लखनऊ : टाइगर इन मेट्रो – जंगल है तो जीवन है

 तीसरे दिन भी प्रदर्शनी देखने उमड़े लोग

लखनऊ। प्रकृति हमारे ही नहीं बल्कि समस्त जीवों के जीवन के लिए एक मुख्य स्रोत है। इसके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है। प्रकृति संतुलित है और उसके संतुलन को बनाये रखने के लिए प्रकृति में हर चीज का संरक्षण और बचाव जरूरी है। उक्त भाव लखनऊ के हजरतगंज मेट्रो स्टेशन परिसर में चल रही दस दिवसीय अखिल भारतीय पेंटिंग एवं छायाचित्र प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्रों को देखते हुए आम जनमानस ने व्यक्त किए। प्रदर्शनी देखने के लिए तीसरे दिन भी लोग उमड़ पड़े। साथ ही चित्रों को देखते हुए प्रदर्शनी के जागरूकता संदेश से काफी प्रभावित भी हुए। जिसकी भूरी भूरी प्रसंशा भी की।

प्रदर्शनी के क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने प्रदर्शनी में लगी चित्रों के बारे में बताया कि खैरागढ़ से ऋषभ राज के चित्रों में यह बताने की कोशिश की है कि यदि जंगल है तो जीवन है और वन्यजीव भी हैं। ऋषभ के दो कृति प्रदर्शित हैं जिनमें से एक कैनवास पर हरे भरे जंगल को दिखाया गया है और साथ ही टाइगर भी ज्यादा संख्या में हैं। वहीं उनके दूसरे कृति में जंगल कटे हुए हैं और टाइगर के कंकाल देखे जा रहे हैं। यह एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि जंगल न काटें, जिनसे अनेकों वन्यजीवों के जीवन जुड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश से संजय राज ने अपने कृतियों के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि मैं समकलीन वातावरण, प्रकृति व समाज से बहुत प्रभावित हूं।

मैं पिछले कई वर्षों से बढ़ते शहरीकरण व लगातार प्रभावित हो रही प्रकृति तथा शहर में विकाशील की भागदौड़ में भागता मानव नेचर को बहुत करीब से महसूस किया हूं जिस कारण मनुष्य न ही अपने आप को और न ही प्रकृति को समय दे पा रहा है। इसका परिणाम यह है कि वह अपने वास्तविक प्रकृति को भूल चुका है। आज के समय में भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य को प्रकृति के लिए समय केवल स्क्रीन और सोशल मीडिया, मोबाइल पर ही दे पा रहा है, प्रकृति को महसूस व उसके साथ जीने के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है।

इस चित्र को एक्रेलिक कलर के माध्यम से समकालीन वातारण को लाने का प्रयाश किया है। उत्तर प्रदेश से ही दीपेंद्र सिंह जिन्होंने टाइगर इन मेट्रो के शीर्षक का भी कैलीग्राफी डिजाइन की है। दीपेंद्र बताते हैं कि मैंने अपनी पहली कलाकृति मैं कैलीग्राफी के माध्यम से टाईगर प्रोजेक्ट के 50 वर्ष पूर्ण होने को दर्शाया है जिसमें मैंने हिंदी, अंग्रेजी भाषा के विभिन्न लिपियों के द्वारा संयोजित करने का प्रयास किया है। जिसमे बाघ को ब्लैक एंड व्हाइट मे दिखाया है जो उसके लंबी यात्रा को दर्शाता है। जिसकी वजह से आज बाघों की संख्या बढ़ रही है और दूसरी कलाकृति में मैंने टाईगर रिजर्व को मेट्रो लाइन के माध्यम से दिखाया है जो भारत के पूर्व से होते हुए उत्तर भारत होते हुए दक्षिण तक के जो टाईगर रिजर्व है उनको दिखाने का प्रयास किया है और घने जंगल जो बाघ का घर है उसको बाघ के साथ दिखाने का प्रयास किए है।

उत्तर प्रदेश से ही मनोज कुमार हँसराज की एक कृति शीर्षक “प्रकृति का सन्त” प्रदर्शित है। जो ऐक्रेलिक माध्यम में कैनवस पर बनाया गया है। जिसमे टाइगर के पोर्ट्रेट पर फोकस किया है। वे बताते हैं कि टाइगर गर्व, बहादुरी, उग्रता, शक्ति और तपस्या का प्रतीक है। जिस तरह जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं कि जा सकती ठीक उसी प्रकार ब्रह्माण्ड में पर्यावरण संतुलन के लिए टाइगर के जरूरत है।पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण हमने टाइगर को सच्चा साधक के रूप में कैनवास पर प्रस्तुत किया है।

संयोजक मनोज एस चंदेल ने बताया कि हजरतगंज मेट्रो स्टेशन पर चल रही इस प्रदर्शनी टाइगर इन मेट्रो को लोग बहुत पसंद कर रहे हैं। कलाकारों और छायाकारों के कृतियों के माध्यम से दिए जा रहे संदेश की भी काफी सराहना कर रहे हैं। यह प्रदर्शनी एक सेल्फी पॉइंट बना हुआ है। चित्रों के साथ लोग सेल्फी ले रहे हैं। क्यूरेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि रविवार को अवकाश के दिन सैकड़ों की संख्या में लोगों ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया। साथ ही जैसे जैसे लोगों को इस प्रदर्शनी के बारे पता चल रहा है लोग आ रहे हैं साथ लिए गए फोटोज को खूब सोशल मीडिया पर शेयर भी कर रहे हैं। जिससे लोगों को और भी जानकारी इस प्रदर्शनी के बारे में हो रही है। प्रदर्शनी परिसर में ही उपस्थित कलाकारों से लोग अपने पोर्ट्रेट स्केच और अपने नाम भी कैलीग्राफी में खूब लिखवा रहे हैं।

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