इन लोककलाओं को प्रोत्साहन के साथ मूलभूत सुविधायेँ भी मिले – अनिल रस्तोगी
तीन दिवसीय शिविर का समापन, शिविर में बनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी 5 मई को सराका आर्ट गैलरी में लगेगी
लखनऊ। प्रदेश की राजधानी लखनऊ के वास्तुकला एवं योजना संकाय में पिछले तीन दिनों से चल रहे लोक व जनजातीय कला शिविर का समापन शनिवार को सायं लोककला के मंच प्रदर्शन के साथ हुआ। इस प्रदर्शन में मुख्य कलाकार खगेन गोस्वामी और सिरामुद्दीन चित्रकार थे। जिंहोने अपने अपने कला माध्यम से मंच पर अपनी भाषा और एक्टिंग के माध्यम से किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि अनिल रस्तोगी वरिष्ठ रंगकर्मी व फ़िल्म अभिनेता संदीप यादव रंगकर्मी व फ़िल्म अभिनेता रहे। भूपेंद्र अस्थाना ने बताया की खगेन गोस्वामी जो की असम के माजूलीं मास्क के कलाकार है शाम को मंच पर अपने गुरु श्रीमंत शंकरदेव गुरुजी के द्वारा शुरू की गई मास्क की प्रथा का विवरण देते हुए रामायण से बालि संवाद जिसमें बालि का मंच प्रवेश और प्रस्थान का प्रदर्शन, कृष्ण लीला से पूतना वध तथा रामायण से ही सुर्परणखा के मोहिनी रूप की प्रस्तुति किया। ये प्रथा 500 साल पुरानी है जिसकी प्रस्तुति खगेन गोस्वामी द्वारा देश के विभिन्न जगहों पर समय-समय पर की जाती रही है जिसमें से मुख्य स्थान दिल्ली संगीत नाटक अकादमी और दिल्ली के अलावा अन्य स्थान कोलकाता, भोपाल, अयोध्या कल्चरल रिशर्च सेंटर एवम् असम के लगभग प्रत्येक ज़िले में कर चुके है। दूसरे चित्रकार सरमुद्दीन चित्रकार, मिदनापुर पश्चिम बंगाल ये आज अपनी प्रस्तुति में मनसा पट और दुर्गा पट के ऊपर प्रस्तुति कर रहे हैं, मनसा देवी जो की नागों की देवी कही जाती है जिनकी मान्यता आज भी असम और पश्चिम बंगाल में बहुत ज़्यादा है उनकी पूरी कथा को गा कर प्रस्तुत करेंगे और दुर्गा पट में दुर्गा माँ से जुड़ी जो भी कहानी इन्होंने अपने चित्र में दर्शायी है उसका भी वर्णन गाने के मध्यम से करेंगे इसके अतिरिक्त ये अपनी एक अदभुत कृति जो की 30 फिट की पेंटिंग है जिसने संपूर्ण रामायण चित्रित है उसका प्रदर्शन करेंगे।
को ओर्डिनेटर धीरज यादव ने बताया की लाख – डॉल के कलाकार वृन्दावन चंदा है। ये चित्रकार मिदनापुर, पश्चिम बंगाल से है जो मुख्य रूप से मिट्टी के खिलौनों पर लाख के माध्यम से सुसज्जित कार्य करते हैं। ये कार्य इनके घर में 4 पीढ़ियों से चला आ रहा है जिसमे ये मिट्टी के स्वयं से बनाए विभिन्न खिलौनों को कोयले में गर्म करके उसको विभिन्न कलर की लाख के प्रयोग से सजाते है। जिसमे ये पहले काले रंग की लाख से कोटिंग करके उसमे लाल, हरी, पीली आदि रंगों की लाख से कुछ भाग को रंग कर सबसे अंत में सफेद रंग की लाख से ही बनाये गये धागे से खिलौने में अलग-अलग आकृति बनाकर उसे और भी सुसज्जित करते है। इन खिलौनों को बनाने के लिये ये किसी भी डाई या साँचे का प्रयोग नहीं करते है।
वहीं शिलचर असम से गाँधी पॉल शोरा पेंटिंग करते हैं। ये टेराकोटा प्लेट पे भारतीय पौराणिक कथाओं का चित्रण करते है जिसमे मुख्य रूप से दुर्गा, लक्ष्मी, राधा-कृष्ण, लक्ष्मी को विशेष रूप से चित्रित करते हैं। क्योकि इन प्लेटों का मुख्यतः प्रयोग लक्ष्मी पूजा के अवसर पर होता है। इसलिये इसमें लक्ष्मी के साथ जया-विजया का भी चित्रण करते हैं। पहले इसमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता था परन्तु अब लोगों की पसंद और समय की मांग के अनुसार इन्होने चटकीला रंगों का प्रयोग करना शुरु कर दिया है। सबसे पहले प्लेट की कोटिंग के लिये खटिया मिट्टी का प्रयोग तत्पश्चात् फैब्रिक कलर का प्रयोग करते हैं।
शिविर में रत्नप्रिया कान्त ने बताया की दिनेश सोनी भीलवाड़ा – राजस्थान से पिछवई कला करते हैं। ये पेन्टिंग मुख्य रूप से वैश्वनव मंदिर वल्वभ सम्प्रदाय में मंदिर में मूर्ति के पीछे लगाई जाती है। इस पेन्टिंग की शुरुआत राजस्थान में मानी गयी है। पिछवाई में अलग-अलग 4 तरह की शैलिया है जिसमे – जोधपुर, कोटा, किशनगढ़, बूंदी और नाथद्वारा जो उनका अंतिम स्थान माना जाता है। ये बड़े आकार के सूती वस्त्र पर प्राकृतिक रंग के उपयोग से बनाई जाती है इसका इतिहास 250 साल पुराना है म्यूशियम में 200 साल पुरानी पिछवई है। इसके विषय मुख्य रूप से प्राकृतिक चित्रण, गोवर्धन पर्वत, गाय, पशु- है। ग्वाल का चित्रण किया जाता है। रंग मुख्यतः हींग लू (Red list पिषावधी (Yello) हरा भाटा (G) काजल कपूर का (Black) light हड़मछ (Brown) नील (Blue) जंगाल (Green) जिंक और खटिया (white) सोने और चाँदी के वर्क एंव अकी स्याही का प्रयोग करते हैं। 30 साल से ये काम कर रहे जो इनका परम्परागत कार्य है, इनके परिवार में 15 Artist है। अलग-अलग विधाओ में कार्यरत है वर्तमान समय में दिनेश जी मुख्यतः रामायण और भागवत पुराण पर कार्य कर रहे है।
असम से आये शिविर के कोऑर्डिनेटर बिनॉय पॉल ने कहा कि इस शिविर में असम के चार प्रकार लोककला के अलग अलग विधा के कलाकार हैं जो सिलचर असम से शोर चित्र, मजुली असम से मजुली मास्क, सांची पट धुबरी असम से सोला पीठ आये हैं। ये सभी कलाकार ऐसी कलाओं की जो कई पीढ़ियों से चली आ रही है उसको आज के परिवर्तित होते परिवेश में आ रही कठिनाई के बाद भी अपने मे संजोये और जीवित रखे हुए हैं। समाज मे इन पारंपरिक कलाओं को बचाये रखने के लिए इन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
शिविर के क्यूरेटर डॉ. वंदना सहगल ने बताया की तीन दिवसीय कला शिविर में बनी कृतियों की प्रदर्शनी रविवार, 5 मई 2024 को सायं 6 बजे सराका आर्ट गैलरी में लगाई जाएगी साथ ही सभी कलाकारों का सम्मान भी किया जाएगा। इस प्रदर्शनी के उदघाटन मुख्य अतिथि – पद्मश्री डॉ. विद्या विंदू सिंह (वरिष्ठ लोक साहित्यकार) एवं प्रो माण्डवी सिंह (कुलपति, भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय, लखनऊ) द्वारा किया जाएगा।
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