कोलकाता। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान महादशमी पर सिंदूर खेला का भी विशेष महत्व माना जाता है। आज पश्चिम बंगाल के कोलकाता समेत जिलों में भी मां दुर्गा की धूमधाम से विदाई की गई। बंगाल में दुर्गापूजा के दौरान सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है उसके बाद ही मां दुर्गा की विदाई की जाती है। दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की विदाई के दौरान कई रस्में निभाई जाती है। इन्हीं में से एक है सिंदूर खेला। विवाहित महिलाओं के लिए इस परंपरा का विशेष महत्व भी माना जाता है।
दुर्गा पूजा का आरंभ नवरात्रि की षष्ठी तिथि से होता है। बंगाली मान्यताओं के अनुसार देवी दुर्गा अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ धरती पर अपने मायके आती हैं। इनके साथ मां सरस्वती और मां लक्ष्मी भी पधारती है. पंडालों में भव्यता से पांच दिन तक देवी की उपासना करते हैं फिर दशमी को सिंदूर खेला यानी कि मां को सिंदूर अर्पित कर विदा किया जाता है। पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला काफी लंबे समय से चली आ रही है। महिलाएं सज-धज कर मां दुर्गा को विदाई देती है।
मां दुर्गा को पान के पत्ते से सुहागिनें सिंदूर लगाती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इसके बाद महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर धूम-धाम से ये परंपरा निभाती है। रस्म के अनुसार मां की मांग में सिंदूर लगाकर और उन्हें मिठाई खिलाकर मायके से विदा किया जाता है। सुखद दांपत्य जीवन की कामना के साथ ये अनुष्ठान किया जाता है।
सिंदूर खेला की रस्म 450 साल से चली आ रही है. ये परंपरा पश्चिम बंगाल से शुरू हुई थी। नवरात्रि के आखिरी दिन बंगाली समुदाय के लोग धुनुची नृत्य कर मां को प्रसन्न करते हैं। पूजा पंडाल में सिंदूर खेला के दौरान महिलाए लाल रंग की साड़ी पहनकर मां दुर्गा को अंतिम विदाई दी जाती है। दोपहर से ही पूजा पंडाल में महिलाओं की भीड़ लगनी शुरु हो गई है। नाच गाने के साथ महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर तब मां दुर्गा को विदाई देती है।