज कुमार सिंह थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि पुस्तकालय मानव इतिहास की सबसे मूल्यवान संपदा हैं। बैंक यदि धन संपदा संरक्षण करते हैं तो पुस्तकालय ज्ञान संपदा का संरक्षण, संवर्धन करते हैं। वर्तमान विज्ञान के दौर में पूरी दुनिया में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। आज भारत की सांस्कृतिक विशेषताएं और ज्ञान परंपरा प्राचीन ग्रंथों के माध्यम से दूर-दूर तक पहुंच रही है। भारत में सदियों से शिक्षा की अत्यंत समृद्धशाली व्यवस्था रही है। जीवन के श्रेष्ठ मूल्य और आस्था – विश्वास को धर्म के माध्यम से साकार किया जाता है।
उन्होंने अपने उद्बोधन में आगे कहा कि नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला के पुस्तकालयों की प्रसिद्धि पूरे विश्व में थी। हम क्या थे, हम यहाँ तक कैसे पहुंचे, हम कहाँ जाना चाहते हैं, हम लक्ष्य तक कैसे पहुंचेंगे, इन सभी प्रश्नों के उत्तरदाता हैं हमारे पुस्तकालय। भारतीय इतिहास में पुस्तकालयों का योगदान अतुलनीय रहा है। चाहे वह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय हो, तक्षशिला का विद्या केंद्र हो, या फिर विक्रमशिला विश्वविद्यालय। ये सभी स्थान ज्ञान के ऐसे भंडार थे, जिन्होंने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को विज्ञान, साहित्य, चिकित्सा और दर्शन के क्षेत्र में नई दिशा दी। आक्रांताओं ने भारत के अनेक प्राचीन ग्रंथालयों को जलाया, लेकिन काल के प्रवाह में हम फिर से उठ खड़े हुए। पुरातन नगरी उज्जयिनी में पांडुलिपियों का महत्वपूर्ण भंडार है।
ग्रंथालय विज्ञान के जनक डॉ. एस.आर. रंगनाथन ने विक्रम विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य किया था। इसी विश्वविद्यालय में ग्रंथालय विज्ञान के अध्यापन का प्रथम विभाग बना था। मैं डॉ. रंगनाथन जी की पावन स्मृति को नमन करता हूं। लाइब्रेरी क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों, आधुनिकीकरण, स्वचालन, नेटवर्किंग, डिजिटलीकरण एवं ग्रीन लाइब्रेरी जैसे मुद्दों पर गम्भीर विमर्श के लिए यह संगोष्ठी महत्वपूर्ण सिद्ध होगी।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने उद्बोधन में उज्जयिनी की महिमा को रेखांकित करते हुए कहा कि उज्जयिनी धर्म और अध्यात्म के साथ ज्ञान और विज्ञान की विश्व प्रसिद्ध नगरी है। उज्जैन एक ऐसा पवित्र स्थल है, जहां धर्म-अध्यात्म और ज्ञान-विज्ञान का संगम होता है। प्राचीन समय से ही उज्जैन की कीर्ति सम्पूर्ण विश्व में फैली हुई है। इस नगरी में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने गुरु सांदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी। उज्जयिनी का कण-कण उस दिव्य ज्ञान का साक्षी है, जिसने योगेश्वर श्रीकृष्ण को गीता का उपदेशक बनने की प्रेरणा दी। उज्जैन को हिंदू ज्योतिष और खगोल शास्त्र का ग्रीनविच कहा जाता है, क्योंकि यहां से गुजरने वाली कर्क रेखा के आधार पर ही पूरी दुनिया में समय का निर्धारण होता था। आज भी इस काल गणना पर आधारित विक्रम संवत आधुनिक ग्रेगोरियन कैलेंडर से कहीं ज्यादा सटीक है। धर्म अध्यात्म और ज्ञान-विज्ञान की इस शाश्वत भूमि में रहकर शिक्षा प्राप्त करना अपने आप में एक गौरवशाली अवसर है।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि नए दौर में पुस्तकालय विज्ञान और पठन-पाठन की दिशा में शैक्षिक परिसरों की जिम्मेदारी बढ़ रही है। भारत के अनेक ग्रंथों ने पूरी दुनिया को नया आलोक दिया है। पूरी दुनिया के लोग श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं। अपनी भाषा के माध्यम से श्रेष्ठ पुस्तकों का लेखन और प्रसार आवश्यक है। इस दिशा में विक्रम विश्वविद्यालय को यूजीसी द्वारा हिंदी माध्यम की पुस्तकों के लेखन के लिए नोडल बनाया गया है। इसकी लेखन प्रक्रिया से सुधी शिक्षाविद जुड़ें।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में संगोष्ठी की प्रस्तावना समन्वयक डॉक्टर सोनल सिंह ने प्रस्तुत की। विषय का परिचय एसएलए एशिया कम्युनिटी के अध्यक्ष एवं डॉ. बी.आर. अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के डीन प्रोफेसर एम.पी. सिंह ने दिया। विशिष्ट अतिथि उज्जैन के संभागायुक्त एवं धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व संचालनालय के संचालक संजय गुप्ता तथा जिला कलेक्टर नीरज कुमार सिंह ने संबोधित करते हुए इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी की सफलता के लिए मंगल कामनाएं प्रस्तुत की।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने पीठिका रखते हुए कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय को गौरव मिला है कि इसकी स्थापना के साथ ही 1957 से 1959 तक पुस्तकालय विज्ञान के जनक पद्मश्री डॉ. सियाली रामामृत रंगनाथन ने विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में यहां अध्यापन किया। उन्होंने कोलन वर्गीकरण तथा क्लासिफाइड कैटलॉग कोड बनाया। पुस्तकालय विज्ञान की महत्ता को प्रतिष्ठित करने और देश के विभिन्न राज्यों में इसके प्रचार-प्रसार में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा है। भारत के ग्रंथालय – परिदृश्य में आगमन का उनका यह शताब्दी वर्ष चल रहा है, जिसके अंतर्गत यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी महत्वपूर्ण सिद्ध हो रही है। उनके व्यापक प्रयासों से भारत में ग्रंथालय एवं सूचना विज्ञान तथा ग्रंथपाल व्यवसाय को विशेष स्थान मिला।
कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रोसिडिंग का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में विश्वविद्यालय की छात्राओं ने कुलगान एवं सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। अतिथियों द्वारा वाग्देवी का पूजन किया गया। स्वस्तिवाचन पंडित गोपाल कृष्ण शुक्ल ने किया। पुष्प गुच्छ, अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह अर्पित कर अतिथियों का सम्मान कुलसचिव डॉक्टर अनिल कुमार शर्मा एवं समन्वयक डॉक्टर सोनल सिंह ने किया। कार्यक्रम का सूत्र संचालन कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार शर्मा ने किया।
तकनीकी सत्र में हुआ बौद्धिक संपदा अधिकार पर बीज व्याख्यान एवं शोध पत्रों की प्रस्तुति उद्घाटन समारोह के पश्चात तकनीकी। सत्रों में देश के बीस से अधिक राज्यों से आए विद्वानों ने भाग लिया। इन सत्रों में अनेक विद्वानों ने व्याख्यान दिए, वहीं शोधकर्ताओं द्वारा शोध पत्रों की प्रस्तुति की गई। प्रारम्भ में डीआरडीओ – रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, नई दिल्ली के एसोसिएट निदेशक डॉ. के.पी. सिंह ने बीज व्याख्यान दिया। उन्होंने बाह्य अनुसन्धान और बौद्धिक संपदा अधिकार : एक अवलोकन पर पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से प्रकाश डाला।
इस संगोष्ठी में देशभर के पुस्तकालय विज्ञान के विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं। साथ ही अनेक विद्वान ऑनलाइन माध्यम से जुड़े थे। आयोजन में उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक डॉ. एच.एल. अनिजवाल, कुलानुशासक प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा, समन्वयक डॉ. डी.डी. बेदिया, डीएसडब्ल्यू प्रो. एस.के. मिश्रा, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. गोपाल कृष्ण शर्मा, डॉ. जी.डी. अग्रवाल, इंदौर, प्रो. डी.एम. कुमावत, तकनीकी समन्वयक डॉ. विष्णु सक्सेना, डॉ. क्षमाशील मिश्रा, डॉ. पवनेंद्र नाथ तिवारी आदि सहित अनेक विभागाध्यक्षों, शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं ने भाग लिया।
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